हाल ही में अनुराग कश्यप, रामचंद्र गुहा, कोंकोणा सेन शर्मा और अपर्णा सेन जैसी 49 फिल्मी हस्तियों एवं बुद्धिजीवियों के एक समूह ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखते हुए दलितों एवं अल्पसंख्यकों पर हो रहे कथित अत्याचार के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की। इसी पत्र में इन सभी ने ‘जय श्री राम’ के नारे को देश के लिए हानिकारक बताते हुए इसे एक ‘उत्तेजक युद्धघोष’ की संज्ञा भी दी।
इस पक्षपातपूर्ण पत्र के सोशल मीडिया पर वायरल होते ही देश के असंख्य नागरिक इन छद्म बुद्धिजीवियों के विरोध में उतर आए। प्रसिद्ध गीतकार एवं लेखक प्रसून जोशी, अभिनेत्री कंगना रनौत, और निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के नेतृत्व में 62 प्रचलित हस्तियों ने प्रत्युत्तर में प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हुये इन छद्म बुद्धिजीवियों के झांसे में न आने की सलाह दी।
इसी बीच न्यूज़ 18 पर भूपेन्द्र चौबे के साथ एक इंटरव्यू में फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर ने कहा कि ये छद्म बुद्धिजीवी केवल धनोपार्जन के उद्देश्य से ही ऐसे कृत्य करने के लिए उत्साहित होते हैं। उन्होने बिना अनुराग कश्यप का नाम लिए कहा कि जो लोग भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना करते हैं, वे ही लोग उत्तर प्रदेश में अपनी फिल्मों की शूटिंग करते हैं और यूपी सरकार से सब्सिडी लेते हैं। योगी का विरोध करने वाले लोगों को कहना चाहिए कि जब तक वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तब तक सरकार से फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी नहीं लेंगे” बता दें कि मधुर भंडारकर ने भी उन छद्म बुद्धिजीवियों के विरोध में लिखे पत्र पर अपने हस्ताक्षर किए थे।
मधुर भंडारकर की इस टिप्पणी पर अनुराग कश्यप ने अपनी सहिष्णुता दिखाते हुये उनकी न केवल आलोचना की, अपितु ये भी जताने की कोशिश कि कैसे पीएम मोदी के समर्थन में पत्र लिखकर उन 62 हस्तियों ने अपनी कथित चाटुकारिता का परिचय दिया है। उन्होंने अपनी अगले ट्वीट में उन्हें ‘ट्रोल आर्मी’ करार दिया –
If one letter can impact them so much that they need an entire troll army to keep digging out false narratives & throw various accusations continuously at signatories to counter the truth, imagine what would happen if we start questioning every self serving action of the regime
— Anurag Kashyap (@anuragkashyap72) July 28, 2019
इस पर प्रख्यात लेखिका एवं समाजसेविका शेफाली वैद्य ने अनुराग कश्यप पर चुटकी लेते हुए ये ट्वीट पोस्ट किया –
In my village in GOA, there used be an alcoholic, who would stand swaying in the market, daring every passerby to have a fight with him. Obviously, no one did. Everyone laughed at him n moved on. He would then say, ‘look, everyone is scared of me’ @anuragkashyap72 is that man. https://t.co/bqS0eCEycR
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) July 28, 2019
इस ट्वीट के अनुसार ‘अनुराग कश्यप उस शराबी के समान है जो बाज़ार में सबको लड़ने की चुनौती देता है, और जब सभी लोग उस पर हँसते हुए आगे निकलते हैं, तो वो अपने आप को विजयी समझने लगता है।‘ लेकिन अनुराग कश्यप अकेले ऐसे हस्ती नहीं है, जिनकी ‘सहिष्णुता’ खुलकर सामने आई है। हाल ही में प्रख्यात फिल्म निर्देशक शेखर कपूर ने देश के विभाजन पर अपना व्यक्तिगत अनुभव सभी के साथ साझा करते हुए ये ट्वीट पोस्ट किया –
Started life as refugee of Partition. Parents gave everything to make a life for kids. Was always in fear of ‘intellectuals’. They made me feel insignicant. Small. Then suddenly embraced me after my films. I still fear them. Their embrace is like a bite of snake. Still a refugee.
— Shekhar Kapur (@shekharkapur) July 27, 2019
इस ट्वीट में उन्होंने बुद्धिजीवियों के साथ अपने कड़वे अनुभव को साझा करते हुए कहा कि आज भी भारत के अधिकांश बुद्धिजीवी उन्हें नीचा दिखाने में व्यस्त रहते हैं। लेकिन ये ट्वीट पढ़ जावेद अख्तर का पारा तो मानो सातवें आसमान पर चढ़ गया, और इस ट्वीट को अपना अपमान समझते हुए शेखर कपूर के ऊपर जमकर अपनी भड़ास निकाली –
.who are these intellectuals who embraced you and you found that embrace like a snake’s bite ? Shyam Benegal , Adoor Gopal Krishna , Ram chandra Guha ? Really ? . Shekhar saheb you are not well . You need help . Come on , there is no shame in meeting a good psychiatrist .
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) July 28, 2019
What do you mean by still a refugee Does it mean that you feel like an outsider n not an Indian n you don’t feel that this is your motherland .If in India you are still a refugee where will you not feel like a refugee ,In Pakistan? Cut this melodrama you poor rich but lonely guy
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) July 28, 2019
You introduce yourself as neither prejudiced by the past nor afraid of the future living in this moment and in the same breath you say you are a refugee of partition and still a refugee . One doesn’t need a magnifying glass to see the contradiction .
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) July 28, 2019
जावेद अख्तर के समर्थन में कविता कृष्णन और अन्ना एमएम वेटिकेड ने इसी ट्वीट को खुदपर हमला समझते हुए अपनी ‘सहिष्णुता’ खुलकर उजागर की –
Who are these intellectuals who made you feel "insignificant" & "small" b4 your films were released, Mr Kapur? You mean #ShabanaAzmi & #NaseeruddinShah who acted in your debut film Masoom in 1983 when u were unknown? Should this tweet be described as ingratitude / a lie / both?
— Anna MM Vetticad (@annavetticad) July 28, 2019
इन ट्वीट्स से पता चलता है कि इन कथित बुद्धिजीवियों से ज़्यादा असहिष्णु तो इस देश में कोई और है ही नहीं। दो वर्ष पहले जब गुरमेहर कौर के पाखंडी अभियान के विरोध में प्रख्यात पहलवान योगेश्वर दत्त और फोगाट बहनों ने अपना विरोध जताया था, तो जावेद अख्तर ने सभी सीमाएं लांघते हुए इन्हे ‘हाफ़ लिटरेट’ की संज्ञा दी थी। इसी से पता चलता है कि इन बुद्धिजीवियों की संकीर्ण मानसिकता के कारण उन्हें किसी भी प्रकार की आलोचना सहन नहीं होती।
हम मधुर भंडारकर, शेफाली वैद्य और शेखर कपूर जैसे लोगों के आभारी हैं, जिनहोने ऐसे वामपंथी बुद्धिजीवियों की ‘सहिष्णुता’ की पोल खोलते हुए उनके वास्तविक एजेंडे सबके समक्ष उजागर कर दिया। अब वह दिन दूर नहीं, जब शेफाली वैद्य के ट्वीट में दिये उदाहरण की भांति इन बुद्धिजीवियों के ‘करुण क्रंदन’ से जनता को कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।