नमस्कार हम आपसे आज कुछ सरल परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना चाहेंगे।
हमारा पहला प्रश्न है – क्या आप हिन्दू हैं?
हमारा दूसरा प्रश्न है कि क्या आप धार्मिक हैं?
हमारा तीसरा प्रश्न है कि क्या आप नियमित रूप से पूजा अर्चना करते हैं, मंदिर जाते हैं?
हमारा चौथा प्रश्न है कि क्या आपके बच्चे हैं या आपके बड़े भाई या बहन के बच्चे हैं?
हमारा पांचवा प्रश्न है कि क्या आप एक अभिभावक के रूप में अपने बच्चों को या भतीजे-भतीजियों, भांजे-भांजियों को धर्म की शिक्षा देते हैं? उन्हे पूजा पद्धतियां सिखाते हैं?
अब आप सोंच रहे होंगे कि अचानक से ये सारे प्रश्न क्यों?
तो ठीक है हमने प्रश्न कई पूछ लिए अब हम आपको उत्तर देते हैं। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी शक्ति है उसका लचीलापन, ढलने और बदलने की उसकी प्रवृत्ति। आप ईश्वर को मानते हैं आप आस्तिक हैं, नहीं मानते तो नास्तिक हैं, ईश्वर के आकार को मानते हैं तो आप सगुण ब्रह्म मार्ग अपना सकते हैं, अगर आप ऐसा मानते हैं कि ईश्वर निराकार और सर्वव्यापी है तो आप निर्गुण ब्रह्म अपना सकते हैं। शिव को श्रेष्ठ मानते हैं तो शैव मार्ग है, विष्णु को श्रेष्ठ मानते हैं तो वैष्णव मार्ग है, शक्ति को श्रेष्ठ मानते हैं तो शाक्त मार्ग है, सब को समान मानते हैं तो सब की पूजा कर सकते हैं। अगर पद्धतियों और विचारों को समझना है तो वेद हैं, भावार्थ जानना है तो उपनिषद हैं, कथा रूप में समझना सरल है तो पुराण है, साहित्य चाहिए तो महाभारत और रामायण है, कर्म मार्ग को समझना है तो गीता है, तीर्थ पर जाना है तो हर गली में मंदिर है, चार धाम है, शक्तिपीठ हैं, ज्योतिर्लिंग है और अगर नहीं जाना है तो घर पर एक छोटा सा पूजाघर ही आपका तीर्थ बन सकता है। पढ़ने के लिए मंत्र हैं, समझने के लिए सूत्र हैं और गाने के लिए भजन है।
परंतु हिन्दू धर्म का लचीलापन उसकी सबसे बड़ी शक्ति होने के साथ साथ ही हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी निर्बलता भी है। हमारा धर्म ‘ये करो’ और ‘ये मत करो’ पर आधारित नहीं है। हमारी कोई एक पुस्तक नहीं है जिसमे लिखित आदेश सर्वमान्य हो, हमारे कोई एक सर्वव्यापी भगवान नहीं जिनका कथन हमारा विधि विधान हो। सनातन का अर्थ है सदा से, हमारा धर्म प्रचार या दूसरों को धर्मांतरित करने के लिए नहीं बनाया गया था और इसी कारण आज के आधुनिक युग में हमारे सामने एक अनोखी चुनौती आ कर खड़ी हो गई है, जिससे अगर अभी नहीं निपटा गया तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।
हम अभी दो विषयों की बात करेंगे – पहला नया और दूसरा एक दो वर्ष पुराना। कुछ दिनों पहले एक खबर आई की झारखंड में एक चोर तबरेज अंसारी सरेआम पीट पीट कर मार डाला गया। फिर बात उठी की उस भीड़ में कुछ लोगों ने उसे जय श्री राम का नारा लगाने को कहा। धीरे धीरे ये मीडिया में एक बहुत बड़ी खबर बन गई और इसे उग्र हिन्दुत्व के परिणाम का नाम देखकर खूब उछाला गया। टिकटोक नामक एक विडियो शेरिंग एप्लिकेशन जिसमे लोग अक्सर नाचने, गाने और डायलॉगबाजी के वीडियो डालते हैं, उसमे फैजल शेख और हसनैन खान नाम के दो टिकटॉक सेंसेशंस ने एक विडियो डाला जहां सरेआम तबरेज अंसारी का प्रतिशोध लेने की बात की गई और साथ ही आतंकवाद को भी सही ठहराया गया। इस वीडियो की घोर निंदा हुई, खास कर के हिन्दू समाज की ओर से, और इसके कारणवश टिकटॉक ने इनके अकाउंट्स डिलीट कर दिये। पर उसके बाद जो हुआ वो आप स्वयं ही देख लीजिये। फैजल और हसनैन का कुछ महिला प्रशंसकों ने इन्स्टाग्रम पर समर्थन किया और साथ ही उनका बचाव भी किया। हमने जानबूझकर इन महिलाओं के नाम और चित्र छुपा दिये हैं पर ये सारी की सारी हिन्दू महिलाएं हैं और बीस वर्ष के आस पास की हैं। इन मे से कई इन लड़कों से मंत्रमुग्ध दिखाई देती हैं तो कईओं को अंसारी के प्रतिशोध लेने की बात और आतंकवाद को सही ठहराना उचित लगता है। आपको ऐसा लग सकता है की ये शायद कुछ बेवकूफ लड़कियां हैं और अधिकतर समाज ऐसा नहीं है। ऐसा समझ के आगे बढ़ जाना आपकी सबसे बड़ी भूल होगी, और यहाँ हम इन लड़कियों को दोषी नहीं मानते हैं। ये बस एक सेलेब्रिटी की प्रशंसक हैं और उनके आगे इन्हें भला बुरा कुछ नहीं दिखता। यहां असली दोषी इनके मां-बाप और बाकी रिश्तेदार है। अगर इनके माँ बाप ने इन्हें अपने धर्म से अवगत करवाया होता, हिन्दू धर्म की शांतिप्रियता और सहिष्णुता से अवगत कराया होता तो इन्हे समझ आता कि किसी को पसंद करना और उसके मोह में एक ऐसी मानसिकता का समर्थन करना, जिसका सबसे बड़ा शिकार भारत देश और हिन्दू धर्म ही है, तो वे कदापि ऐसा नहीं करतीं।
अब हम आते हैं दूसरे उदाहरण पर, केरल का अखिला हदिया प्रकरण तो आपको याद ही होगा। अगर नहीं याद है तो हम संक्षिप्त रूप से वो कहानी बताते हैं। अखिला केरल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी एक साधारण लड़की थी। उसके पिता जी घोर वामपंथी थे और घर का माहौल मॉडर्न था। यहां मॉडर्न का तात्पर्य ईश्वर और उनकी आराधना, धर्म कर्म की बातें और पूजा पाठ से सर्वथा दूरी बनाए रखने से है। मॉडर्न परिवार की अखिला ने कभी राम कृष्ण की कथाएँ नहीं सुनी, कभी भजन के लिए नहीं बैठी, कभी आरती की थाल से आरती नहीं ली, कभी प्रसाद नहीं खाया और ना ही हिन्दू धर्म के गूढ रहस्यों को जाना। फिर पढ़ाई के लिए उसे शहर से बाहर निकलना पड़ा जहां मुस्लिम लड़कियां उसकी दोस्त और रूममेट्स बनीं। अखिला के बिलकुल उलट उसकी दोस्त धार्मिक थी और मुस्लिम धर्म के हर सूत्र का अक्षरशः पालन करने वाली थीं। अखिला के मन में कौतूहल जागा, उसने जानने की इच्छा जताई, उसे उसके हर प्रश्न का उत्तर उसके दोस्तों से मिला। फिर उसके दोस्तों के माध्यम से वह एक मुस्लिम युवक के संसर्ग में आई जो उसकी दोस्तों की तरह मजहबी था। अखिला को प्रेम हुआ, फिर उसका धर्मांतरण हुआ, उसका नाम बदल कर हदिया हुआ और उसकी उस युवक के साथ शादी हुई। अब अखिला के घोर कम्यूनिस्ट पिताजी हरकत में आए, पहले पुलिस के पास गए और फिर कोर्ट में। लव जिहाद का मामला बना और कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अखिला को उसके पिताजी के पास भेज दिया। इस फैसले की चौतरफा घोर निंदा हुई क्योंकि ‘अखिला वयस्क थी, ऐसे में कोर्ट ने अखिला को उसके पिताजी के पास क्यों भेज दिया?’ मामला अभी भी विचाराधीन है लेकिन अखिला के पिताजी का दावा कमजोर है।
अब यहाँ किसकी गलती है? अखिला की? उसके दोस्तों की जो उसे दूसरे धर्म की ओर लेकर आए? उस युवक की जिसने उसका धर्मांतरण करवा के उससे शादी की? या उसके पिता की जो मामले को कोर्ट तक लेकर गए। उत्तर है उसके पिता की। एक अबोध बालिका जिसने आज तक धर्म का ध भी नहीं सुना था, अचानक ऐसे माहौल में पहुँच गई जहां हर ओर मजहब ही मजहब था। उसे वो असांसारिक अवलंब मिला जो उसे उसके घर पर कभी नहीं मिला था। कच्ची मिट्टी की तरह वो वैसे ही चाक पर घूमकर आकार लेने लगी जैसा उसके आस पास के लोगों ने उसे दिया। वो हिन्दू से मुस्लिम बन गई, अखिला से हदिया बन गई सिर्फ इस लिए क्योंकि उसके पिता ने आधुनिकता के चक्कर में उसे अपनी जड़ों से काट दिया था।
आज भारत में हजारों लाखों अखिला हदिया बनने को अग्रसर है। क्योंकि इस देश में हर व्यक्ति को मॉडर्न बनना है, स्वघोषित मॉडर्न लोगों को धर्म पुराणपंथी विचारधारा लगती है, राम और कृष्ण काल्पनिक लगते हैं, गेम ऑफ थ्रोन्स महाभारत से अधिक वृहत और हैरी पॉटर रामायण से अधिक रोचक लगती है। आधुनिकता का अर्थ है आगे बढ़ना, उन्नति करना, प्रगति करना पर जो प्रगति हमें हमारी जड़ों से ही काट दे वो उन्नति प्रगति नहीं दुर्गति है, उन्नति नहीं अवनति है, आगे बढ़ाना नहीं नीचे गिरना है।
इसलिए अब हम फिर से वही सवाल दोहराएंगे:
हमारा पहला प्रश्न है – क्या आप हिन्दू हैं?
हमारा दूसरा प्रश्न है कि क्या आप धार्मिक हैं?
हमारा तीसरा प्रश्न है कि क्या आप नियमित रूप से पूजा अर्चना करते हैं, मंदिर जाते हैं?
हमारा चौथा प्रश्न है कि क्या आपके बच्चे हैं या आपके बड़े भाई या बहन के बच्चे हैं?
हमारा पांचवा प्रश्न है कि क्या आप एक अभिभावक के रूप में अपने बच्चों को या भतीजे-भतीजियों, भांजे-भांजियों को धर्म की शिक्षा देते हैं? उन्हे पूजा पद्धतियां सिखाते हैं?
अगर नहीं, तो अभी भी देर नहीं हुई है। आने वाली पीढ़ी का धार्मिक और बौद्धिक प्रशिक्षण आज से ही प्रारम्भ करें, ताकि आज से पंद्रह बीस वर्ष बाद कोई आपको आपके बच्चों के चारित्रिक हास के लिए दोषी ना ठहराए!