पाकिस्तान को डिटर्जेंट के एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के विज्ञापन से इतनी दिक्कत क्यों है ?

PC: gulfnews

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान महिलाओं को परिदृश्य में लाना ही नहीं चाहता। जब भी कहीं महिलाओं के अधिकार की बात की जाती है तो पाकिस्तान में हाहाकार मच जाता है। इस बार जब एक विज्ञापन के माध्यम से वहां के रूढ़िवादी लैंगिक भेदभाव पर सवाल उठाए तो लोग कंपनी की ही निंदा करने लगे।

अमेरिकी कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल के स्वामित्व वाले एरियल साबुन के विज्ञापन में महिलाओं से रूढ़िवादी नियमों को तोड़ने और करियर की दिशा में आगे बढ़ने को लेकर एक विज्ञापन बनाया था और इस विज्ञापन में विभिन्न पेशे की कई महिलाओं को दिखाया गया है जिसमें एक पत्रकार और एक डॉक्टर भी शामिल हैं। उन्हें रस्सी पर टंगी चार मैली चादरों को हटाते हुए दिखाया गया है। इन चादरों पर पाकिस्तान में महिलाओं के संबंध में रूढीवाद को लेकर कहे जाने वाली कुछ बातें लिखी है जैसे ‘लोग क्या कहेंगे?’, ‘चारदीवारी में रहो’ आदि।  और यह विज्ञापन विज्ञापन पाकिस्तान महिला क्रिकेट टीम की कप्तान बिस्माह मरूफ के इस कथन के साथ समाप्त होता है, “चारदीवारी में रहो, ये सिर्फ वाक्य नहीं बल्कि दाग हैं।”

इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर बहुत प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं जिसमें रूढ़िवादी ‘#boycottariel’ जैसे हैशटैग का प्रयोग कर रहे हैं।

https://twitter.com/SabaKhan18sabs/status/1142253901443469314

हद तो तब हो गयी जब कुछ लोगों ने इसे इस्लाम का अपमान बताया। और कुछ ने तो लिबरल्स के खिलाफ कड़े कार्रवाई की मांग भी कर दी जो पाकिस्तान में उदारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके अलावा कुछ पाकिस्तानी नियामकों ने इस विज्ञापन पर सेंसर लगाने और इसे हटाने की मांग की।

https://twitter.com/BilalYa69939224/status/1142354208164843520

 

एरियल का यह विज्ञापन पहली बार नहीं है जब किसी बड़ी कंपनी ने महिलाओं के अधिकारों को लेकर पाकिस्तान में बहिष्कार का सामना किया हो।

राइड-शेयरिंग ऐप केरेम को भी यह झेलना पड़ा था जब उसने इस साल की शुरुआत में एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें शीर्षिक था कि “यदि आप अपनी शादी से दूर भागना चाहते हैं, तो एक केरम बाइक बुक करें!” आलोचकों ने विज्ञापन के खिलाफ एक कानूनी याचिका दायर की और इसे “अनैतिक प्रचार अभियान” कहा।

यह देख आश्चर्य होता है कि आज 21वी सदीं मे भी महिलाओं को लेकर पाकिस्तान के लोगों की यह सोच है। पाकिस्तान में लगभग 40%, 6-10 वर्ष तक की लड़कियों को स्कूल में दाखिला नहीं होता है। 11-13 उम्र के लड़कियों के लिए यह आंकड़ा 70% तक बढ़ जाता है। हैरानी की बात तो यह है कि 14-15 वर्ष के लड़कियों में यह प्रतिशत  80 तक पहुंच जाता है। एक रिपोर्ट में लैंगिक समानता के आधार पर पाकिस्तान को पूरे विश्व में सीरिया के बाद दूसरा सबसे खराब देश बताया गया था। विश्व आर्थिक मंच (WEF) के 149 देशों में से “ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2018” में, पाकिस्तान केवल यमन से ऊपर है। आज वैश्विक कार्यबल की औसत महिला हिस्सेदारी 45.4 प्रतिशत है, लेकिन पाकिस्तान में महिलाओं की कार्यबल में हिस्सेदारी सिर्फ 26% ही है।

आज के समय में महिलाएं पुरुषो से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। सभी दकियानूसी सोच और प्रथाओं से ऊपर उठ कर महिलाएं अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रही हैं और इसमें वो सफल भी हो रही हैं। किसी भी देश का भविष्य उस देश के युवाओं के हाथ में होता है और इसमें महिलाओं की भागीदारी भी काफी महत्व रखता है, जो देश को उन्नति के रास्ते पर और आगे लेकर जाता है। पर पाकिस्तान को ये बात कहां समझ आने वाली है और अगर आती तो आज उसकी स्थिति दयनीय न होती।

महिलाओं के बीच उच्च रोजगार का मतलब परिवारों के लिए अधिक आय और देश के लिए अधिक आर्थिक गतिविधि होता है। यह बात सत्य है कि महिला सशक्तिकरण किसी भी राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विकास में प्राथमिकता होनी चाहिए लेकिन पाकिस्तान अपनी महिला विरोधी मानसिकता या यूं कहें पितृसत्ता से ही बाहर नहीं निकल पाया है।

गौरतलब है कि, जब पुरुष और महिला दोनों सामाजिक सामंजस्य, आर्थिक वृद्धि, और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं तो राष्ट्र को लाभ होता है। विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पता चलता है कि लैंगिक समानता से राष्ट्र को आर्थिक विकास में मदद मिलती है। महिलाओं और पुरुषों के बीच अधिक समानता वाले देशों में अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ रही हैं। पर पाकिस्तान तो समय के साथ कर्ज के दल-दल में फंसता चला रहा है फिर भी अपने देश में आर्थिक विकास को एक नया आयाम देने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा। अगर कर रहा होता तो इस तरह से अपने महिला विरोधी सोच का खुलेआम प्रदर्शन न कर रहा होता।

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