सुधीर चौधरी ने महुआ मोइत्रा के मानहानि केस का दिया करारा जवाब

25 जून को संसद में टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने अपने भाषण में सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए कहा था कि देश में फासीवाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है, और विपक्ष की आवाज़ को दबाया जा रहा है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा था कि देश में लोकतन्त्र खतरे में है और मीडिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनी जा रही है। परंतु महुआ मोइत्रा खुद ही अपनी आलोचना की जाने पर मीडिया पर ही हमला करना शुरू कर दिया है और इसका उदहारण तब देखने को मिला जब उन्होंने जी न्यूज के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कराया। इसके बाद सुधीर चौधरी ने खुद ही महुआ मोइत्रा को अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिये करारा जवाब दिया और उनके दावों की धज्जियां उड़ा दी। 

सुधीर चौधरी ने लिखा कि “पहले संसद में मेरे खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव रखा और अब मेरे खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया है वो भी इसलिए क्योंकि मैंने उनके भाषण की आलोचना की थी। अब कौन किसकी आवाज दबाने का काम कर रहा है? कौन फासीवादी है?”

बता दें कि संसद में महुआ मोइत्रा द्वारा दिए गये भाषण की ज़ी न्यूज़ के चीफ़ एडिटर सुधीर चौधरी ने आलोचना की थी। सुधीर चौधरी ने अपने प्राइम टाइम शो में कहा था कि “संसद में दिया गया भाषण, उनके मौलिक विचार नहीं थे। उन्होंने इस विचार को कहीं और से उठाया और ऐसा करके उन्होंने भारत की गरिमा को ठेस पहुंचाई।”

इसके बाद इस आलोचना से क्रोधित फासीवाद के खिलाफ बड़ी-बड़ी बाते करने वाली महुआ ने पहले सुधीर चौधरी के खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव रखा, और जब उससे भी उनका मन नहीं भरा तो अब उन्होंने सुधीर के खिलाफ दिल्ली की निचली अदालत में मानहानि का मुकदमा दर्ज किया है। इससे स्पष्ट हो गया है कि मीडिया की आज़ादी के कथित हनन को लेकर सरकार पर आरोप लगाने वाली महुआ को अपनी आलोचना करने वाली मीडिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी बिलकुल पसंद नहीं है।

अगर महुआ मोइत्रा के 25 जून को संसद में दिये गए भाषण पर नज़र डाली जाए, तो जिन मूल्यों को लेकर उन्होंने सरकार पर आरोप लगाए थे, उन्हीं मूल्यों की महुआ मोइत्रा ने स्वयं धज्जियां उड़ा दी हैं। अपने भाषण में महुआ ने कहा था ‘देश में मीडिया की आज़ादी खतरे में है और ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो सभी मीडिया समूहों को कोई एक व्यक्ति चला रहा है। सरकार को आलोचना पसंद नहीं है। सभी को अपना असहमती जताने के अधिकार है’। इन सब बातों से उन्होंने भारत में बढ़ते फासीवाद के भ्रामक दावे को सच साबित करने की भरपूर कोशिश की।

हालांकि, सुधीर चौधरी के खिलाफ उनके द्वारा उठाए गए कदमों से यह स्पष्ट हो गया है कि वे स्वयं ही देश में फासीवाद की स्थिति उत्पन्न कर रही हैं। वे संसद में खड़े होकर सिर्फ भाषण देना चाहती है और अपनी आलोचना को बिलकुल भी सहन नहीं कर पाती। सुधीर चौधरी ने अपने कार्यक्रम डीएनए में भी इस बात को उठाया। उन्होंने महुआ के इस दोहरे मापदंड पर सवाल उठाते हुए कहा ‘जब उनके फ़्रीडम ऑफ एक्स्प्रेश्न की बात आती है, तो सब कुछ ठीक है, उन्हें पूरी आज़ादी है, वे कुछ भी कह सकती हैं, लेकिन जब उसी अधिकार का उपयोग करते हुए मैं, आप या कोई और उनसे सवाल करता है, तो वे हमसे नाराज़ हो जाती हैं’।

बता दें कि महुआ मोइत्रा ने आईपीसी की धारा 499 का प्रयोग करते हुए सुधीर चौधरी और ज़ी न्यूज़ के खिलाफ केस किया है और ऐसा करके उन्होंने मीडिया की आज़ादी पर प्रहार करने की कोशिश की है। हालांकि, धारा 499 के तहत उनके द्वारा दायर मुकदमा कोर्ट में नहीं टिक पाएगा क्योंकि इसी धारा के स्पष्टीकरण नंबर 4 में लिखा है ‘-कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की क्षति करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप की उपेक्षा न करे’।

सुधीर चौधरी ने महुआ मित्रा के सदाचार या बौद्धिक क्षमता पर सवाल नहीं उठाया था बल्कि देश की संसद में किसी अन्य के विचारों के आधार पर देश के लोकतन्त्र पर सवाल उठाने को लेकर उनकी आलोचना की थी। लोकतंत्र के मंदिर में खड़े होकर उसी लोकतन्त्र को गाली देना भला कहां तक उचित है? साफ है कि सुधीर चौधरी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाने के पीछे का उनका मकसद केवल एक प्रतिष्ठित पत्रकर के सम्मान को ठेस पहुंचाना है।

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