राजनीति में ना तो कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है, और ना ही कोई स्थायी दुश्मन। इसी का उदाहरण हमें ओडिशा की राजनीति में देखने को मिल रहा है। जो बीजेपी और बीजेडी चुनावों से पहले तक एक दूसरे के खिलाफ जमकर प्रचार करने में जुटी थी, आज उन्हीं पार्टियों के बीच बढ़ती नज़दीकियों की खबरें मीडिया में छाई हुई हैं। दरअसल, ओडिशा में हाल ही में हुए राज्यसभा की तीन सीटों के चुनावों में बीजेडी ने बीजेपी के एक उम्मीदवार का समर्थन किया था। ओडिशा विधानसभा में 111 सदस्यों वाली बीजेडी अगर चाहती तो सभी तीन सीटों पर अपने उम्मीदवारों को आसानी से जीता सकती थी, लेकिन बीजेडी ने भाजपा के उम्मीदवार अश्विनी वैष्णव को समर्थन देने का फैसला लिया।
इस फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा तेज हो गयी कि आखिर क्यों बीजेडी ने बीजेपी उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया है। भले ही अश्विनी वैष्णव जनता के बीच उतने लोकप्रिय नेता नहीं थे लेकिन वो बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक के करीबी माने जाते थे। वर्ष 2009 से पहले बीजेडी जब एनडीए का हिस्सा थी, तो अश्विनी वैष्णव ने उस वक्त बीजेडी और बीजेपी के बीच एक सेतु का काम किया था।
21 जून को ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी के अध्यक्ष नवीन पटनायक मीडिया के सामने आए और उन्होंने पार्टी की ओर से राज्यसभा के तीन उम्मीदवारों के नामों को सबके सामने रखा। इनमें से एक नाम पूर्व आईएएस अधिकारी अश्विनी वैष्णव का भी था। हालांकि, इस ऐलान के मात्र 45 मिनट के बाद ही नवीन पटनायक दोबारा मीडिया के सामने आए और स्पष्टीकरण दिया कि अश्विनी वैष्णव बीजेडी की ओर से नहीं बल्कि बीजेपी की ओर से उम्मीदवार होंगे लेकिन बीजेडी फिर भी उनका समर्थन करेगी। दरअसल, बीजेडी के ऐलान से 1 घंटे पहले ही बीजेपी ने अश्विनी वैष्णव को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। भाजपा की इस घोषणा के बाद अगली सुबह ही अश्विनी वैष्णव ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।
बीजेडी का बीजेपी के उम्मीदवार को समर्थन देना सभी के लिए हैरान कर देने वाला फैसला था क्योंकि वर्ष 2009 के बाद से बीजेडी और बीजेपी एक दूसरे के बड़े विरोधी माने जाते हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इन दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था। ऐसे में सवाल उठने लाजमी थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बीजेडी ने बीजेपी के उम्मीदवार को समर्थन करने का फैसला किया ?
दरअसल, अश्विनी वैष्णव बीजेडी के नेता रह चुके हैं और इस दौरान उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार के बीच की दूरियों को कम करने का काम किया था। बीजेपी नेता दामोदर राउत ने अपने बयान में कहा भी था कि “वैष्णव वही व्यक्ति हैं जिन्होंने 11 जून को दिल्ली में पटनायक, पीएम और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच बैठक आयोजित की थी।” यही नहीं सूत्रों की मानें तो फॉनी तूफान से हुए नुकसान के बाद ओडिशा में पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच जो बातचीत हुई थी उसमें वैष्णव की भूमिका ख़ास रही थी। अपने एक बयान में वैष्णव की भूमिका का उल्लेख भी किया है। दरअसल, वैष्णव ओडिशा की राजनीति की बारीकियों को समझते हैं और अपनी इन्हीं नीतियों की वजह से वो नवीन पटनायक के करीबी भी माने जाते हैं।
बता दें कि अश्विनी वैष्णव एक आईएएस अधिकारी होने के नाते अगस्त 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के डिप्टी सेक्रेटरी भी थे। आठ महीनों तक वे इस पद पर बने रहे थे और वाजपेयी जब सत्ता से हट गए तब वे उनके निजी सचिव बन गए।
वाजपेयी सरकार में पीएमओ में तैनात रहते हुए अश्विनी वैष्णव ने बीजेपी के बड़े नेताओं से संपर्क बना लिया था और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी भी उन नेताओं में से एक थे। वैष्णव जहां भी रहे, मोदी के लगातार संपर्क में रहे। इसी दौरान ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी उनकी नज़दीकियां बढ़ती गईं। बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन नौ सालों तक बना रहा और कहते हैं कि अश्विनी वैष्णव की इसमें अहम भूमिका रही। बीजू जनता दल और बीजेपी के बीच उन्होंने कई बार सेतु का काम किया है और आज भी दोनों पार्टियों के बीच की दूरी खत्म होने में उनकी भूमिका अहम है। बिना किसी पद पर रहते हुए वैष्णव की गिनती पटनायक के क़रीबी लोगों में होती रही है। यही वजह है कि बीजेडी भी उन्हें अपने कोटे से राज्य सभा भेजने को तैयार थी, लेकिन बीजेपी ने तो उन्हें अपना बनाने का फ़ैसला कर लिया था।
चुनावों के बाद बीजेपी और बीजेडी के बीच की दूरी लगभग खत्म होती नज़र आ रही हैं और अश्विनी वैष्णव इस काम में दोनों पार्टियों की मदद कर सकते हैं। राज्यसभा में एनडीए के पास बहुमत नहीं है और उसे सदन में बीजेडी के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में बीजेडी का बीजेपी के उम्मीदवार अश्विनी वैष्णव को समर्थन करना यह दर्शाता है कि भविष्य में हमें इन दोनों पार्टियों के सम्बन्धों में मधुरता देखने को मिल सकती है।