पहले कार्यकाल की तरह ही मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में भी सुरक्षा नीति को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुकी है। इसके संकेत तो तभी मिल गये थे जब प्रधानमंत्री मोदी ने अमित शाह को कैबिनेट में शामिल कर उन्हें देश के गृह मंत्री का पदभार सौंपा था. ऐसा करके उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि इस बार देश की सुरक्षा के साथ इस बार कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। अमित शाह गुजरात में गृह मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं और वो अपनी कुशल रणनीतियों के लिए जाने जाते है। अमित शाह ने गृह मंत्री पद संभालने के बाद से जो फैसले लिए उससे स्पष्ट भी हो गया कि देशविरोधी गतिविधियों के प्रति जीरो टोलेरेंस नीति अपनाई जायेगी। पहले उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर काम करना शुरू किया। चाहे वो जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाना हो या अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्रों में रहने वाले हिंदुओं को सरकारी योजनाओं और नौकरियों का लाभ देना हो या एनआरसी के जरिये घुसपैठियों को देश से निर्वासित करना हो।
अमित शाह के इन फैसलों में सबसे अहम भूमिका उनके राज्य मंत्री नित्यानन्द राय और जे किशन रेड्डी के अलावा उनकी टीम की रही है। अमित शाह नॉर्थ ब्लॉक के अफसरों का चुनाव खुद किया है और ये सभी कई अहम मुद्दों पर उनकी मदद भी कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार उनकी इस टीम में कुल 16 अफसर अनवरत काम कर रहे हैं। अभी हाल में अजय कुमार भल्ला को गृह सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। इस मंत्रालय में वह ओएसडी यानि अफसर ऑन स्पेशल ड्यूटि के रूप में काम करेंगे। अजय कुमार भल्ला की जवाबदेही सीधे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को होगी। गृह मंत्रालय के पास अब नई टीम है। इंटेलिजेंस के नए डायरेक्टर अरविंद कुमार और रॉ चीफ सामंत कुमार गोयल के साथ-साथ अब अजय कुमार भल्ला भी गृहमंत्राल के अहम अधिकारी होंगे।
अमित शाह की आईएएस और आईपीएस की इस टीम में 16 पुरुष अफसर और 2 महिला अफसर शामिल है। अमित शाह के प्राइवेट सेक्रेटरी साकेत कुमार भी इस टीम के प्रमुख सदस्य है और गृह मंत्री के साथ उनका यह कार्यकाल 29 जुलाई 2023 तक रहेगा। टीम के अन्य प्रमुख अधिकारियों में राजभाषा के सचिव शैलेश, सीमा प्रबंधन मामलों के सचिव बी.आर. शर्मा शामिल है। इस टीम के प्रमुख सदस्यों में आंतरिक सुरक्षा मामलों के विशेष सचिव एपी माहेश्वरी को इस वर्ष फरवरी में कार्यभार सौंपा गया था और अमित शाह ने उन्हें ही आंतरिक मामलों में कड़े फैसले लेकर कानून व्यवस्था सुधारने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। विशेष सचिव और वित्तीय सलाहकार भूपेंद्र सिंह, केंद्र-राज्य के विशेष सचिव सतपाल चौहान जैसे अधिकारी भी इस टीम का अहम हिस्सा है। वहीं जम्मू-कश्मीर के लिए अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार, केंद्र शासित प्रदेश मामलों के अतिरिक्त सचिव गोविंद मोहन तथा पीएम के अतिरिक्त सचिव विवेक भारद्वाज भी अमित शाह की स्पेशल 16 में भूमिका निभा रहे है।
इस टीम में जाइंट सेक्रेटरी भी शामिल है। इनमें वामपंथी चरमपंथ के मामलों के संयुक्त सचिव प्रवीण वशिष्ठ, पूर्वोत्तर राज्यों के लिए संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग, विदेश मामलों के संयुक्त सचिव अनिल मलिक, सीमा प्रबंधन के लिए संयुक्त सचिव ए.वी. धर्म रेड्डी, पुलिस मामलों के संयुक्त सचिव अमिताभ खर्कवाल और आंतरिक सुरक्षा मामलों के लिए संयुक्त सचिव एस.एल.एल. दास टीम में अन्य अधिकारियों में शामिल हैं। दो महिला अधिकारियों में महिला सुरक्षा की संयुक्त सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव जिन्हें आंतरिक सुरक्षा का अतिरिक्त प्रभार भी मिला है तथा सीमा प्रबंधन की संयुक्त सचिव निधि खरे शामिल हैं।
इन अधिकारियों की मदद से अमित शाह देश की आंतरिक सुरक्षा के मामलों पर कड़े फैसलों को लागू करना भी शुरू कर दिया है। जम्मू कश्मीर और एनआरसी मामलों पर तो शाह की टीम का विशेष ध्यान है। इस टीम का शुरू से ही प्लान रहा है कि एनडीए की सरकार द्वारा विकास के लिए उठाये गये कदमों के जरिये जनता में मोदी सरकार के प्रति विश्वास को और मजबूत किया जाए और फिर धीरे से कड़े फैसले लेकर कश्मीर में अलगाववादी विचार धारा को ही जड़ से खत्म कर दिया जाए। ऐसा हुआ भी है जैसे एनआईए ने कई हुर्रियत नेताओं की गिरफ्तारी की और पाकिस्तान के साथ इनके कनेक्शन का खुलासा भी किया है। यही नहीं जम्मू कश्मीर बैंक पर छापा मार कर हुर्रियत नेताओं की फंडिंग पर भी रोक लगाई गई है। जम्मू कश्मीर राज्य में अब कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास पर भी विचार चल रहा है। पिछले कुछ महीनों में आतंकी घुसपैठ भी कम हुए हैं तथा बीएसएफ़ ने ऑपरेशन सुदर्शन चला कर सीमाओं को भी सुरक्षित किया जो जम्मू-कश्मीर को आतंक रहित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था। यह सब अमित शाह और उनकी टीम का ही फैसला था जिससे जम्मू कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ने में सफलता मिल रही है। अमित शाह के नेतृत्व में इस टीम का अगला लक्ष्य संविधान के अनुच्छेद 35A तथा धारा 370 हटाने की होगी जिससे पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर पर शासन करना केंद्र सरकार के लिए आसान हो जाएगा।
इस टीम की दूसरी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी एनआरसी की है। इस मामलें पर भी इस टीम ने सख्त रवैया अपनाया है। पिछले दिनों अमित शाह ने राज्य सभा में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि देश की इंच-इंच जमीन से अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें निर्वासित किया जाएगा, साथ ही उन्होंने अपनी रणनीति भी बताई कि कैसे वो देश से घुसपैठियों को देश से बाहर निकालेंगे। उन्होंने कहा था कि “देश की इंच-इंच जमीन पर जितने भी अवैध अप्रवासी रहते हैं, घुसपैठिए रहते हैं, इनकी हम पहचान करने वाले हैं और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत हम इनको डिपोर्ट करेंगे।“
ऐसे घुसपैठियों से निपटने के लिए अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय ने द फॉरेनर्स एक्ट 1946 की धारा 3 को लागू किया है, जो अवैध रूप से रह रहे बाहरी लोगों को पकड़कर वापिस उनके घर डिपोर्ट कराने की स्वतंत्रता देती है। साथ ही अमित शाह ने राज्य सभा में यह भी कहा था कि जो हिन्दू एनआरसी के कारण देश से बाहर होते हैं उन्हें वापस अपने देश में लाने कि जरूरत पड़ी तो केंद्र की मोदी सरकार एक अलग बिल भी लाने को तैयार है।
देश के गृह मंत्री अमित शाह की नीति कश्मीर को लेकर स्पष्ट है। देशविरोधी गतिविधियों का समर्थन करने वालों के लिए उनके हृदय में दया का कोई भाव भी नहीं है। जब उन्होंने सदन में चर्चा के दौरान जब उन्होंने बताया कि धारा 370 स्थायी नहीं है, तभी कश्मीर नीति पर इनकी मंशा जगज़ाहिर हो चुकी थी। और यह सब अमित शाह जैसे गृह मंत्री के कुशल नेतृत्व के अंदर ही यह सभी फैसले किए जा सकते है जिससे भारत अब तक वंचित रहा था।