उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़े कदम उठाने के संकेत दिया है। उत्तर प्रदेश कानून आयोग ने लिंचिंग के लिए एक सख्त कानून तैयार किया है जिसमें मॉब लिंचिंग करने वालों को 7 वर्ष से उम्र कैद की सजा और अपनी ड्यूटि पर लापरवाही करने वाले पुलिस अफसरों को भी 3 वर्ष की कड़ी सजा का प्रावधान है। जस्टिस आदित्य नाथ मित्तल की अध्यक्षता में इस आयोग ने मॉब लिंचिंग बिल 2019 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया है। राज्य में लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए जस्टिस आदित्य ने कहा कि मौजूदा समय का कानून लिंचिंग की समस्या से निपटने में असफल रहा है। तथा नए कानून की आवश्यकता है।
मॉब लिंचिंग को एक अलग अपराध घोषित करने पर ज़ोर देते हुए इस आयोग ने मॉब लिंचिंग के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया जो अपराधियों में डर पैदा करेगी और इस अपराध में कमी आएगी। इस रिपोर्ट के अनुसार अगर पीड़ित घायल होता है तो हमलावरों को 7 साल तक की जेल और 1 लाख तक फ़ाइन की सज़ा होगी। साथ ही अगर पीड़ित गंभीर रुप से घायल होता है तो हमलावरों को 10 साल की जेल और 3 लाख तक जुर्माना देना पड़ सकता है। वहीं अगर लिंचिंग में पीड़ित की मौत हो जाती है तो हमलावरों को उम्र कैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है।
यह बिल लिंचिंग, मॉब,पीड़ित, आपत्तिजनक सामग्री, तथा पीड़ित के खिलाफ बनाए गए प्रतिकूल वातावरण जैसे शब्दों को भी परिभाषित करेगी तथा इसे और व्यापक बनाएगी ताकि हमलावर बच कर निकाल न पाएं। इस बिल का सबसे बड़ा फायदा लिंचिंग की घटनाओं के आंकड़े जमा करने में होगी जिन घटनाओं का जिक्र मुख्य धारा की मीडिया नहीं करती है और उन्हें नजर अंदाज़ कर देती है। अक्सर ऐसी घटना जिनमें हमलावर विशेष समुदाय से होता है और पीड़ित बहुसंख्यक समुदाय से होता है, तब मुख्यधारा की मीडिया इसपर अपनी कवरेज अक्सर महत्व नहीं देती है
यह बिल इस मिथ्या को भी तोड़ेगी कि लिंचिंग सिर्फ हिन्दू ही करते है जिसे आज के सभी कथित बुद्धिजीवी वर्ग और लुटियन्स मीडिया वर्ग ने फैला रखा है। आज जब भी लिंचिंग की बात आती है तो ऐसा लगता है कि सिर्फ हिंदुओं ने ही लिंचिंग किया है और विशेष समुदाय इससे पीड़ित है। जबकि वास्तविकता यह है कि विशेष समुदाय द्वारा भी लिंचिंग की घटनाएं सामने आती रही हैं और इसे पीड़ित हिन्दू रहे हैं। ऐसी घटनाओं को दबा दिया जाता है या नजर अंदाज कर दिया जाता जाता है। अगर एक भी घटना पहलू खान जैसी होती है तो मीडिया संस्थान लाउड स्पीकर लेकर निकल पड़ते है और ऐसे डर के माहौल को जन्म दिया जाता है जैसे कि सभी हिन्दू अपराधी है। एक से बढ़ कर एक लेख लिखे जाते हैं, मोमबती मार्च निकाले जाते हैं, विदेशी मीडिया भी इन खबरों को तूल देती है । यह फियर मोंगरिंग इतनी अधिक मात्रा में की जाती है कि विश्व के सभी देश भी हमारे देश की तरफ सवालों की नजर से देखते हैं। वही अंकित सक्सेना, ध्रुव त्यागी, भरत यादव, साधू संतो की हत्या होने पर यही बुद्धिजीवी वर्ग मौन धारण कर लेता है। ना कोई कैंडल मार्च होता और न ही कोई लेख लिखे जाते हैं। शर्मनाक बात यह है कि इन घटनाओं की रिपोर्टिंग भी नहीं की जाती है। वैज्ञानिक और लेखक आनंद रंगानाथन ने अपने ट्विटर पर ऐसी 100 से अधिक घटनाओं का जिक्र कर एक थ्रेड तैयार किया है।
https://twitter.com/aranganathan72/status/1032534339798675457
https://twitter.com/ARanganathan72/status/1031532653340778496
https://twitter.com/ARanganathan72/status/1027915578416095232
इस थ्रेड को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि लिंचिंग की घटनाओं को कैसे दबा दिया जाता है। ऐसे में इन मीडिया संस्थानों को एंटी हिन्दू एजेंडा चलाने में मदद मिलता है।
उत्तर प्रदेश सरकार के इस बिल से मीडिया संस्थानों द्वारा भ्रामक एजेंडे पर लगाम कसने में भी मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश कानून आयोग की सेक्रेटरी सपना त्रिपाठी ने इंडियन एक्सप्रेस को इस बिल के बारे में बताते हुए कहा कि ‘आयोग ने यह माना कि मॉब लिंचिंग एक वैश्विक घटना है। यह अमेरिका और अफ्रीका में पिछली सदी से ही लगातार होता आ रहा है। इसलिए इस आयोग ने इस विषय का 6 महीने तक अध्ययन किया केनव के बाद इस बिल को तैयार किया है।‘
उत्तर प्रदेश कानून आयोग ने इस बिल को तैयार कर मुख्यमंत्री के पास भेज दिया है। और अब योगी आदित्यनाथ को तय करना है कि कब इस बिल को कानून बनाने के लिए विधायिका में पेश किया जाए। अगर उत्तर प्रदेश सरकार यह निर्णय लेती है और इस बिल को कानून में बदलती है तो यह निर्णायक साबित होगा।