जून 1949 में महान ब्रिटिश लेखक जॉर्ज ओरवेल ने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका शीर्षक था 1984. इस पुस्तक में लेखक एक डरावने भविष्य की परिकल्पना करते हैं जहां ग्रेट ब्रिटेन ओशीनिया नामक एक सुपरस्टेट का एक प्रांत बन जाता है और इसका नया नाम होता है Airstrip 1. इस राज्य की खासियत यह है कि यह एक पार्टी द्वारा संचालित है जिसका सुप्रीमो बिग ब्रदर अपने थॉट पुलिस की मदद से पूरे प्रांत पर नज़र रखता है साथ ही मूल विचारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और यहां तक कि उनकी वैयक्तिकता तक पर नियंत्रण रखता है जिसका परिणाम यह होता है कि पूरा प्रांत दास मानसिकता वाले लोगो से भर जाता है, जिन्हें ना तो सत्य पता है न ही वो उसके अनुसंधान के लिए इच्छुक हैं। ऐसा विचारशून्य प्रांत, पार्टी और बिग ब्रदर दोनों के लिए ही हितकारी है क्योंकि जहां मूल सोच ही नहीं वहां सत्ता जाने का डर नहीं होता। पर ये तो है किस्से कहानी की बात, असल जीवन में भी ऐसा कहीं होता है क्या? हम इसपर बाद में आएंगे, आइये पहले अपने स्कूली जीवन में पुनः लौटते हैं।
सुबह सुबह स्कूल पहुँच कर एक के बाद एक कक्षाएँ, फिर लंच ब्रेक में दोस्तों के साथ मस्ती, फिर छुट्टी, होमवर्क, गर्मी की छुट्टियाँ, क्लास टेस्ट्स, एग्जाम्स, मार्कशीट्स, कितना मजेदार था ना वो समय। स्कूल में हम जो पढ़ते हैं, जैसे पढ़ते हैं वो जीवन भर हमारी सोच का हिस्सा बना रहता है। स्कूल में बनाए मित्र, अक्सर जीवन भर हमारे मित्र बने रहते हैं और स्कूल में जो हमारे ज्ञान और व्यक्तित्व का विकास होता है वो जीवन भर हमारा सहायक होता है। अब ज़रा सोचिए कि आप स्कूल में अपनी कक्षा में पढ़ रहे हैं और अचानक आपके मुंह पर एक कैमरा लगा दिया जाये और आपको बता दिया जाये की आपके माता पिता आपको अभी देख रहे हैं, तो आप पर क्या बीतेगी? स्मरण रहे कि आप अभी एक स्कूली छात्र हैं जिसकी आयु कुछ चार साल से लेकर चौदह साल की है। हम में से ज़्यादातर लोग सहम जाएंगे, कुछ लोग ध्यान देने का अभिनय करेंगे, कुछ जो स्वभावतः ध्यान देने वाले ही थे वे शायद बेचैनी में ध्यान नहीं दे पाएंगे। कुल मिलाकर स्वतंत्र और मूल विचारों की सृजन भूमि जिसे हम विद्यालय कह कर बुलाते हैं वो थॉट पोलिसिंग का अड्डा बन जाएगा। जॉर्ज ओरवेल का काल्पनिक Airstrip 1 कहानी से बाहर निकलकर वास्तविक हो जाएगा। और शर्म कि बात तो यह है कि ऐसा हो रहा है देश की राजधानी दिल्ली में।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राज्य के 1000 सरकारी स्कूलों में CCTV कैमेरे लगाने के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाई है। केजरीवाल की इस स्कीम के अनुसार पूरे स्कूल के अलावा हर क्लास में दो दो CCTV कैमेरे लगाये जायेंगे जिसका सीधा प्रसारण विद्यार्थियों के अभिभावकों के पास एक app के माध्यम से होगा।
इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि यदि क्लास में टीचर आपके उत्तर या परीक्षा की कॉपी से संतुष्ट होकर आपको शाबाशी दे रहे होंगे तब आपके अभिभावक घर बैठे गर्वान्वित हो सकते हैं परंतु वहीं टीचर जब आपके उत्तर या परीक्षा की कॉपी से दुखी होकर आप पर बरस रहे होंगे, तब आपके अभिभावक घर बैठे लज्जित भी हो सकते हैं। स्कूल में अपमान के बाद, घर में अपमान आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा। और स्मरण रहे कि आप अभी एक स्कूली छात्र हैं जिसकी आयु कुछ चार साल से लेकर चौदह साल की है। इसका त्वरित प्रभाव एक स्कूली छात्र पर यह पड़ेगा कि वह दबाव में आ जाएगा और लगातार निगरानी में रहने के कारण कुछ छात्र डिप्रेशन का भी शिकार हो सकते हैं।
और स्कूल सिर्फ रटने और लिखे और परीक्षा पास करने का स्थान नहीं है ये सामूहिक शिक्षा का स्थान है, समन्वय और तालमेल का स्थान है, दोस्ती का स्थान है, बड़े बड़े कारनामों और छोटी छोटी लड़ाइयों का स्थान है और ये अभिभावकों की निगरानी में नहीं हो सकती। कोई भी अभिभावक नहीं चाहेगा कि उसका बच्चा क्लास में बैठ कर हंसी मज़ाक करे, परंतु व्यक्तित्व निर्माण बिना ऐसे मेल-जोल और हास परिहास के नहीं हो सकता।
इसके अलावा ये Surveillance state का एक बहुत ही घिनौना उदाहरण भी है। कोई भी व्यक्ति निगरानी में कुछ देर तो रह सकता है पर अंततः उसका दम घुटने ही लगेगा। Surveillance मुजरिमों और आतंकवादियों पर लगाया जाता है पर बिना किसी गलती के अबोध बच्चों को Surveillance में रखना उन्हें मानसिक यातना देने के समान है।
हम दिल्ली की केजरीवाल सरकार के इस घटिया निर्णय की घोर निंदा करते हैं और साथ ही विपक्षी पार्टियों से यह आग्रह करते हैं कि वे केजरीवाल सरकार पर दबाव बनाए और दिल्ली के बच्चों को इस मानसिक शोषण से बचाए।