एक महीने में अंजना ओम कश्यप ने दूसरी बार अपनी घटिया पत्रकारिता से लोगों को आक्रोशित किया है

देश के पत्रकारों ने आज अपने सभी मूल्यों को पीछे छोड़ टीआरपी जर्नलिज़्म का रास्ता अपना लिया। अपने आप को वरिष्ठ पत्रकार कहने वाले इन पत्रकारों के लिए टीआरपी ही सब कुछ बनकर रह गई है और इस टीआरपी के लिए ये किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। अंजना ओम कश्यप भी ऐसे ही पत्रकारों में से एक है। एक महीने से भी कम समय में वे दो बार अपनी ओछी पत्रकारिता के उदाहरण दे चुकी हैं। पिछले महीने जहां उन्होंने बिहार के एक अस्पताल के आईसीयू में घुसकर अपनी आक्रामक पत्रकारिता पेश की थी, तो वहीं बीजेपी विधायक की बेटी साक्षी मिश्रा द्वारा अनुसूचित जाति के युवक अजितेश कुमार से विवाह करने के मामले पर भी अंजना ने अपना गैर-जिम्मेदाराना रवैया दिखाते हुए साक्षी के परिवारजनों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

अगर साक्षी मिश्रा वाले मामले की बात करें तो अंजना ओम कश्यप के अनुसार अजितेश कुमार से विवाह करने के कारण साक्षी के पिता एवं भाजपा विधायक राजेश मिश्रा उनसे काफी गुस्सा हैं। हालांकि, साक्षी ने अपने पिता को प्रत्यक्ष रूप से दोषी नहीं ठहराया, पर अपने परिवार और राजेश मिश्रा के दोस्त राजीव राणा से अपनी जान को खतरा बताने के संकेत अवश्य दिये। साक्षी का आज तक को दिये इंटरव्यू के अनुसार, ‘जब मैं अजितेश से बात करती थी तो सबसे पहले इसकी जानकारी मेरे भाई विक्की को लगी। वह बार-बार इस बारे में मुझसे पूछता था। इस दौरान साक्षी ने अपनी मां पर भी आरोप लगाए और यहां तक कि अपनी मां पर हॉरर किलिंग का डर दिखाने का भी आरोप लगाया। इस खबर को अंजना ने बढ़ा चढ़ा कर दिखाया और ऐसे पेश किया जैसे राजेश मिश्रा अपनी ही बेटी के सबसे बड़े दुश्मन हो। 

अंजना ने राजेश मिश्रा एवं उनके परिवार को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्हें इस प्रकरण के लिए दोषी ठहराने का काम शुरू कर दिया। ‘एक विधायक की बागी बेटी की ये दास्तां अब देश के सामने है’ जैसी खबरें दिखाई। अपने तथ्यों के माध्यम से अंजना ने साक्षी के पिता को बदनाम करने की पूरी कोशिश की।

अगर तथ्यों पर ध्यान दें तो साक्षी मिश्रा की आयु 23 वर्ष से ज़्यादा नहीं है, और उसके पति अजितेश 29 वर्ष के पार है। इतना ही नहीं, अजितेश की इससे पहले एक सगाई भी हो चुकी है, जो बाद में टूट गयी थी। सूत्रों के अनुसार जिस मंदिर में इस प्रेमी युगल ने विवाह किया था, उस मंदिर के महंत ने इस विवाह का खंडन करते हुए कहा है कि मंदिर में इस तरह का कोई विवाह हुआ ही नहीं है 

हालांकि इस पूरे प्रकरण को अंजना ने यहां ब्राह्मण और दलित के एंगल को दिखाकर जातिवाद के जहर से अपनी टीआरपी को तेजी से ऊपर ले जाने का भी काम किया जो बेहद शर्मनाक है। हमारे समाज में आज भी अगर कोई लड़की अपने पिता से अपने प्रेम-संबंध के बारे में बताती है तो जाहिर है कि पिता को अपनी बेटी के भविष्य की चिंता होती है। वो कई सवाल पूछता है क्योंकि उसे अपनी बेटी की फ़िक्र है। किसी भी परिवार में प्रेम संबंध को लेकर थोड़े मनमुटाव देखने को मिलते हैं परंतु अधिकतर मामलो में परिवार वाले शादी के लिए मान भी जाते हैं। परन्तु, अंजना ने इस खबर को जिस तरह से दिखाया वो घटिया है, ऐसा करके उन्होंने एक बाप को अपनी बेटी का विलेन बना दिया जो बेहद शर्मनाक है.. साक्षी और उसके पति को चैनल पर दिखाना और राजेशा मिश्रा को विलेन बताना कहां तक सही है? सिर्फ टीआरपी के लिए इस हद तक गिर जाना ये आज की पत्रकारिता का बेहद घटिया स्तर है। इससे न सिर्फ उस परिवार को समाज के ताने सुनने को मिलते हैं बल्कि परिवार के लोगों का जीना मुश्किल हो जाता है।

इससे पहले अंजना की आईसीयू वाली आक्रामक पत्रकारिता को कोई भूला नहीं है। पिछले महीने बिहार में इंसेफलाइटिस के कारण मासूमों की हालत पर आजतक की एंकर अंजना ओम कश्यप कैमरा और माइक लेकर लाइव कवरेज के लिए सीधे मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज पहुंच गयी थी और डॉक्टर की ही क्लास लगाने लगीं।   अस्पताल के आईसीयू में पहुंचकर वो डॉक्टर से सवाल कर रही थीं कि आखिर आप एक बेड पर दो तीन मरीजों को क्यों रख रहे हैं, बच्चा कबसे इलाज के लिए आपका इन्तेजार कर रहा है आप उसे क्यों नहीं देख रहे, अस्पताल में अगर सुविधा नहीं है तो बीमार बच्चों को भर्ती ही क्यों ले रहे हैं। डॉक्टर उनके हर सवाल का जवाब दे रहा था वो कह रहा था कि एक-एक करके वो मरीजों को देख रहा है और ध्यान रख रहा है ..फिर भी अंजना ओम कश्यप चीख-चीख कर सवाल पर सवाल कर रही थीं। क्या उन्हें इस बात का ध्यान नहीं था कि आईसीयू में तेज चिल्लाने से मरीजों को परेशानी होगी? इस दौरान वो भूल गयीं कि इस तरह की पत्रकारिता करते हुए उन्होंने डॉक्टर का न सिर्फ समय बर्बाद किया बल्कि बीमार बच्चों के इलाज में और ज्यादा विलंब का कारण भी बनी।

पत्रकारिता सही रिपोर्ट दिखाने और निष्पक्ष होकर सरकार से सवाल करने और आम जनता को जागरूक करने का नाम है…न कि चीखने-चिल्लाने और किसी के कार्य में बाधा उत्पन्न करने का। हालांकि शायद अंजना को इस बात का ज्ञान नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अंजना ने उस बात से कोई सबक नहीं लिया और साक्षी मिश्रा केस में भी अपनी भ्रामक रिपोर्टिंग को जारी रखा। जिस तरह अंजना ने इसे अनावश्यक तूल देते हुए पूरे परिवार को सिर्फ इसलिए कठघरे में खड़ा कर दिया, क्योंकि राजेश मिश्रा बीजेपी विधायक हैं, वह बेहद शर्मनाक है।  जबकि किसका पक्ष सही है और कौन वास्तव में इस मामले में दोषी है ये तय करना कोर्ट का काम है लेकिन अंजना खुद यहां जज बन गयी है और परिवार को विलेन की तरह से पेश किया है। ये न केवल निंदनीय है, बल्कि अशोभनीय भी। बिना राजेश मिश्रा का पक्ष जाने उन्हें मीडिया के ट्रायल में दोषी ठहराना कहां का न्याय है? इस मामले पर अंजना की पक्षपाती पत्रकारिता की जितनी निंदा की जाये, उतनी कम है। 

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