कल भारत को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में एक बड़ी जीत मिली जब अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी और पाकिस्तान को भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को काउन्सलर एक्सेस देने का आदेश दिया है। आईसीजे ने 15:1 के बहुमत से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव से उनके काउन्सलर को मिलने नहीं दिया और न ही उन्हें कोर्ट में पक्ष रखने का मौका दिया। यह साफ तौर वियना कन्वेंशन के आर्टिकल 36 (1) का उल्लंघन है।
पाकिस्तान चाहता था कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट द्वारा जाधव की फांसी पर लगाई रोक हटा ले पर उसके हाथ निराशा लगी है और उसे फिर से मुंह की खानी पड़ी। ऐसे में किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि कैसे कुछ मीडिया आउटलेट्स ने भारत में जाधव को फांसी देने के पक्ष में भी प्रचार किया था। दरअसल, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में सुनवाई के दौरान पाकिस्तानी पक्ष ने ‘द क्विंट’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट को कुलभूषण जाधव मामले में भारतीय दावों के खिलाफ एक प्रमाण के रूप में पेश किया था।
बता दें कि द क्विंट ने 06 जनवरी, 2018 को एक आपत्तिजनक लेख प्रकाशित किया था और बाद में इसे हटा लिया था, लेकिन पाकिस्तान ने अपने बचाव में इस लेख को बार-बार प्रस्तुत किया था। इस रिपोर्ट में ‘द क्विंट’ ने दावा किया था कि कुलभूषण जाधव एक भारतीय जासूस थे, जिन्हें शीर्ष रॉ के अधिकारियों द्वारा जासूसी के लिए उपयुक्त नहीं मानते थे फिर भी उन्हें जासूसी के लिए चुना गया था।
बता दें कि कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान ईरान से अगवा करके पाकिस्तान लाया था लेकिन वो हमेशा यही दावा करता है कि उसने जाधव को जासूसी के आरोप में तीन मार्च 2016 को बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया था।
द क्विंट ने अपने रिपोर्ट में कहा था:
“स्पष्ट साक्ष्य मौजूद है जिससे यह साबित होता है कि जाधव ने रॉ के लिए काम किया था। जाधव को ईरान में वि चाबहार में एक व्यापारी के रूप में रखा गया था। उन्हें जब पाकिस्तान ने गिरफ्तार कर लिया तो रॉ के एक पूर्व प्रमुख अधिकारी के अलावा, कम से कम दो अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने जाधव के मुंबई स्थित माता-पिता को “सलाह” दी कि वे अपने बेटे के मामले के बारे में किसी से बात न करें।
दूसरा प्रमाण उनका दूसरा पासपोर्ट था, जिसमें उनका नाम हुसैन मुबारक पटेल था। यह पासपोर्ट मूल रूप से 2003 में जारी किया गया था और 2014 में उसका नवीनीकरण किया गया था। ये पासपोर्ट 12 मई 2014 को ठाणे से जारी किया गया था और इसकी अवधि 11 मई 2024 समाप्त होनी थी।“
द क्विंट द्वारा प्रकाशित इस लेख को बाद में विरोध के कारण हटा लिया गया था। पाकिस्तानी अधिवक्ता ने द क्विंट के अलावा 2017 में द इंडियन एक्सप्रेस में विवादित करण थापर द्वारा लिखे गए एक लेख का भी हवाला दिया था। उस लेख में, थापर ने कुलभूषण मामले में विदेश मंत्रालय के रुख पर सवाल किया था। उन्होंने एक अन्य पत्रकार, प्रवीण स्वामी के फ्रंटलाइन में प्रकाशित एक लेख का भी हवाला दिया था। स्वामी ने यह लेख 2018 में फ्रंटलाइन के लिए लिखा था जिसमें कहा गया था, “भारत के लिए यह स्वीकार करना असंभव है कि कुलभूषण जाधव जासूस नहीं है तथा इस लेख ने यह भी दावा किया था कि जाधव वास्तव में एक भारतीय जासूस थे।
भले ही हम आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले इस देश के खिलाफ अपनी बड़ी राजनयिक जीत का जश्न मना रहे हो पर इस समय भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि द क्विंट जैसे मीडिया आउटलेट ने कैसे कुलभूषण के मामले को कमजोर करने की कोशिश की तथा पाकिस्तान को एक मौका दिया। और कैसे इन लेखों को जानबूझ कर प्रकाशित किया गया, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान ने जाधव को फांसी देने के लिए किया। ऐसे लेख घटिया पत्रकारिता का एक अच्छा उदाहरण है जिससे राष्ट्रहित को नुकसान होता है। हमें ऐसे मीडिया संस्थानों से बच कर रहना चाहिए।