भारत भले ही 1947 में स्वतंत्र हो गया हो, पर हम भारतीय आज भी मानसिक रूप से ग़ुलाम हैं। हमारे अंदर हीनता की भावना ऐसे घर कर गयी है कि हमें आज भी अपनी उपलब्धियों की मान्यता के लिए विदेशियों के मतों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी मानसिक ग़ुलामी का एक प्रत्यक्ष प्रमाण है भारत में किसी भी इवैंट पर विदेशी लोगों के यूट्यूब पर प्रतिक्रियाएँ, चाहे वो किसी नई मूवी का ट्रेलर रिलीज़ हो या फिर चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण हो।
जबसे इंटरनेट क्रान्ति ने 2011 में आधिकारिक तरीके से भारत में कदम रखा, भारतीयों की सोशल मीडिया पर उपस्थिति ने चहुंमुखी प्रगति प्राप्त की है। चाहे वह सक्रिय यूजर्स में भारी वृद्धि हो, या फिर सोशल मीडिया पर नए कंटैंट की उत्पत्ति हो, भारतीयों ने ऑनलाइन कंटेंट में अपनी अलग पहचान दर्ज़ कराई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है प्रसिद्ध म्यूजिक कंपनी T-Series, जो अब यूट्यूब पर विश्व का सबसे अधिक सब्सक्राइब्ड किया गया चैनल है।
इसी माहौल में उदय हुआ विदेशी रिएक्शन चैनल्स का। ये केवल साधारण प्रतिक्रियाओं से भरा हुआ है, जो भारत में हुई किसी भी घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, चाहे वो किसी मूवी का प्रदर्शन हो, या फिर किसी वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रदर्शन, या चंद्रयान 2 के सफल प्रक्षेपण जैसी भारत की कोई अभूतपूर्व उपलब्धि हो। नीचे कुछ उदाहरण पेश हैं –
https://www.youtube.com/watch?v=44kJRo9wprs
https://www.youtube.com/watch?v=WfmVIpSdFRE
https://www.youtube.com/watch?v=LxWoOxbq1iw
https://www.youtube.com/watch?v=T78C1OPyhyc
परंतु यहां चिंताजनक बात है भारतीयों द्वारा इन चैनलों के प्रति आवश्यकता से ज़्यादा प्रेम दिखाना। इन चैनलों पर अधिकांश कमेंट्स भारतीयों के ही होते हैं, जो इस बात का सूचक है कि हमारे अंदर हीनता की भावना आज भी ज़्यादा हमारे अंदर व्याप्त है। हम अपने आप को इतना हीन समझते हैं कि हमें आज भी विदेशियों से अपने कंटैंट के लिए मान्यता की आवश्यकता होती है। ये तो कुछ भी नहीं है, यूट्यूब पर इन विडियो को लाखों में व्यूज़ देकर यूट्यूब भी घटिया कंटैंट को बढ़ावा दे रहे हैं। यदि आपको विश्वास नहीं है, तो इसे देखिये
तो प्रश्न आज भी उठता है – ऐसी विदेशी मान्यता की आखिर क्या आवश्यकता है? क्या हम अपना कंटैंट परखने योग्य नहीं है? आज भी ऐसी मानसिक ग़ुलामी दिखाने का क्या औचित्य है? यदि विदेशी हमारे कंटैंट को मान्यता नहीं देंगे, तो क्या दुनिया का अंत हो जाएगा?
दुख की बात तो ये है, कि ये ग़ुलामी केवल विदेशी प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है। जब भी भारतीय पर्यटक किसी विदेशी जगह का भ्रमण करते हैं, तो उन्हे विदेशी लोगों के साथ सेल्फ़ी खिंचाने के लिए यह लोग बड़े आतुर रहते हैं। अधिकांश समय ये विदेशी भारतीयों को भाव भी नहीं देते, और यदि आवश्यकता पड़े, तो उन्हें दूर भगाते भी हैं।
फिर भी हम इन उदाहरणों से कोई सीख न लेकर अपनी मानसिक ग़ुलामी के अनगिनत उदाहरण देते रहते हैं। वही अगर भारत से कोई व्यक्ति कुछ अलग करना चाहे, और अपने आविष्कारों के माध्यम से विश्व में भारत का नाम बढ़ाना चाहे, तो हम उसे नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते, और आवश्यकता पड़ने पर उसे हर प्रकार से अपमानित भी किया जाता है।
ये समस्या कहीं न कहीं हमारे भारत विरोधी ब्रिगेड से भी जुड़ी हुई है, जिन्होंने अधिकांश समय तक देश की विचारधारा पर अपना कब्जा जमाये रखा। छोटी से छोटी बात पर भी ये पीएम मोदी पर तंज़ कसने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते, जबकि यदि यूएस का राष्ट्रपति असत्य भी बोले, तो भी उसे शाश्वत सत्य सिद्ध करने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देंगे। यदि हमें इस हीन भावना से ऊपर उठना है, तो हमें पहले ऐसे विदेशी रिएक्शन चैनलों का बहिष्कार करना पड़ेगा, और हमें ये स्वीकार करना होगा कि हम दुर्बल नहीं है।
अब तो विश्व के सबसे उत्कृष्ट मूवीज़ को भी हमारे तक्नीशीयनों की आवश्यकता पड़ती है, विदेशी समकालीनों की तुलना में हमारे इसरो के वैज्ञानिक बड़े बड़े स्पेस मिशन बेहद ही कम लागत में सफलतापूर्वक भेजते हैं। हमारे कई खिलाड़ी तो अब दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को भी नाकों चने चबवाने की प्रतिभा रखते हैं। हमें अब अपने आप को गर्व से परिपूर्ण एक भारतीय के रूप में सिद्ध करना है, न कि एक ऐसे दुर्बल व्यक्ति की छवि पेश करनी है, जिसे अपनी हर उपलब्धि के लिए विदेशियों से मान्यता लेनी पड़े।