कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार अब गिर चुकी है जो कि इन दोनों पार्टियों और खासकर कांग्रेस के लिए किसी झटके से कम नहीं है। कल विधान सौधा में सरकार विश्वास प्रस्ताव में बहुमत साबित नहीं कर सकी और सरकार के पक्ष में सिर्फ 99 वोट्स पड़े जबकि सरकार के खिलाफ 105 विधायकों ने अपना वोट डाला। इसी के साथ कर्नाटक में पिछले एक महीने से चल रहा राजनीतिक ड्रामा खत्म हो गया। कांग्रेस को वर्ष 2014 के बाद से ही सभी राज्यों में हार मिलती आई थी और कर्नाटक में सरकार बनने के बाद कांग्रेस को थोड़ी राहत मिली थी, हालांकि कांग्रेस के लिए अब मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। दरअसल, कर्नाटक के विश्वास प्रास्ताव के दौरान बने समीकरणों पर गौर किया जाए तो कांग्रेस को मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है।
मंगलवार को विधानसभा में जब विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हो रही थी, तब गठबंधन के 20 विधायकों ने वोटिंग प्रक्रिया में अनुपस्थित रहने का निर्णय लिया था। इन 20 विधायकों में 17 विधायक कांग्रेस-जेडीएस के थे, 2 स्वतंत्र विधायक थे और 1 विधायक बीएसपी का था। इस वजह से बहुमत का जादुई आंकड़ा घटकर 103 रह गया। यानि सरकार को बने रहने के लिए कम से कम 103 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता थी, लेकिन सरकार को सिर्फ 99 विधायकों का समर्थन मिला और सरकार गिर गई। यहां सबसे दिलचस्प बात यह है कि बीएसपी और स्वतंत्र विधायकों ने भी सरकार का साथ नहीं दिया। बीएसपी के एक विधायक द्वारा सदन में वोटिंग प्रक्रिया में शामिल ना होने की वजह से बेशक मायावती ने उसे पार्टी से निष्काषित कर दिया हो, लेकिन अन्य राज्यों में भी बीएसपी के विधायकों द्वारा ऐसे बागी तेवर अपनाए जाने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। मायावती ने इसको लेकर एक ट्वीट भी किया जिसमें उन्होंने उस विधायक पर अपनी भड़ास निकाली।
कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के समर्थन में वोट देने के पार्टी हाईकमान के निर्देश का उल्लंघन करके बीएसपी विधायक एन महेश आज विश्वास मत में अनुपस्थित रहे जो अनुशासनहीनता है जिसे पार्टी ने अति गंभीरता से लिया है और इसलिए श्री महेश को तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।
— Mayawati (@Mayawati) July 23, 2019
अब अगर यही समीकरण अन्य कांग्रेस शासित राज्यों में बनते हैं तो यह कांग्रेस के लिए किसी बुरे सपने के सच होने जैसी बात होगी। उदाहरण के तौर पर 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास 109 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। बसपा के 2 विधायक हैं, एक समाजवादी पार्टी का विधायक है और बाकी विधायक स्वतंत्र हैं। कांग्रेस सरकार को अभी बहुजन समाज पार्टी का समर्थन हासिल है लेकिन बसपा सुप्रीमो इस वर्ष अप्रैल में गठबंधन पर पुनर्विचार करने की बात कह चुकी हैं। मायावती ने यह बात तब कही थी जब मध्य प्रदेश के गुना लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। भले ही कांग्रेस के पास भाजपा से अधिक विधायक हो लेकिन उसके पास बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं है, अगर समीकरण कांग्रेस के खिलाफ बनते हैं तो इस राज्य में भी कांग्रेस सत्ताहीन हो सकती है।
हालांकि, राजस्थान में अभी कांग्रेस के लिए स्थिति चिंताजनक नहीं है। कांग्रेस के पास 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में 100 विधायक है, जबकि भाजपा के पास 73 विधायक हैं। यहां बीएसपी किंगमकेर की भूमिका में हैं और उसके पास भी अपने 6 विधायक हैं। यानि यहां भी कांग्रेस की सरकार बीएसपी के सहारे ही चल रही है। अगर भविष्य में पार्टी में कोई बगावत हुई, और स्वतंत्र उम्मदीवारों के साथ-साथ बीएसपी विधायक कांग्रेस का साथ छोड़ते हैं तो यहां भी सत्ता पर काबिज कांग्रेस को गहरा झटका पहुंच सकता है। इससे बचने के लिए कांग्रेस को अंदरूनी तौर पर मजबूत रहना पड़ेगा। अगर कर्नाटक जैसी स्थिति मध्य प्रदेश या राजस्थान जैसे राज्यों में भी बनती है, तो कांग्रेस सरकारों को बहुमत साबित करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।