आजादी के बाद शुरुआती दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह दिशाहीन थी। सरकार बड़े उद्योगों से निजी कंपनियों को दूर रखती थी और इन उद्योगों पर सिर्फ सरकार का ही एकाधिकार होता था। इस प्रणाली के तहत निजी कंपनियां सिर्फ छोटे उद्योगों तक ही सीमित रहती थी। वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद ही बड़े उद्योगों में निजी कंपनियों का प्रवेश संभव हो सका। हालांकि उसके बाद भी सरकार का रुख ‘प्रो-मार्केट’ की बजाय ‘प्रो-बिजनेस’ रहा यानि सरकार ने बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में निवेश किया और बड़ी संख्या में सरकारी कंपनियों का संचालन जारी रहा। लेकिन वर्ष 2014 के बाद सरकार के इस रुख में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। सरकार ने बड़े पैमाने पर नुकसान अर्जित कर रही सरकारी कंपनियों से विनिवेश करना शुरू किया और उनका निजीकरण करने पर ज़ोर दिया। अब सरकार रेलवे में भी इसी दिशा में काम करती दिखाई दे रही है जहां अब उसने कम भीड़-भाड़ वाले और ज़्यादातर पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रेल रूट्स को भारतीय रेलवे की एक सहयोगी कंपनी आईआरसीटीसी के जरिये निजी कंपनियों को सौंपने का विचार किया है। अभी फिलहाल के लिए व्यवस्था पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई है और इस प्रोजेक्ट के तहत आने वाले 100 दिनों के अंदर निजी कंपनियों को भी आमंत्रित किया जा सकता है।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत अभी रेल विभाग ने अपनी सहयोगी कंपनी आईआरसीटीसी को 2 रेलगाड़ियों का प्रस्ताव दिया है। ये रेलगाड़ियां गोल्डन क्वाड्रीलेटरल रूट पर दौड़ेंगी। आपको बता दें कि गोल्डन क्वाड्रीलेटरल रूट देश के चार बड़े शहरों यानि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को आपस में जोड़ता है। आईआरसीटीसी इन दो रेलगाड़ियों के बदले रेलवे को वार्षिक भुगतान करेगी। आईआरसीटीसी बाद में इन रूट्स पर रेलगाड़ी के संचालन के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित करेगी। मौजूदा रेल मंत्री पीयूष गोयल निजीकरण के बड़े समर्थकों में से एक रहे हैं और रेलवे को लेकर उनकी नीतियों में यह साफ झलक भी रहा है।
भारतीय रेलवे बड़े पैमाने पर विकेन्द्रीकरण करने पर भी विचार कर रही है, जहां प्रत्येक कार्य को एक अलग विभाग को सौंपा जाएगा। प्रत्येक विभाग लाभ अर्जित करने पर ध्यान देगा और संचालन की जानकारी प्रत्येक विभाग के निर्देशक को दी जाएगी। उदाहरण के तौर पर कोंकण रेलवे विभाग का संचालन सुगम तरीके से हो पता है क्योंकि वह राज्य सरकार के तहत एक अलग विभाग के तौर पर काम करती है। अलग-अलग विभाग होने से भविष्य में रेलवे को निवेश जुटाने में भी आसानी हो सकेगी।
मालवाहक रेलगाड़ियों और यात्री रेलगाड़ियों के अलग-अलग संचालन से भी रेलवे की कार्यप्रणाली में काफी सुगमता देखने को मिलेगी। अभी मालवाहक रेलगाड़ियों के संचालन से तो रेलवे को लाभ अर्जित होता है लेकिन यात्री रेलगाड़ियों के संचालन में रेलवे को हर रोज भारी नुकसान उठाना पड़ता है। अभी सरकार उज्जवला स्कीम की तरह ही रेलवे में भी लोगों से निम्न वर्ग की यात्रा पर मिलने वाली सब्सिडी को छोडने का आह्वान कर सकती है। उज्ज्वला स्कीम के तहत सरकार के आह्वान करने पर लगभग 1 करोड़ लोगों ने स्वेच्छा से एलपीजी सब्सिडी को त्याग दिया था। इसी योजना को अपनाकर सरकार अब रेलवे में अपने नुकसान को कम करने की योजना बना रही है।
पीयूष गोयल ने रेल मंत्रालय संभालने के बाद कई क्रांतिकारी बदलाव किए। उन्होंने शुरू से ही रेलवे कर्मचारियों के निठल्लेपन का विरोध किया और कर्मचारियों को ‘करो या मरो’ का मंत्र दिया। मंत्रालय ने यह साफ कर दिया कि प्रदर्शन के आधार पर ही कर्मचारियों को पदोन्नति दी जाएगी और कामचोर कर्मचारियों को किसी सूरत बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह भारतीय रेलवे में एक बहुत बड़ा और सकारात्मक बदलाव है और इसका पूरा श्रेय पीयूष गोयल को ही जाता है।