30 मई 2019 का वो दिन जब नरेंद्र मोदी ने दोबारा देश के पीएम पद की शपथ ली, उस वक्त सबकी निगाहें नए मोदी मंत्रिमंडल पर टिकी हुई थीं। जब पीएम मोदी के नए मंत्रिमंडल का ऐलान हुआ, तो उसमे कुछ चौंकाने वाले नाम शामिल थे जिसमें एस जयशंकर का नाम सबसे खास रहा। जयशंकर को मोदी कैबिनेट में विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया जिसने हर किसी को हैरत में ड़ाल दिया। लेकिन एस जयशंकर को विदेश मंत्रालय सौंपे जाने से किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। अपनी कुशलता के दम पर वे पहले ही साबित कर चुके हैं कि इस पद के लिए उनसे ज्यादा काबिल इंसान कोई और हो ही नहीं सकता। अब जयशंकर ने इस पद का जिम्मा संभालने के बाद एक्शन लेना भी शुरू कर दिया है और वह पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नक्शे कदम पर चलते नजर आ रहे हैं।
जिस तरह से सुषमा स्वराज सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हुए आम जनता की हर मुसीबत को सुलझाने का प्रयास करती थीं, ठीक वैसे ही अब एस जयशंकर भी काम कर रहे हैं, उनका पहला कदम सुषमा स्वराज के द्वारा किए गए कामों के जैसा ही मालूम पड़ रहा है। दरअसल रिंकि नाम की एक ट्विटर यूज़र ने एस जयशंकर और स्मृति ईरानी को टैग करते हुए एक ट्वीट किया और लिखा “मेरी बेटी 2 साल की है और मैं उसको 6 महीने से पाने की कोशिश कर रही हूं, वह अमेरिका में हैं और मैं यहां भारत में..प्लीज मेरी मदद करें। मैं आपके जवाब का इंतज़ार करूंगी..इसके कुछ समय बाद अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने महिला को हर संभव मदद का भरोसा दिलाते हुए कहा कि, अमेरिका में मौजूद हमारे राजदूत इसको देख रहे हैं, आप पूरी जानकारी इंडियन एंबेसी को भेज दें’। इसके बाद उनके पास अमेरिका में मौजूद भारतीय राजदूत हर्षवर्धन श्रृंगला ने उनको फोन किया और उनको हर संभव मदद देने की बात कही । इसके अलावा मणि चटोपाध्याय नाम के एक अन्य सख्स ने वीडियो शेयर कर विदेश मंत्री जयशंकर से मदद मांगी और कहा ‘मैं यहां साउदी में फंस गया हूं मुझे भारत जाना है. प्लीज मेरी मदद करें’। इस व्यक्ति का भी एस जयशंकर ने जवाब दिया और अधिकारियों को इसकी मदद करने को कहा।
जयशंकर का लोगों के साथ सोशल मीडिया पर जुड़ाव देखकर लोग यह कह रहे हैं कि, वह पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के कदमों को फॉलो करते हुए बिल्कुल वैसे ही काम कर रहे हैं और लोगों की मदद करने के लिए प्रयासरत हैं।
वहीं एस जयशंकर को विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपे जाने के बाद लोग सवाल कर रहे थे कि, आखिर उनको इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी गई, लेकिन अगर आप जयशंकर के विदेश सचिव के कार्यकाल पर नजर डालेंगे तो यह साफ हो जाएगा हो जाएगा कि, आखिर पीएम मोदी ने उनपर भरोसा क्यों जताया है। पूर्व कूटनीतिक विशेषज्ञ सुब्रमण्यम जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) के अधिकारी बने थे। बतौर आईएफ़एस अफसर उन्होंने कई अहम पदों पर देश की सेवा की और यूएसए, चीन जैसे देशों में भारत के राजदूत भी रहे। सुब्रमण्यम जयशंकर ने सिंगापुर में हाई कमिश्नर की भी भूमिका निभाई है और उनको चीन एवं अमेरिकी मामलों का जानकार भी माना जाता है। एस जयशंकर 1996 से 2000 तक जापान में राजदूत थे। इसके बाद उन्होंने साल 2004 तक चेक रिपब्लिक में भारत के राजदूत का पद संभाला और यहां से लौटने के बाद उन्होंने तीन साल तक विदेश मंत्रालय में अमेरिकी विभाग की जिम्मेदारी निभाई। साल 2007 में उन्हें बतौर इंडियन हाई कमिश्नर सिंगापुर भेजा गया था जहां उन्होंने सीईसीए यानि व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते को अमली जामा पहनाने में सहायता की। उन्होंने सिंगापुर में ही प्रवासी भारतीय दिवस एवं आईआईएम पैक्ट को भी बढ़ावा दिया।
इसके बाद साल 2009 से 2013 तक वो चीन में भारत के राजदूत रहे। बतौर राजदूत इनका साढ़े चार साल का कार्यकाल इस पद के लिए सबसे लंबा रहा। साल 2012 में उन्होंने तिब्बत का दौरा किया और ऐसा करने वाले वे दस साल में पहले भारतीय राजदूत बने। बतौर भारतीय राजदूत एस जयशंकर भारत और चीन के बीच बनते बिगड़ते कूटनीतिक संबंधों के कई अहम पड़ावों के साक्षी भी बने।इसके बाद उन्हें अमेरिका में भारत का राजदूत बनाया गया। साल 2015 से 2018 तक वह पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में विदेश सचिव के तौर पर कार्यरत रहे। जयशंकर ने देश के कुछ ऐसे मसलों को हल किया है जो लंबे समय से विवाद का कारण बना हुए थे, चाहे वह देवयानी खोबरागड़े मामला हो या फिर डोकलाम विवाद, सभी का सफलतापूर्वक निपटारा करके जयशंकर ने अपनी कूटनीतिक कुशलता को दर्शाया है। भारत-अमेरिका के बीच बड़ी न्यूक्लियर डील को अंजाम तक पहुंचाना भी जयशंकर के कार्यकाल में ही संभव हुआ है। इसके अलावा उन्होंने भारत और चीन के बीच कूटनीतिक लड़ाई का कारण बना डोकलाम विवाद भी बखूबी सुलझाया था।
आपको यह जानकार हैरानी होगी कि जयशंकर की कूटनीतिक कुशलता को देखते हुए पूर्व पीएम मनमोहन सिंह उन्हे विदेश मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन पार्टी दबाव के चलते वह ऐसा करने में असफल रहे थे। चीन अमेरिका के साथ अच्छे राजनयिक संबंध और राजदूतों से तालमेल बेहतर होने का फायदा अब उनके विदेश मंत्रालय के पद पर रहते हुए देखने को मिलेगा और आगे आने वाले समय में सभी देशों के साथ भारत कूटनीतिक स्तर पर अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाने में सफल हो सकेगा।