एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत में सबको अभिव्यक्ति की आज़ादी का आधिकार का प्राप्त है, और सबको अपनी बात रखने की पूरी स्वतन्त्रता है। हालांकि, देश के संविधान को गाली देने वाले लोग अक्सर इस आज़ादी का नाजायज़ फायदा उठाकर भारत के खिलाफ अपना एजेंडा चलाने का प्रयास करते रहते हैं, और ऐसे लोगों में सबसे बड़ा योगदान देश की यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कुछ क्रांतिकारी छात्रों का है। पिछले कुछ सालों में जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी तक, ये सभी शैक्षणिक संस्थान देश विरोधी घटनाओं को लेकर काफी चर्चा में रहे हैं। हालांकि, अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने राज्य के विश्वविद्यालयों में सक्रिय इस टुकड़े-टुकड़े गैंग को सबक सिखाने का निश्चय किया है। दरअसल, योगी सरकार की कैबिनेट ने एक अध्यादेश को पारित किया है जिसके तहत अब राज्य के सभी विश्वविद्यालयों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके परिसर में किसी तरह कि देश-विरोधी घटनाएं ना घटित हों। जाहिर है, योगी सरकार का यह अध्यादेश अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे विश्वविद्यालयों में मौजूद भारत-विरोधी तत्वों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है।
बीते मंगलवार को उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने इस अध्यादेश को पारित किया जिसे 18 जुलाई से शुरू होने जा रहे विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा। इस अध्यादेश में यह भी साफ किया गया है कि किसी भी यूनिवर्सिटी को सरकार की आज्ञा के बिना किसी व्यक्ति को कोई सम्मानसूचक उपाधि देने की अनुमति नहीं होगी। हालांकि, इस अध्यादेश के माध्यम से राज्य सरकार ने राज्य की यूनिवर्सिटीज़ में चलाये जाने वाले देश विरोधी एजेंडे पर भी कड़ा प्रहार किया है। इस अध्यादेश के मुताबिक अब अगर किसी विश्वविद्यालय में देशविरोधी गतिविधियों के जारी होने की खबर आती है, तो उसके लिए पूरी तरह विश्वविद्यालय का प्रशासन ही जिम्मेदार होगा और सरकार उस यूनिवर्सिटी पर उचित कार्रवाई भी कर सकेगी। इसका सीधा मतलब यह है कि राष्ट्र के खिलाफ दिन रात अपना प्रोपेगैंडा फैलाने वाले छात्रों के प्रति नर्म रुख दिखाने वाले यूनिवर्सिटी के अधिकारियों की ज़िम्मेदारी तय की जा सकेगी।
बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में बुद्धिजीवी का मुखौटा पहनकर भारत विरोधी नारे लगाना आजकल फैशन बन चुका है। उदाहरण के तौर पर अक्टूबर 2018 में राज्य की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 3 छात्रों द्वारा एक आतंकवादी के लिए प्रार्थन सभा का आयोजन करने के आरोप लगे थे। आरोपों के मुताबिक उन्होंने हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर मनन बशीर वानी के समर्थन में उस प्रार्थना सभा का आयोजन किया था। इसके अलावा उन छात्रों पर भारत विरोधी नारे लगाने के भी आरोप लगे थे। हालांकि, जब इस संबंध में पुलिस द्वारा उनपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज़ किया गया तो जम्मू कश्मीर के 1200 से अधिक छात्रों ने प्रदर्शन करने की धमकी दी थी।
हैरानी की बात तो यह है कि जिस आतंकवादी के लिए उन छात्रों ने प्रार्थना सभा का आयोजन किया था, वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का ही एक पूर्व छात्र था और उसने पढ़ाई छोड़कर आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन को जॉइन किया था। अब यहां सवाल यह उठता है कि आखिर इन यूनिवर्सिटीज़ में ऐसा क्या पढ़ाया जाता है कि ये छात्र पढ़ाई का रास्ता छोड़कर आतंकवाद और हिंसा को प्राथमिकता देते हैं। देश की यूनिवर्सिटीज़ और खासकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बढ़ते कट्टरपंथ का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है?
योगी सरकार 18 जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में इस अध्यादेश को पेश करेगी और कानून बनने के बाद यह नियम उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आने वाली 27 यूनिवर्सिटीज़ पर लागू होगा। राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते कट्टरवाद की रोकथाम के लिए योगी सरकार का यह कदम प्रशंसनीय है। राज्य के विश्वविद्यालयों में फैलता कट्टरवाद देश के लिए घातक है। योगी सरकार ने सही समय और सही दिशा में इस निर्णय को लेकर अपनी सरकार के रुख को स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार किसी भी सूरत में ऐसे भारत-विरोधी लोगों को बर्दाश्त नहीं करेगी। देश के अन्य राज्यों को भी उत्तर प्रदेश सरकार के उस कदम से सीख लेने की जरूरत है।