“कहानी सही है लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश के परिदृश्य में जहां हिंदू पीड़ित हैं।”
“बिना किसी भी तथ्य के आप भारत–वर्ष के मूल निवासियों के विषय में ऐसे नहीं दिखा सकते।”
‘लीला’ का ट्रेलर देखकर जब मैं कमैंट्स पढ़ रहा था तो सोचा कि उपर्युक्त दो कमैंट्स सबके निचोड़ के रूप में यहां आपके सामने रखूं ।
और ऐसी ही कुछ कमैंट्स आपके दिमाग में भी आएंग जब आप इसका ट्रेलर देखेंगे।
‘लीला’ वेब-सीरीज पत्रकार प्रयाग अकबर की 2017 में आई नॉवल ‘लीला’ पर आधारित है। प्रयाग, आउटलुक पत्रिका के लिए रिपोर्टिंग करते थे और Scroll।in के पूर्व उप-संपादक भी रह चुके हैं।
प्रयाग अकबर का सबसे आसान परिचय है कि वे भारत के विदेश मामलों के पूर्व राज्य मंत्री एम।जे अकबर के बेटे हैं।
सेक्रेड गेम्स में हिन्दू आतंकवाद का नैरेटिव परोसने के बाद अब नेटफ्लिक्स आपको ‘लीला’ वेब-सीरीज के ज़रिये उनकी ‘हिन्दू-राष्ट्र’ की कल्पना सामने रख रहा है।
दो मिनट का ट्रेलर देखने के बाद आपको नेटफ्लिक्स की हिन्दूफोबिक कल्पना का अंदाज़ा आ ही जाएगा।
ट्रेलर से जितना समझ आया, यह कहानी ‘हिन्दू-राष्ट्र’ में एक महिला की परेशानियों की है जिसका गुनाह है कि उसने एक मुसलमान से विवाह किया है।
ट्रेलर में ‘हिन्दू-राष्ट्र’ की कल्पना को जिस तरह दिखाया है, आपको यह समझने में तनिक भी देरी नहीं लगेगी कि ‘नेटफ्लिक्स ‘लीला’ के ज़रिये हिन्दुओं को नाज़ी साबित करने की कवायद कर रहा है।’
यदि इक्के-दुक्के अपवादों को छोड़कर किसी खास चीज़ के लिए अधिकांश लोगों की प्रतिक्रियाएं एक सामान हों तो सत्य क्या है उसकी भनक लग ही जाती है। ‘लीला’ के केस में भी ऐसा ही है कुछ!
आप खुद ट्रेलर देख लीजिए, सीरीज देख लीजिए, दूसरों को पूछ लीजिए, चाहें तो ट्रेलर वाले वीडियो के नीचे तमाम कमैंट्स भी पढ़ लीजिए आपको हिन्दू-विरोधी प्रोपोगेंडा का अंदाजा आ ही जाएगा!
ट्रेलर में आगे जिस तरह से दिखाया गया है, ‘हिन्दू-राष्ट्र’ में गैर-हिन्दुओं के लिए बस पीड़ा ही पीड़ा है। यहां हर काम जात-पात और धर्म के नाम पर हो रहा है। यहां लोगों के घर तक जात-पात के नाम पर ऊंची-ऊंची दीवारों से अलग कर दिए हैं और लोगों का अंतर-जातिय संपर्क भी नहीं है।
कुल-मिलाकर ट्रेलर के निष्कर्ष में यही है कि ‘हिन्दू-राष्ट्र’ एक ऐसी कल्पना है जहां तानाशाही है, गैर-हिन्दुओं को जीने का हक़ नहीं है, जात-पात की ऊंची-ऊंची दीवारे हैं और यहां के लोग हिंसक हैं, असहिष्णु हैं, वगैरह वगैरह।
अब आप सोचिये कि 100 प्रतिशत हिन्दू-घृणा से ग्रस्त इस वेब सीरीज को 80% हिन्दू आबादी वाले देश में रिलीज़ करने का मकसद क्या हो सकता है?
आपको यह भी बता दूं कि ‘लीला’ नॉवल को अभी तक कोई खास रिस्पांस भी नहीं मिला है। यह नॉवल पिछले साल ही चर्चा में आया जब औसत होते हुए भी नेटफ्लिक्स ने इसपर ड्रामा सीरीज बनाने की घोषणा की थी।
मैं नहीं जानता कि नेटफ्लिक्स और इस सीरीज के बनाने वालों के मन में क्या था, , लेकिन उन्होंने उन हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खेलना चाहा है जिन्होंने वर्षों तक गैर-हिन्दुओं की गुलामी सही और जब ‘हिन्दू-राष्ट्र’ का मौका मिला तो ‘धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र’ का रास्ता चुना। उन्होंने उन हिन्दुओं को क्रूर बताने की कोशिश की जिनकी रगो में सृष्टि के छोटे से छोटे जीव के लिए दया, करुणा, प्रेम और त्याग की भावना है। उन्होंने उन हिन्दुओं को जात-पांत की दीवारों में बंधा बताया है जिनकी संस्कृति ही “वसुधैव कुटुम्बकम” की रही है।
इतिहास ने छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘हिन्दू राष्ट्र’ देखा है जहां हर धर्म-जात-पात के लिए समान सम्मान था, जहां शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए एक मस्जिद का ठीक उसी तरह निर्माण करवाया था जिस तरह से उन्होंने अपनी पूजा के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था।
हम सब जानते हैं कि असंख्य मुस्लिम सरदारों ने शिवाजी महाराज की सेना के साथ मिलकर ‘हिन्दू राष्ट्र’ की रक्षा करने हेतु मुग़लों से लड़ाइयां लड़ी थी। यदि उस ‘हिन्दू राष्ट्र’ में तनिक भी मुसलमानों के साथ जैसा ‘लीला’ वेब-सीरीज़ में दिखाया गया है वैसा होता तो मुसलमानों का ‘हिन्दू राष्ट्र’ की सेवा में लड़ना संभव हो पाता क्या?
यह सब तो ठीक है लेकिन हमारे दादा-परदादाओं ने और मेरी उम्र युवाओं ने नेपाल को एक लम्बे समय तक ‘हिन्दू राष्ट्र’ के रूप में देखा है, वहां के अल्पसंख्यक तो आज भी नेपाल को दोबारा ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने की मांग कर रहे हैं। क्यों?
खैर, बहुसंख्यक हिन्दुओं की आबादी वाले देश में हिन्दू-विरोधी ‘लीला’ का रिलीज़ होना ही हिन्दूफोबिक कल्पना के गाल पर तमाचा है। ‘लीला’ में जिस तरह से हिन्दुओं को दिखाया गया है उसका 1% भी सत्य होता तो नेटफ्लिक्स ऐसा कुछ बनाने की हिम्मत तक नहीं करता!