वो तथ्य जो मुख्यधारा की मीडिया आपको कभी नहीं दिखाती

आज की पत्रकारिता कल इतिहास बन जाएगी और वही प्राथमिक या माध्यमिक स्रोत के रूप में गिनी  जाएगी। आज के दौर में जब हम इतिहास को पढ़ते है तब महसूस होता है कि तथ्यों की हेरा-फेरी की सीमा नहीं है। 800 वर्षों के इस्लामी हमलों औऱ मध्यकालीन अत्याचारों को उतने ही सहजता से लिखा गया जैसे हमला करना और मंदिरों को लूटना उनका अधिकार हो। अपने ही देश में लोगों को अपने अधिकारों से दूर रखने वाले इन आक्रांताओं के क़सीदे पढ़े गए हैं और यह उन कथित इतिहासकारों की कपट का ही देन है। आज के दौर में भी कथित स्वघोषित पत्रकार यही कर रहे हैं।

दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में मंदिर तोड़े जाने की घटना में भी यही देखने को मिला। रविवार की देर रात हौज काजी के लाल कुआं क्षेत्र के रहने वाले संजीव और आस मोहम्मद के बीच स्कूटर पार्किंग को लेकर शुरू हुए विवाद ने तब सांप्रदायिक रंग ले लिया जबकुछ लोगों की भीड़ ने अलाह-हु-अकबर के नारों के साथ लाल कुंवा क्षेत्र के 100 साल पुराने एक हिन्दू मंदिर पर धावा बोल दिया

इस घटना से संबंधित फोटो और वीडियो को भी सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, जिसमें साफ तौर पर भीड़ को ‘अल्लाह-हू-अकबर’ का नारा लगाते हुए सुना जा सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मंदिर 100 साल पुराना था जिसके अंदर स्थापित भगवान की मूर्तियों को भीड़ द्वारा विकृत कर दिया गया। लेकिन मुख्यधारा की मीडिया में इस घटना को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है। यही नहीं लेफ्ट-लिबरल गैंग भी अब असहिष्णुता का राग नहीं अलाप रहा और न ही अब इस मामले पर कुछ बोल रहा है। इस मामले पर अभी हाल कुछ वर्षों में मीडिया की यह सबसे घटिया रिपोर्टिंग कही जाएगी। मंदिर पर इस हमले ने मीडिया का फैलाया गया ‘डरा हुआ मुसल्मान’ के झूठे नैरेटिव का पर्दाफाश कर दिया और साथ ही यह भी सबके सामने आ गया कि कैसे हमारे देश की मीडिया ने एक वर्ग विशेष को बचाने के लिए तथ्यों को छिपाया। आश्चर्यजनक रूप से मुख्यधारा की मीडिया ने अपने दोहरे चरित्र का भी खुलासा कर दिया कि उनके लिए सिर्फ एजेंडा ही मायने रखता है। हमारे देश में मीडिया को विशेष वर्गों द्वारा किये जा रहे अपराधों की रिपोर्ट को सफ़ेद जमा पहनाने की आदत हो गयी है। कई जमीनी रिपोर्टिंग ने इसे साबित भी कर दिया है। चांदनी चौक मामले ने न केवल इस सत्य को उजागर किया बल्कि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मीडिया के विकृत और चयनात्मक दृष्टिकोण को भी सामने लाया है।

स्वराज्य मैगजीन की रिपोर्टर स्वाति गोयल और अरिहंत पवारिया की ग्राउंड रिपोर्ट ने चाँदनी चौक के मंदिर पर हुए हमले के कई तथ्यों को जनता के सामने रखा और मुख्यधारा की मीडिया चैनल को बेनकाब कर दिया। इसके साथ ही बताया कि ग्राउंड रेपोर्टिंग कैसे की जाती है। रिपोर्ट में हिंसा के कई गवाहों के कथन भी मिलते है जो रविवार देर रात घटनास्थल पर मौजूद थे।

रिपोर्ट के अनुसार एक निवासी ने कहा कि भीड़ पूरी योजना के साथ आई थी। “वे छड़ें, लाठी, पत्थर सभी हथियार लेकर आए थे। वे अल्लाहु अकबर के नारे लगा रहे थे और हमें गाली दे रहे थे, हमें बाहर आने के लिए उकसा रहे थे।,” एक युवक ने बताया कि, “सारे हिन्दू बाहर आओ, हम तुम्हें बताएँगे कैसे काटा जात है। काटना हमसे सीखो।”

वास्तविकता से दूर मुख्यधारा की मीडिया ने घटिया रिपोर्टिंग कर इस घटना को बस एक ‘पार्किंग का मुद्दा’ बता कर तथ्यों को छुपाने की भरपूर कोशिश की थी।

मुख्यधारा की मीडिया द्वारा इस हमले की खबर पर दिखाई गयी आधी अधूरी रिपोर्ट्स को आड़े हाथों लेते हुए ज़ी न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी ने अपने कार्यक्रम डीएनए में इस सेक्युलर गैंग के दोहरे मापदण्डों का खुलासा किया, और साथ ही उन्होंने इस घटना के हर पहलू को बड़ी बारीकी से सबके सामने रखा।

इस घटना पर मुख्यधारा की मीडिया का पाखंड साफ़ नजर आता है। यही नहीं भीड़ की हिंसा के बाद गायब हुए 17 वर्षीय लड़के के मामले में मीडिया ने अपनी आंखे बंद कर ली। सबसे पहले और्गेनाइजर ने इस मुद्दे को उठाया था।” और्गेनाइजर से बात करते हुए, लड़के के माता-पिता ने आरोप लगाया कि मुस्लिमों के समूह ने मंदिर पर हमला किया, और आतंक का माहौल बनाने के बाद उनके बेटे संगीत सक्सेना (बदला हुआ नाम) का अपहरण कर लिया।” हालांकि रिपोर्ट के अनुसार वह लड़का लगभग 2 दिन बाद वापस आ गया।

लेकिन मुख्यधारा की मीडिया हिंसक भीड़ द्वारा एक नाबालिग के कथित अपहरण पर अभी भी चुप्पी साधी हुई है।

https://twitter.com/shubh19822/status/1146443485416812544

मुख्यधारा की मीडिया इस घटना को सिर्फ पार्किंग को लेकर हुई घटना बताकर इसके पीछे की पूरी सच्चाई को जनता से दूर रखने का भरपूर प्रयास किया। ऐसे में मीडिया का इस तरह की रिपोर्टिंग करना गंभीर चिंता का विषय है। इस हमले ने यह भी उजागर कर दिया कि हिंदुओं के लिए देश की राजधानी दिल्ली कितनी सुरक्षित है।

हफ़पोस्ट इंडिया नाम का वामपंथी विदेशी वेब पोर्टल ने तो हद ही पार कर दी और लिखा कि “कैसे बीजेपी के समर्थकों ने पार्किंग के मुद्दे को आतंकी हमला बता दिया”। यह मीडिया की मानसिकता को दर्शाता है कि कैसे एक सांप्रदायिक हमले को दबाने की कोशिश की जाती है। ऐसे कई और मामले है जिनपर मीडिया के दोहरे मानदंड को दिखाया जा सकता है।

लेखक और वैज्ञानिक आनंद रंगनाथन ने अपने टिवीटर हैंडल पर 23 मई से हुए लिंचिंग के मामलों को बताया जिसमें मुस्लिम भीड़ ने हमला किया था। आपको हैरानी होगी कि इन सभी मामले को मीडिया चैनलों न ही दिखाया और न ही कोई कवरेज की। 

इनमें से सबसे प्रमुख मामला है मथुरा के भरत यादव का जिसे मुस्लिम भीड़ ने पिट-पिट कर मौत के घाट उतार दिया था। वहीं बिहार के बेगूसराय में ऐसे ही मुस्लिम भीड़ ने भूमि विवाद के कारण एक हिन्दू परिवार पर हमला किया था। वो एनआईटी श्रीनगर की घटना जब कश्मीरी युवकों ने हिन्दू छात्रों पर हमला किया था, भला वो कौन भूल सकता है। वहीं पश्चिम बंगाल के मालदा में हुए दंगे याद ही होंगे जब दुर्गा पुजा और ईद पर विसर्जन को लेकर हँगामा हुआ और यह विवाद फिर दंगे में बदल गया।  

अब इस मामले में पूरा देश दोषियों को सज़ा देने की मांग कर रहा है लेकिन इन मीडिया चैनलों को सिर्फ अपना एजेंडा चलना है। चांदनी चौक में हुई घटना पर मुख्यधारा की मीडिया की रिपोर्टिंग उनके दोहरे मापदंड को दर्शाता है। मुख्यधारा की मीडिया सच चाहे कितना भू छुपाये पर सच लोगों के सामने आ ही जाता है। अब सोश्ल मीडिया के इस जमाने में यह और भी आसान हो गया है। आज के पत्रकार दरबारी पत्रकारिता करने में व्यस्त हैं लेकिन स्वाति गोयल और सुधीर चौधरी ने निष्पक्ष और निर्भित पत्रकारिता की जिससे इन मीडिया कर्मियों को कुछ सीखना चाहिए।

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