भ्रष्टाचार से लड़ने की मुहिम से शुरू हुआ आंदोलन ऐसे शर्मनाक मुकाम पर पहुंच गया है जब चुनाव जीतने के लिए न केवल जनता को बल्कि देश, प्रदेश और संस्थाओं तक को नुकसान पहुंचाने में भी दिल्ली सरकार गुरेज नहीं कर रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से महिलाओं को मेट्रो रेल में मुफ्त यात्रा सेवा उपलब्ध कराने की बात कही है वह इसी तरह का कदम है क्योंकि चुनावी साल में सरकार लोकलुभावन कदमों से अपनी असफलता छुपाने की असफल कोशिश में है।
आम तौर पर इस तरह के मामलों में चुप्पी साधे रखने वाले दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरशन के पूर्व प्रमुख ई श्रीधरन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्रलिखकर दिल्ली मेट्रो रेल को बर्बाद होने से बचाने की अपील की है। श्रीधरन के पत्र के जवाब में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जो लिखा वह इस बात का संकेत है कि आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार न देश से है, न व्यवस्था से और न जनता से वह केवल दिल्ली के मुख्यमंत्री कि महत्वाकांक्षा के इर्द गिर्द है। दिल्ली सरकार न केवल अपने वायदों को पूरा करने में नाकामयाब रही है बल्कि एक बार फिर पांच सालों में अपने काम के बदले वोट मांगने की बजाय इस तरह के हथकंडो को चुनावी हथियार बनाने के फ़िराक़ में है। उपमुख्यमंत्री का यह कहना हास्यास्पद है कि मेट्रो में लोग इसलिए नहीं आ रहे है कि यह महंगी है।
सरकार लास्ट माइल कनेक्टिविटी जैसे काम जो उनके वायदों में शुमार था उसे पूरा करने में नाकामयाब रही है जो कि मेट्रो तक लोगों के न पहुंच पाने का प्रमुख कारण है। लोक परिवहन को लेकर आप ने दिल्ली की जनता को सब्जबाग दिखाए थे जिसको पूरा करने में नाकामयाब रही है और अब जब 2019 के लोक सभा के चुनावों आप दिल्ली में सात में से पांच सीटों पर तीसरे नंबर खिसक गई उन परिस्थितियों में आप के नेताओं की नींद उड़ना लाजमी है। श्रीधरन ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा कि महिलाओं को मुफ्त यात्रा सुविधा से डीएमआरसी को सालाना 1000 करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है जो न केवल इसकी आगे की विकास योजनाओं को बाधित करेगा बल्कि जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी का कर्ज भी चुकता नहीं कर पाएगा।
अमूमन लोगों के लिए घर से मेट्रो स्टेशन और मेट्रो स्टेशन से कार्यस्थल तक पहुंचना ज्यादा दुष्कर होता है और महिलाएं इसको ज्यादा महसूस करती हैं। मुफ्त यात्रा सुविधा इस बात की गॉरन्टी नहीं है कि महिलाएं इसका उपयोग करेंगी ही। मेट्रो स्टेशन को सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों जैसे मेट्रो फीडर्स, इ-रिक्शा और अन्य से जोड़ने में सरकार असफल रही है। इससे साफ़ है कि सरकार अपनी धोखा देने की प्रवृत्ति को एक बार फिर से दोहराते हुए इस योजना के माध्यम से दिल्ली की जनता को एकबार फिर से ठगने की तयारी में है।
सिसोदिया ने अपने पत्र में कहा है कि सरकार टोकन खरीद कर महिलाओं को बांटेगी। प्रश्न यह है कि क्या सरकार टोकन बांटने के लिए शहर भर के मेट्रो स्टेशन पर अपना टोकन काउंटर खोलेगी, इन काउंटर पर किन लोगों को नियुक्त करेगी और इनका खर्च कौन वहन करेगा? अगर इन्हें कहीं और से लाकर इस काम में लगाया जाएगा तो जिस काम से उन्हें हटाया जाएगा उसका जिम्मा कौन उठाएगा। कोई जिम्मेदार सरकार इस तरह की बात कैसे कर सकती है क्योंकि क्या सरकार कैश देकर टोकन खरीदेगी और अगर कैश देकर खरीदेगी तो किस मद में पैसा निकालेगी और यह काम किसके जिम्मे होगा और क्या इन परिस्थितियों में यह सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित रह पाएगी और इनका दुरूपयोग नहीं होगा?
इससे इतर डीएमआरसी में दिल्ली सरकार के साथ-साथ केंद्र की बराबर की भागीदारी है, तो क्या दिल्ली सरकार का केंद्र से इस मसले पर मशविरा करना भी मुनासिव नहीं है और मनमाने ढंग से घोषणाएं करने की अपनी पुरानी प्रवृत्ति पर ही काम करती रहेगी। यूनिफाइड ट्रांसपोर्ट कमांड जो दिल्ली में बनाया जाना था वो भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है जिसमें इ-रिक्शा, ऑटो, टैक्सी, ओला, उबर और मेट्रो समेत पूरी व्यवस्था को एकीकृत करके परिवहन व्यवस्था को चाक चौबंद करना था, लेकिन दिल्ली सरकार चार साल से कुम्भकर्णी नींद में है। श्रीधरन ने अपने पत्र में कहा है कि महिलाओं को छूट दिए जाने के बाद अन्य वर्ग जैसे कि छात्र, वरिष्ट नागरिक और दिव्यांगों को भी इस तरह कि सुविधाएं दिए जाने कि मांग उठेगी और यह कहां जाकर रुकेगी यह कहना मुश्किल होगा।