हाल ही में जाने माने राजनीतिक विश्लेषक एवं जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने टीएमसी प्रमुख एवं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बैठक की है। हाल ही में इनके पिता के आकस्मिक निधन के बाद ये जदयू उपाध्यक्ष की पहली राजनीतिक बैठक है। ये बैठक काफी लंबे समय तक चली, जिसके कारण राजनीतिक खेमे में काफी हलचल मची हुई है।
फिलहाल प्रशांत किशोर जदयू में उपाध्यक्ष के पद पर है, और ममता बनर्जी जदयू के सहयोगी और एनडीए गठबंधन के प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी की धुर विरोधी रही है। हाल ही में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए हैं ..ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रजदयू उपाध्यक्ष ममता बनर्जी के लिए काम करने को तैयार हो गए हैं और अगले महीने से उनके साथ जुड़ भी सकते हैं।
प्रशांत किशोर अपने राजनीतिक विश्लेषण एवं प्रबंधन के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव और साल 2014 लोकसभा चुनाव में उन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को अपनी सेवाएं दी थी। व्यक्तिगत मतभेदों के कारण 2015 में उन्होंने जदयू का दामन थामते हुए उसे एक बार सत्ता में महागठबंधन के सहारे पहुंचाया, और उन्हें मीडिया ने सिर आँखों पर बैठा लिया।
हालांकि, इनकी रणनीति 2017 में विफल साबित हुई, जब कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ने का फैसला किया था। इस गठबंधन का जनता ने कैसे स्वागत किया, वो सभी जानते हैं। ऐसे में यदि प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के साथ जुड़ने जा रहे हैं, तो इसके पीछे दो प्रमुख कारण हो सकते हैं: ममता बनर्जी का सत्ता पर पकड़ बनाए रखना, और प्रशांत किशोर का अपना राजनीतिक हित साधना।
अब सवाल ये उठता है कि यदि जदयू उपाध्यक्ष ऐसा कदम उठा रहे हैं, तो किसके कहने पर उठा रहे हैं? यदि सूत्रों की माने तो ममता बनर्जी के साथ बैठक करने से पहले ही उनकी नितीश कुमार के साथ भी इसी प्रकार की बैठक हुई थी। तो क्या प्रशांत किशोर नितीश कुमार की स्वीकृति ममता बनर्जी से मिले थे ?, या उनके मर्ज़ी के खिलाफ ममता बनर्जी से मिलने गये थे? अब प्रशांत किशोर के इस निर्णय के पीछे की अटकलों के प्रमुख कारण क्या हो सकते हैं उसे समझते हैं –
क्या प्रशांत किशोर नितीश बाबू की स्वीकृति से ममता से मिलने गए हैं?
कई राजनीतिक विशेषज्ञ और अनुभवी राजनेता इस बात पर विचार विर्मश करने में जुटे हैं कि कहीं ममता बनर्जी के साथ प्रशांत किशोर की मुलाक़ात नितीश कुमार की सहमति से तो नहीं है? अब इन अटकलों की वजह क्या है ? दरअसल, ममता से मिलने से ठीक पहले जदयू उपाध्यक्ष ने नितीश कुमार के साथ भी बैठक की थी। प्रशांत किशोर जदयू में नंबर दो की हैसियत रखते हैं और बिना बिना राष्ट्रीय अध्यक्ष की इजाजत के वो ममता बनर्जी से मिल नहीं सकते हैं. ममता बनर्जी के साथ मुलाकात से पहले नितीश कुमार से उनकी मुलाकात ने लोगों के मन में ये सवाल खड़े कर दिए हैं कि कहीं वो नितीश के कहने पर ही तो ममता से नहीं मिले.
यदि ये अटकलें सत्य है, तो नितीश कुमार 2014 की तरह एक बार फिर महागठबंधन के पुनरुत्थान की ओर अग्रसर हैं, जिससे एक बार फिर वे बिहार की सत्ता पर काबिज हो सके। जिस तरह से ममता बनर्जी और भाजपा में तकरार सामने आई है भाजपा इसे हलके में तो नहीं लेगी. हो सकता है भाजपा जदयू के साथ अपने गठबंधन को जारी न रखे और अलग होकर बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव लड़ने चाहिए।
क्या प्रशांत किशोर अपनी इच्छा से मिलने गए हैं?
पर जो अटकलें ज़्यादा सुर्खियां बटोर रही हैं, वो यह कि कहीं प्रशांत किशोर अपनी इच्छा से तो ममता बनर्जी से तो मिलने नहीं गए थे? ऐसा संभव भी हैं क्योंकि पिछले कई महीनों से प्रशांत और जदयू के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने बिहार में चुनावी गतिविधियों पर नज़र रखने के बजाए आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख वाईएस जगनमोहन रेड्डी के प्रचार प्रसार में जुटे रहे।
ऐसे में यदि प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के साथ संधि करते हैं, तो किसी को इसमें कोई अचरज नहीं होना चाहिए। हाल ही में ममता बनर्जी के वर्चस्व को ध्वस्त करते हुये भाजपा ने बंगाल में 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर अप्रत्याशित विजय दर्ज़ की। ममता को आभास हो चुका है की इनके पार्टी की गुंडागर्दी से जनता में भाजपा के लिए समर्थन और बढ़ेगा।
ऐसे में भाजपा की लोकप्रियता को चुनौती देने के लिए ममता हर विपक्षी नेता का समर्थन लेने के लिए प्रयासरत हैं, और इसी कड़ी में ममता ने प्रशांत किशोर का समर्थन भी प्राप्त किया है। ऐसी स्थिति में प्रशांत किशोर के राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगना तय है, क्योंकि ममता बनर्जी न तो नितीश कुमार जितनी प्रभावशाली है, और न ही नितीश कुमार इस अपमान को इतनी जल्दी भूलने वाली है।
बहरहाल, जदयू के राष्ट्रीय प्रभारी के सी त्यागी ने साफ ज़ाहिर कर दिया है, कि ऐसा कोई भी कदम यदि प्रशांत किशोर उठाएंगे, तो उन्हें पहले नितीश कुमार की स्वीकृति लेनी होगी। और तो और, जदयू उपाध्यक्ष ने कहा था की जगनमोहन रेड्डी के साथ उनकी साझेदारी उनके करियर की आखिरी असाइन्मेंट होगी। यदि वे ममता बनर्जी के साथ संधि करते हैं, तो उससे इनकी साख पर सवाल उठना तय है। ऐसे में यदि प्रशांत किशोर 2017 के यूपी के विधानसभा चुनावों की तरह ही पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ममता का साम्राज्य बचाने में असफल रहे, तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए।