आईपीएस अभयानंद जिसके बारे में फिल्म ‘सुपर 30’ में नहीं दिखाया गया

सुपर 30 अभयानंद

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हाल ही में रिलीज़ हुई ‘सुपर 30’ में प्रसिद्ध शिक्षक एवं गणितज्ञ आनंद कुमार के बिहार में किए गए कार्य पर प्रकाश डाला गया था, जिसमें मुख्य भूमिका ऋतिक रोशन ने निभाई थी। आनंद कुमार ने कैसे कई गरीब बच्चों को आईआईटी के प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश दिलाया, और कैसे उन्होंने बिहार के कोचिंग माफियाओं के विरुद्ध सफलतापूर्वक मोर्चा खोला था, इसे बड़े ही कुशलतापूर्वक इस फिल्म में दिखाया गया है ।

हालांकि, इस फिल्म से कुछ लोगों को आपत्ति भी थी। जहां अधिकांश आलोचकों को ऋतिक के लुक और उनके उच्चारण से चिढ़ मच रही थी, तो कई लोगों को फिल्म में बिहार के परिवेश का चित्रण पसंद नहीं आया। परंतु जिस विषय पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान गया, वो था इस फिल्म में एक अहम किरदार का न होना। यह किरदार कोई और नहीं, बल्कि बिहार के पूर्व डीजीपी एवं आईपीएस अफसर अभयानंद थे, जिन्हें कई लोग ‘द कॉप विथ अ चौक’ के नाम से भी जानते हैं।

भले ही अभयानंद एक आईपीएस अफसर थे, परंतु इसके बावजूद उन्हें बच्चों को पढ़ाने में काफी रुचि थी। अभयानंद 90 के दशक में बिहार में एडिशनल डीजीपी के तौर पर तैनात थे। उसी दौरान उनकी मुलाकात आनंद कुमार से हुई थी। अभयानंद के अनुसार उन्होंने 1994 से आनंद कुमार के साथ मिलकर पढ़ाना शरू किया था।   

इसके बाद जब आनंद कुमार ने गरीब बच्चों को मुफ्त में आईआईटी के लिए तैयार करने की इच्छा जताई, तो अभयानंद ने इसे सहर्ष स्वीकारते हुए ‘सुपर 30’ प्रोग्राम की नींव डाली थी। अभयानंद की योजना के अनुसार ही आनंद कुमार ने सुपर 30 की राह बनानी शुरू की थी। दोनों के चार वर्ष के अथक प्रयास के बाद वर्ष 2002 में ‘सुपर 30’ का गठन किया। आनंद और अभयानंद ने मिलकर बच्चों को पढ़ाने लगे। उस समय आनंद की मां ने भी बच्चों को भोजन खिलाने का संकल्प लिया था। इसके बाद आनंद स्वयं ने उन 30 बच्चों में से कुछ के रहने की व्यवस्था अपने घर के आसपास भी थी।

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निरंतर मॉक टेस्ट और शिक्षा के नए-नए तरीकों से आनंद और अभयानंद आश्वस्त थे कि उनकी मेहनत रंग लाएगी। दोनों के प्रशिक्षण का ही नतीजा था कि कोचिंग में तैयारी कर रहे छात्रों को अगर कभी जेईई का टेस्ट पेपर हल करने के लिए दिया जाता था तो सभी उसे आसानी से हल कर लेते थे। जब सुपर 30 के प्रथम बैच ने आईआईटी जेईई की परीक्षा 2003 में दी, तो दोनों की अपेक्षा के ठीक उलट 30 में से 18 बच्चों ने इस परीक्षा को सफलतापूर्वक पास कर लिया। वास्तविक रूप से इसी वर्ष में सुपर 30 को पहचान मिलनी शुरू हुई।

इस सफलता से उत्साहित हो आनंद और अभयानंद की जोड़ी ने दूसरे बैच के लिए आवेदन पत्र प्रकाशित किए, जिसे लोकल प्रेस के आशीर्वाद से 1000 से भी ज़्यादा आवेदन मिले। इसके बाद स्थिति ऐसी बनने लगी कि दोनों को सुपर 30 के बैच के लिए एक विशेष प्रवेश परीक्षा का आयोजन भी कराना पड़ा। समय के साथ-साथ सुपर 30 की पहचान पटना से निकलकर पहले बिहार और फिर पूरे भारत में छाने लगी।

लेकिन ‘सुपर 30’ की बढ़ती सफलता कुछ लोगों को चुभने लगी। ‘सुपर 30’ की लोकप्रियता से बिहार का कोचिंग माफिया सहम गया और आनंद कुमार को रास्ते से हटाने का निर्णय कर लिया। नवम्बर 2004 में आनंद कुमार पर कुछ अज्ञात बदमाशों ने घातक हमला किया, जिसमें आनंद तो कुछ मामूली खरोंचों के साथ बाल बाल बचे, परंतु उनका एक सहयोगी गंभीर रूप से घायल हो गया। इसी प्रकार से फरवरी 2005 में सुपर 30 के सेंटर पर भी हमला किया गया, लेकिन सभी हमलावरों को उनके हथियारों सहित पकड़ लिया गया। अभयानंद के सहयोग से आनंद कुमार की सुपर 30 को पुलिस सुरक्षा भी मिलती थी।

इन घटनाओं का सुपर 30 पर कोई असर नहीं पड़ा। 2005 में 30 में से 26 विद्यार्थी सफलतापूर्वक आईआईटी में प्रवेश कर गए। और आखिर वर्षों के अथक प्रयास के बाद 2008 में सुपर 30 के सभी 30 विद्यार्थी आईआईटी जेईई की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। यहीं पर अभयानंद ने सुपर 30 से अलग होना उचित समझा, क्योंकि उनका काम अब पूरा हो चुका था। मतलब कि 2003 से 2008 तक अभयानंद आनंद कुमार के साथ छात्रों को प्रशिक्षित करते रहे इसके बाद वो अलग सुपर 30 से अलग हो गये। अभयानंद ने बाद में ‘मगध सुपर 30’, ‘रहमानी सुपर 30’ जैसे कार्यक्रमों की नींव रखी, जो ‘सुपर 30’ के आदर्शों को बिहार से आगे ले जाने का एक सफल प्रयास साबित भी हुआ। 

हालांकि ‘सुपर 30’ फिल्म में अभयानंद के गुणगान तो दूर की बात, उनकी चर्चा तक नहीं की गयी है। स्वयं अभयानंद अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे होंगे। ये बड़ी विडम्बना की बात है कि जिसने आनंद कुमार के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी योजना की नींव रखी, जिसने कदम कदम पर आनंद कुमार का साथ देने में कभी असहजता नहीं दिखाई, उनके बारे में आनंद कुमार की बायोपिक में बात तक नहीं की गयी।

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