नुसरत जहां को कट्टरपंथियों ने वंदे मातरम बोलने के लिए लिया आड़े हाथ

नुसरत जहां शपथ

कल ही बसीरहाट से टीएमसी सांसद नुसरत जहां ने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ ली। जब चर्चा के लिए सदन गठित हुआ था, तो उन्होंने बांग्ला भाषा में शपथ ली। मूल रूप से उन्हें 19 जून को शपथ लेनी थी, परंतु उस समय उनका विवाह बिजनेसमैन निखिल जैन से तय था, जिसे तुर्की में आयोजित कराया गया था, और यही कारण है कि वो शपथ ग्रहण में भाग नहीं ले पायी थीं। 

शपथ ग्रहण के दौरान नुसरत जहां पारंपरिक पहनावे में नजर आयीं। नई नवेली दुल्हन नुसरत ने माथे पर सिंदूर, हाथों में मेहंदी और चूड़ा पहना हुआ था। नुसरत ने विधिवत शपथ लेने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने ‘ईश्वर’ के नाम पर शपथ भी ली, और अपने शपथ के भाषण का अंत ‘जय हिन्द’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे से किया। जहां अपने व्यवहार से ये सोशल मीडिया पर कई लोगों के लिए प्रशंसा का पात्र बनी, तो वहीं कई इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उन्हें उनके ‘गैर इस्लामिक’ गतिविधियों के लिए उन्हें आड़े हाथों लिया।  

जिस तरह नुसरत जहां ने अपने भाषण का अंत ‘वंदे मातरम’ से किया, वो समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के विवादित बयानों के ठीक विपरीत है। उक्त सांसद ने वंदे मातरम बोलने से मना करते हुए कहा था ‘जहां तक वंदे मातरम का ताल्लुक है, वो इस्लाम के खिलाफ है, और हम इसका अनुसरण नहीं कर सकते।‘ इसके तुरंत पश्चात कई सांसदों ने विरोधस्वरूप संसद में वंदे मातरम का नारा लगाया और उनकी बोलती बंद हो गयी। रहमान का ये बयान ये सबित करता है कि कैसे कुछ कट्टरपंथी अपने आप को धर्म के ठेकेदार समझ लेते हैं और ये तय करते हैं कि क्या धर्म के अनुसार अनुसरण करना चाहिए और क्या नहीं। जबकि यह हर व्यक्ति का अधिकार है कि वो अपनी आस्था का अपने हिसाब से अनुसरण करे, किसी और को यह अधिकार नहीं है कि वो यह तय कर सके कि क्या किसी की आस्था के अनुकूल है, और क्या प्रतिकूल।

हालांकि, नुसरत जहां के शपथ ग्रहण समारोह एक अलग ही कहानी बयां करती है। अपने भाषण के अंत में उन्होंने वंदे मातरम का नारा लगाया, जिससे साफ होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता किसी भी प्रकार के सामाजिक रूढ़ियों और बंधनों से काफी ऊपर है।

परंतु कट्टरपंथियों को नुसरत का यह व्यवहार रास नहीं आया। वे इस बात पर आगबबूला हो गए कि कैसे वे सनातन सभ्यता को गले लगाकर वंदे मातरम के नारे से अपना भाषण खत्म कर सकती हैं। इसीलिए कई कट्टरपंथियों ने उन्हें ‘मुस्लिम विरोधी’ घोषित कर उनकी भर्त्सना करना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने तो उन्हें ऐसी गंदी गालियां दी है, जिन्हें कोई भी सभ्य व्यक्ति बोलना नहीं चाहेगा। इसके साथ साथ कुछ लोगों ने उन्हें इस्लामिक रीतियों और परम्पराओं के बारे में भी अवगत कराने का प्रयास किया। इसी से सिद्ध होता है कि कैसे कुछ कट्टरपंथी केवल इसलिए अपना आपा खो बैठे, क्योंकि एक व्यक्ति ने उनकी तय की गयी सीमाओं को लांघने का दुस्साहस किया है। 

https://twitter.com/Soumyadipta/status/1143431662266548224

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नुसरत जहां जैन के भाषण के इस अंधविरोध ने इन कट्टरपंथियों के रूढ़िवाद और और कट्टरवाद को भी उजागर कर दिया है। इससे ये भी सिद्ध होता है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों के मन में सनातन धर्म और उसकी रीतियों के प्रति कितनी घृणा भरी पड़ी है। यदि कोई सनातन रीति के कुछ बिन्दुओं का अनुसरण मात्र भी कर दे, तो यह इन कट्टरपंथियों के लिए असहनीय हो जाता है।

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