गृह मंत्रालय ने कश्मीर में 10 हज़ार अतिरिक्त CRPF और BSF जवानों की तैनाती के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। कुछ दिनों के अंदर ही घाटी में अर्द्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों को तैनात किया जाएगा। इससे पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी बिना किसी पूर्व जानकारी के श्रीनगर का दौरा किया था और कई अधिकारियों के साथ मुलाक़ात की थी। उनके दौरे के ठीक बाद सरकार द्वारा घाटी में अतिरिक्त जवानों की तैनाती के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद अब अटकलों का दौर भी शुरू हो चुका है। यह कयासें लगाई जा रही है कि सरकार द्वारा 15 अगस्त यानि स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर अनुच्छेद 370 या 35 ए को लेकर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। इसके अलावा सरकार जम्मू एवं कश्मीर राज्य को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में बांटने पर भी विचार कर रही है। माना जा रहा है कि सरकार ने स्थिति को सामान्य रखने के लिए ही घाटी में अतिरिक्त जवानों को तैनात करने का फैसला लिया है।
रोचक बात यह है कि जब भी सरकार घाटी में जवानों की तैनाती को बढ़ाती है, उसके बाद सरकार द्वारा बड़े फैसले लिए जाने की संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर इस वर्ष फरवरी में जब भारत और पाकिस्तान के बीच पुलवामा आतंकी हमले के बाद तनाव बढ़ गया था, तो सरकार द्वारा घाटी में 10 हज़ार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई थी। और इस तैनाती के कुछ दिनों बाद ही भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर दी गई थी।
अब यहां सवाल यह उठता है कि कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के दौरे के अचानक बाद जवानों की इतनी बड़ी तैनाती का आखिर क्या कारण हो सकता है? अटकलों के अनुसार अभी केंद्र की भाजपा सरकार अनुच्छेद 370 और राज्य को तीन हिस्सों में बांटने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कुछ बड़ा फैसला ले सकती है। ये दोनों ही मुद्दे भाजपा की कश्मीर नीति के अहम हिस्सा रहे हैं। अनुच्छेद 370 को हटाना तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए जारी भाजपा के मेनिफेस्टो का भी हिस्सा रहा है। अब जब अमित शाह गृह मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे हैं, तो इस बात की संभावना काफी ज़्यादा हैं कि सरकार कड़े फैसले लेने से बिलकुल भी पीछे नहीं हटेगी।
बता दें कि लद्दाख के लोगों की यह शुरू से ही मांग रही है कि लद्दाख को कश्मीर से हटकर अपनी एक पहचान मिले। इसके अलावा जम्मू के लोग भी राज्य को तीन हिस्सों में बांटने के विचार का समर्थन करते हैं। इन लोगों का मानना है कि राज्य और केंद्र सरकारो का अधिकतर ध्यान अभी सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित रहता है और बाकी हिस्सों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके अलावा जम्मू और लद्दाख के लोग सरकार के भेदभाव की पीड़ा को भी महसूस करते है। यहां तक कि राष्ट्रीय राजनीति में भी सिर्फ कश्मीर के नेताओं को ही महत्व दिया जाता है। अगर जम्मू एवं कश्मीर राज्य तीन राज्यों में बांटा जाता है तो जम्मू और लद्दाख का प्रशासन बेहतर ढंग से हो पाएगा।
यह स्पष्ट है कि अगर केंद्र सरकार राज्य को तीन हिस्सों में बांटती है तो कश्मीर के नेताओं का महत्व पूरी तरह खत्म हो जाएगा। ऐसे में ये नेता कश्मीर के लोगों को बढ़काकर राज्य में तनाव की स्थिति को उत्पन्न करना चाहेंगे। और यही कारण हो सकता है कि अब केंद्र द्वारा कश्मीर में इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में केंद्र सरकार कश्मीर को लेकर कोई बड़ा फैसला लेती है या नहीं!