प्रियंका गांधी वाड्रा को बनाया गया बलि का बकरा, कांग्रेस ने उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी पद से हटाया

प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस

(PC: Patrika)

राहुल गांधी को किसी भी प्रकार की आलोचना से बचाने के लिए कांग्रेस ने सोमवार को अपनी उत्तर प्रदेश की राज्य इकाई को पुनर्गठित करने का निर्णय लिया है। इसी के साथ राज्य के सभी जिला स्तर कमेटी को भी भंग करने का निर्णय लिया गया है।

यह निर्णय पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया और पार्टी के अन्य राज्य नेताओं से बैठक के बाद लिया गया। बैठक में राज्य में पार्टी के लचर प्रदर्शन पर भी गहन चर्चा हुई थी। बता दें कि उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से इस बार कांग्रेस केवल एक सीट पर जीत दर्ज कर सकी थी।

कांग्रेस के विधायी पार्टी के नेता अजय कुमार लल्लू को पूर्वी उत्तर प्रदेश में संगठन में व्यापक बदलाव करने का दायित्व सौंपा गया है। ऐसे में अब प्रश्न ये उठाया जा रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा का क्या होगा ? क्या वो प्रभारी पद पर बनी रहेंगी ? यदि सूत्रों की माने, तो उन्हें आधिकारिक रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी के तौर पर हटाया जा चुका है।  

निस्संदेह यह पार्टी का प्रियंका वाड्रा पर सारा दोष डालने का एक तरीका है, जिससे किसी भी तरह राहुल गांधी पर चुनाव हरवाने का आरोप न लग सके। चुनाव के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद राहुल गांधी ने अशोक गहलोत, कमलनाथ जैसे मुख्यमंत्रियों को इनके राज्यों में कांग्रेस की हार के लिए दोषी ठहराया।

जहां राजस्थान में कांग्रेस एक भी सीट अर्जित करने में असफल रही, तो वहीं मध्य प्रदेश को केवल एक सीट मिल सकी थी। दोनों के पीछे राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और कमलनाथ के पुत्रमोह को दोषी ठहराया। जहां अशोक ने अपने बेटे वैभव को जिताने में अपनी सारी ताकत झोंक दी, तो वहीं कमलनाथ ने भी अपने पुत्र के लोकसभा क्षेत्र पर ही ध्यान देना उचित समझा। ये अलग बात है कि अशोक गहलोत न अपने पुत्र को जिता पाये, और न ही राजस्थान में कांग्रेस की साख बचा पाये, जबकि पुत्रमोह में कमलनाथ ने अपनी सीट तो बचा ली, पर पूरा राज्य भाजपा को सौंप बैठे।

इसके पश्चात कांग्रेस में वंशवाद की आलोचना हेतु उन्होंने पी चिदम्बरम का नाम लिया। क्योंकि उन्होंने कार्ति चिदम्बरम के नामांकन के पीछे पार्टी छोड़ने की धमकी दे दी थी. ऐसे में राहुल गांधी को विवश होकर कार्ति चिदम्बरम को चुनाव के मैदान में उतारना पड़ा। हालांकि, बाकी वंशवादियों को दोष देते देते राहुल गांधी शायद अपने आप को भूल बैठे, जो इस देश के सबसे बड़े वंशवादियों में से एक है।

चुनाव में कांग्रेस को मिली हार का दोष इनके चुनावी विश्लेषक प्रवीण चक्रवर्ती पर भी मढ़ने का प्रयास किया गया। प्रवीण चक्रवर्ती पार्टी के डाटा एनालिटिक्स विभाग प्रमुख एवं कांग्रेस के चर्चित शक्ति परियोजना के प्रमुख भी है। इस परियोजना का मुख्य लक्ष्य था जनता के मूड का सर्वेक्षण करना और जमीनी स्तर पर डाटा इकट्ठा कर अपने अभियान को जन संबंधी समस्याओं के इर्द गिर्द केन्द्रित करना।

परंतु इनके अभियान जब बुरी तरह असफल सिद्ध हुए, तो प्रवीण चक्रवर्ती को ही ऐसे भ्रामक डाटा के लिए आरोपी बनाया जाने लगा। राहुल गांधी और बाकी कांग्रेस नेताओं ने साफ साफ बताया था कि उनका ध्यान राफेल डील पर उपजे विवाद पर केन्द्रित थे। इसी शक्ति परियोजना डाटा के आधार पर पार्टी ने अपना चुनावी अभियान चलाया था, जिसका अर्थ है कि असली दोष उस डाटा का है, जिसका उपयोग पार्टी के प्रचार प्रसार में किया गया था। किसी ने भी ये पूछने की हिम्मत नहीं की कि आखिर कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार कैसे जनता के मूड को भांपने में असफल हुए ? उन्होंने अपनी रणनीतियों में समय के साथ क्यों कोई बदलाव नहीं किया?

अब हाल ही में उन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा को निशाना बनाया है। चुनाव से ठीक पहले उन्हें सक्रिय राजनीति से जोड़ा गया था और उन्हें यूपी के पूर्वांचल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र का दायित्व सौंपा गया था। ये अपने आप में काफी बड़ा दांव था, विशेषकर ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसे राजनीति की एबीसीडी भी ठीक से नहीं आती थी, परंतु वंशवाद के मद में चूर कांग्रेस ने उन्हें ही चुनना उचित समझा। शायद पार्टी को उत्तर प्रदेश में मिलने वाली असफलता का पहले ही आभास हो चुका था, इसलिए कई जगह राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने यह बयान भी दिये कि कांग्रेस प्रत्याशी का मुख्य लक्ष्य भाजपा के वोट काटना है, जीतना नहीं। ऐसा लगता है कि पार्टी प्रियंका को प्रारम्भ से ही बलि का बकरा बनाने में लगी हुई थी।

राहुल गांधी ने अप्रत्याशित दांव चलते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात की, परंतु पार्टी ने उन्हें शांत करते हुए अध्यक्ष पद पर नेहरू गांधी वंश का वर्चस्व बनाए रखने का दबाव डाला। प्रियंका वाड्रा को राहुल गांधी के नेतृत्व के विकल्प के तौर पर कई लोग देख रहे थे, और शायद यही वजह भी है कि पार्टी में राहुल गांधी के समर्थकों ने पूरा प्रयास किया कि ऐसा न हो। स्पष्ट है उन्हें चुनाव में हार का दायित्व लेने के लिए लाया गया था और अब पूर्वांचल के प्रभारी पद से हटाते हुए कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से यह जरुर कह दिया कि, ‘आपका राजनीतिक सफर यहीं खत्म होता है। कुर्बानी देने के लिए धन्यवाद।‘

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