अब टाइम्स ग्रुप, द हिंदू और टेलीग्राफ को नहीं मिलेंगे सरकारी विज्ञापन

PC:easterneye

आपने मार्च में ‘द हिन्दू’ की राफेल मुद्दे पर ‘मत’ को ‘कथित रिपोर्ट’ के तौर प्रकाशित होते देखा होगा। चुनाव से ठीक पहले इस अखबार ने केंद्र सरकार को हर तरह से बदनाम करने की कोशिश की थी। राफेल मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार को क्लीन चिट दिए जाने बावजूद, पहले पन्ने पर राफेल को लेकर भ्रामक खबर प्रकाशित की ताकि युवाओं के मन में सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा सके।

जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और चुनाव के परिणामों ने यह साबित कर दिया कि राफेल डील सही तरीके से और हुई है कोई धांधली नहीं है। ऐसे में लेफ्ट लिबरल और विपक्ष दोनों ने ही मिलकर जो चाल चली वो कामयाब नहीं हो पायी।

Pgurus की एक रिपोर्ट की माने तो ‘द हिन्दू’ की इस नकारात्मक रिपोर्टिंग के बाद ही केंद्र ने इस अखबार को सरकारी विज्ञापन देना ही बंद कर दिया था। इसके बाद जून से मोदी सरकार ने एक और बड़ा निर्णय लेते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक् टाइम्स, द टेलीग्राफ और आनंद बाज़ार पत्रिका से सरकारी विज्ञापन बंद कर दिया है। यह प्रतिबंध टाइम्स नाव और मिरर नाव पर भी लागू होगा। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) जो केंद्र सरकार की विज्ञापन जारी करने वाली नोडल एजेंसी है, उसने 29 मई 2019 को अधिसूचना में यह साफ लिखा था कि किसी भी ऐसे मीडिया हाउस को विज्ञापन नहीं सौपें जाएंगे जो सामाजिक सद्भावना के खिलाफ खबरे छापते हैं।

इन मीडिया हाउस के विज्ञापनों को रोकने का कारण स्पष्ट है और सभी के सामने है। टाइम्स ग्रुप हिंदू विरोधी एजेंडे का पर्याय बन गया है। हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए वेद पाठशाला पर इसकी रिपोर्ट प्रमुख उदाहरण है। इसका खंडन करते हुए हमने अपनी वेबसाइट पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी। इसके अलावा समीर जैन और विनीत जैन के स्वामित्व वाली टाइम्स ग्रुप ने लगातार नकारात्मक खबरें प्रकाशित की टाइम्स ऑफ इंडिया ने 23 जुलाई, 2018 को ‘गॉडमैन’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था, लगभग 11 बजे (लगभग) फेसबुक पर पोस्ट किए गए लेख में लंबे बालों के साथ एक साधु की छवि थी जो ध्यान और रुद्राक्ष और माथे पर एक प्रमुख तिलक लगाए हुए था। इस मीडिया हाउस ने जानबूझकर भ्रामक शीर्षक के साथ एक साधु की छवि प्रकाशित की, ताकि हिंदुओं को बलात्कारी और प्रतिवादी के रूप में दर्शा जा सके।

https://twitter.com/ramprasad_c/status/1021277675749498880

मुंबई मिरर ने 22 मई 2018 को नम्रता ज़कारिया द्वारा एक लेख प्रकाशित किया था और लिखा था कि  भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को सजा दिया और और उन्हें सुई के साथ उनके घर भेज दिया। मिरर नाव को भी फेक न्यूज़ फैलाते देखा गया था।   

ऐसे ही रिपोर्ट्स लगातार द टेलीग्राफ में भी प्रकाशित हुई। यह अखबार अपने बेतुके हैड्लाइन्स के लिए चर्चा में रहता है। और खास कर पीएम मोदी के खिलाफ तो और भी ज्यादा।

द टेलीग्राफ के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। स्मृति ईरानी पर अभद्र टिप्पणी से लेकर मोदी सरकार को निशाना बनाने के लिए लगातार फर्जी खबरों को प्रकाशित करता रहा है । निशाना साधने के लिए इस अखबार ने वो सब किया जो किसी भी पत्रकारिता के लिए उचित नहीं है। इसकी कुछ हेडलाइंस को आप खुद देखिये कितनी भ्रामक है ..

 

अब आते है द हिन्दू पर। मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए चुनाव से ठीक पहले द हिंदू ने वो सब कुछ किया जिससे मोदी सरकार की सत्ता वापसी न हो सके। तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना, फर्जी खबरें फैलाने, और जो घोटला हुआ ही नहीं उसे साबित करने की कोशिश की जो हमने अपनी वैबसाइट पर प्रकाशित भी की थी। राफेल सौदे में उनका हस्तक्षेप पूरे चुनाव प्रचार के दौरान स्पष्ट हो गया था, जिसमें एक लेख में उन्होंने गलत हैड्लाइन् का सहारा लेकर अनैतिक साधनों का भी प्रयोग किया गया। जिसमें रक्षा मंत्रालय से चुराए गए दस्तावेजों का उपयोग भी शामिल है।

https://twitter.com/Iyervval/status/1097413438387699712

इन बड़े मीडिया घरानों ने इस मामले पर तो चुप्पी साधे रखी लेकिन कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मोदी सरकार पर अलोकतांत्रिक ढंग से प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाकर मुद्दा उठाया था।

अगर आंकड़ों की बात माने तो Pgurus के अनुसार, टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप को केंद्र सरकार के विज्ञापनों से औसतन 15 करोड़ रुपये / महीने से अधिक मिलता है और ऐसे ही औसतन हिंदू को लगभग 4 करोड़ प्रतिमाह मिल रहा है। सुनने में यह भी आया है कि द टाइम ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर विनीत जैन इस मुद्दे को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक बैठक की कोशिश कर रहे हैं। मोदी सरकार का यह कदम देश के बड़े मीडिया घरानो को कितना भारी पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इससे फेक न्यूज़ पर लगाम तो अवश्य लगेगा। भारत में मीडिया को दिए जाने वाले भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। लेकिन तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने की स्वतंत्रता अस्वीकार्य है। प्रेस पर एक जिम्मेदारी होती है और जब वे फेक न्यूज़ फैलाते हैं, तो इससे आम लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उम्मीद है, वे अब रिपोर्टिंग के अधिक नैतिक तरीकों का सहारा लेंगे।

 

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