कुछ ही महीनों पहले रिलीज़ हुई हॉलीवुड फिल्म ‘एवेंजर्स: एंडगेम’ को भारत से खूब प्यार मिला। भारत में इसके कलेक्शन से साफ पता चलता है कि भारत में हॉलीवुड फिल्मों के लिए कितना बढ़िया भविष्य हो सकता है। ‘एवेंजर्स’ ने अब तक भारत से कुल 373.22 करोड़ रुपये कमाए हैं, जो इस वर्ष भारत के फिल्मों में सर्वाधिक कलेक्शन कर चुकी ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’ से काफी ज़्यादा है। ‘एवेंजर्स’ की लोकप्रियता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन दिन में इस फिल्म ने 170 करोड़ से भी अधिक कमा लिए थे।
हालांकि, इसे हमारी विडम्बना ही कहेंगे की हॉलीवुड के लिए एक बड़े बाज़ार के रूप में उभर कर सामने आने के बावजूद हॉलीवुड में भारत की एक बेहद ही नकारात्मक छवि पेश की जाती रही है। इतना ही नहीं, नेटफ्लिक्स जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म तो सरेआम भारत विरोधी तथा हिन्दू विरोधी कंटैंट को प्रसारित करते हैं, चाहे वो ‘Ghoul’ हो, या फिर ‘लीला’, ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसे शुद्ध हिन्दू विरोधी वेब सिरीज़ हो।
हाल ही में ‘एवेंजर्स’ को एक सीन के लिए भारत में विरोध झेलना पड़ा, इस सीन में ब्लैक विडो, ब्रूस बैनर यानि हल्क को ढूंढ निकालती है जिसे काफी गलत तरीके से दिखाया गया है। हॉलीवुड द्वारा इस तरह से भारत की च्वाई को प्रस्तित किये जाने पर बंगाल की जानी-मानी अभिनेत्री रितुपर्णा सेनगुप्ता ने कहा था कि भारत की दो तस्वीरें हैं, एक समृद्ध और एक जिसके हालात ठीक नहीं हैं, लेकिन हॉलीवुड केवल स्लम और मलिन बस्तियों को ही दिखाता है।
हॉलीवुड प्रारम्भ से ही भारत का चित्रण करने में अपनी असंवेदनशील का परिचय देता आया है। इनकी दृष्टि में भारत एक बेहद ही गरीब देश है, और यह सपेरों के देश के रूप में चित्रित किया जाता रहा है, वहीं राजसी ठाटबाट से रहने वाले राजा महाराजा ही भारत के असली प्रतिनिधि है। यह विचारधारा ‘औक्टोपुस्सी’, ‘हीट एंड डस्ट’ जैसी फिल्मों में साफ दिखती है।
भारत का ऐसा चित्रण ‘इंडियाना जोन्स’ की एक फिल्म ‘टेम्पल ऑफ डूम’ में भी दिखाई गयी थी और इसका काफी विरोध भी हुआ. यहां तक कि भारत सरकार को इसकी शूटिंग भारत में करने पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। तब के फिल्मकार असंवेदनशील रूप से फिल्मों के जरिये भारत में नस्लभेद को बढ़ावा दे रहे थे, क्योंकि इन फिल्मों के अनुसार यदि कोई ज्ञानी है, तो वह केवल श्वेत मनुष्य ही है।
यदि इससे आगे बढ़कर देखने का प्रयास करें, तो भी हॉलीवुड फिल्म मेकर्स को भारत की गरीबी ही दिखती है, मानो भारत में कोई आदर्श शहर है ही नहीं। चाहे ‘स्लमडॉग मिलियनेर’ हो, या फिर ‘द नेमसेक’ हो, या फिर कुछ ही वर्ष पहले प्रदर्शित ‘बासमती ब्लूज़’ ही क्यों न हो, भारत की गरीबी को ही भारत की छवि के रूप में प्रस्तुत कर हॉलीवुड भारत से करोड़ो कमाता है। हालांकि, ‘लाइफ ऑफ पाई’ और ‘ईट, प्रे, लव’ जैसे अपवाद भी रहे हैं, परंतु कई हॉलीवुड फिल्मों ने भारत की ऐसी छवि को दुनिया के समक्ष पेश किया है जिससे वास्तविक जीवन में भी भारत की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है जिसे हटाने में भारतीयों को कई साल लग जाएंगे।
इस असंवेदनशील चित्रण में स्वयं कुछ भारतीय फ़िल्मकारों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया है, चाहे वो ‘सलाम बॉम्बे’ की मीरा नायर हो, या फिर ‘फायर’, ‘अर्थ 1947’ एवं ‘वॉटर’ जैसी फिल्मों की निर्देशक दीपा मेहता हो, या फिर अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा जैसे प्रोपेगेंडावादी फिल्मकारों की खेप ही क्यों न हो, इन सभी ने भारत, विशेषकर सनातन धर्म की नकारात्मक छवि पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे में भला केवल हॉलीवुड को क्या दोष देना?
यह निस्संदेह एक अच्छा संकेत नहीं है, खास कर तब जब हॉलीवुड को अपनी उच्चतम कृतियों को बनाने में भारतीय टेकनीशियन्स का सहारा लेना पड़ता हो। ‘300’, ‘अवतार’, ‘डेडपूल’, ‘एवेंजर्स’ जैसे कई उत्कृष्ट हॉलीवुड फिल्मों के स्पेशल इफ़ेक्ट्स के लिए भारतीय टेकनीशियन्स का सहारा लिया गया है। यही नहीं, भारत के मध्यम वर्ग की आबादी कई पश्चिमी देशों से भी ज्यादा है।
ये मध्यम वर्ग के हॉलीवुड फिल्मों में रुचि का ही कमाल है कि एवेंजर्स जैसी फिल्म भारत से भी 350 करोड़ से भी ज़्यादा रुपये कमा लेती है। एक समय तो स्थिति ऐसी भी बन गयी कि यूएसए में आधिकारिक रूप से प्रदर्शित करने से पहले ही भारत में कई प्रसिद्ध हॉलीवुड फिल्में प्रदर्शित हुई हैं, जैसे ‘एवेंजर्स – एज ऑफ अल्ट्रॉन’ ‘क्वांटम ऑफ सोलेस’, ‘द एडवेंचर्स ऑफ टिनटिन’ इत्यादि।
भारत से करोड़ो कमाने के बावजूद की वही गरीबी और बदहाल वाली छवि दिखाए जाने का रिवाज हॉलीवुड फिल्मों में आजतक खत्म नहीं हुआ. ऐसे में भारतीय जनता को हॉलीवुड के इस रुख को भी अब समझने की जरूरत है क्योंकि इससे देश की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। किसी भी भारतीय को इस तरह की फिल्मों का बहिष्कार करने की जरूरत है शायद इससे हॉलीवुड के फिल्म मेकर्स को समझ आये कि ये भारत अब बदल चुका है और इसके प्रति ऐसा ही पक्षपाती रुख रहा तो उन्हें कितना घाटा हो सकता है।