अफसरशाही को देश के प्रशासन का केंद्र माना जाता है, और सरकार की सभी नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने में इस ब्यूरोक्रेसी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हालांकि, आज़ादी के बाद से इस ब्यूरोक्रेसी का रवैया इतना सुस्त रहा कि आज लाल-फीताशाही, भ्रष्टाचार, पक्षपात और अहंकार का नाम लेते ही दिमाग में अफसरशाही का निट्ठलापन उमड़ने लगता है। देश की अफसरशाही ने दशकों तक अपनी जिम्मेदारियों के साथ अन्याय किया और सुधार के प्रति सरकार के निराशाजनक रवैये से इनकी कामचोरी को बल मिलता गया। सरकारी पैसे पर ऐश करना, इन अफसरों ने अपनी जागीर समझ लिया और लापरवाही को अपनी आदत बना ली, और रोकने-टोकने वाला तो कोई होता ही नहीं था, क्योंकि सरकारी मंत्री कौन सा दूध के धुले होते थे? हालांकि, वर्ष 2014 के बाद से पीएम मोदी ने सब कुछ बदल दिया। मंत्रियों का टाइम पर मंत्रालय पहुंचना भी एक खबर बन गया, और अफसरशाही की तो क्या मजाल, कि वो अपनी कामचोरी को आगे जारी रख पाते।
लोकसभा में पीएमओ के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने बुधवार को लोकसभा को इस संबंध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 में मोदी सरकार के बनते ही नियमों के तहत 1 लाख से अधिक अफसरों की कार्यप्रणाली पर नज़र रखी गयी और अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्ट अफसरों की सूची बनाकर उन्हें जबरन सेवानिवृत्त किया जा रहा है। सिंह ने बताया कि मौजूदा नियमों के तहत ठोस प्रमाण के आधार पर सरकार को ऐसी कार्रवाई करने का अधिकार है। उन्होंने बताया कि सरकार ने अपने इसी अधिकार का प्रयोग करते हुए अब तक 312 सरकारी अधिकारियों को जनहित में सेवानिवृत्त किया है।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि सरकार ने पहली बार ऐसे भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई की हो! पिछले महीने ही सरकार ने 27 आयकर अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त किया था। उनपर सरकार ने भ्रष्ट होने के आरोप लगाया था। इसके अलावा अमित शाह के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने भी अपने अफसरों की कार्यप्रणाली पर नज़र रखने के लिए यूएस विजिलेंस यानी अंडर सेक्रेटरी विजिलेंस का गठन किया है जिसने अफसरों की कार्यप्रणाली को जांचने के लिए ‘3के’ फार्मूला तैयार किया है। ‘3के’ यानी ‘कामकाज, करेक्टर, करप्शन’। इन मानकों के आधार पर यह तय होगा कि मंत्रालय में बैठे बाबू अब गृह मंत्रालय में रहेंगे या बाहर जाएंगे। इन तीनों मानकों में से एक में भी रडार पर आने वाले बाबुओं की छुट्टी की जाएगी। 3के फॉर्मूला सिर्फ पहले के कर्मचारियों को ही नहीं बल्कि नए पोस्टिंग वाले अधिकारियों पर भी लागू होगा, और किसी के भी भ्रष्टाचार को माफ नहीं किया जाएगा।
इतना साफ है की मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से ही ब्यूरोक्रेसी का शुद्धिकरण करने का बीड़ा उठा लिया था। यही कारण है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान केंद्र सरकार की कई योजनाएं, जैसे उज्ज्वला योजना, पीएम जनधन योजना, पीएम आवास योजना, आयुष्मान भारत और सौभाग्य योजनाओं का आम जनता को पूरा लाभ मिला। इन अफसरों के सर से कामचोर नेताओं का हाथ हट गया और इन्हें काम करने पर मजबूर होना पड़ा। सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिए जिनसे स्पष्ट हो गया कि केंद्र सरकार अफसरशाही में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध है। जुलाई 2017 में सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में सिविल सेवाओं में परीक्षा के जरिए होने वाली नियुक्ति के अलावा लेटरल एंट्री यानी अन्य क्षेत्रों से सीधी नियुक्ति करने की बात कही थी। सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र के अनुभवी उच्चाधिकारियों को विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में डिप्टी सेक्रेटरी, डायरेक्टर और जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के पदों पर नियुक्त किया जाए। इस कार्यक्रम के माध्यम से सरकार आरक्षण प्रणाली से हटकर निपुण लोगों को ब्यूरोक्रेसी में लाने की कोशिश करेगी। इस तरह से हर काम के लिए विशेषज्ञ लोग उपलब्ध हो सकेंगे और काम अच्छे ढंग से हो सकेगा। सरकार अपने इस कदम से ब्योरोक्रेसी में नया जोश भरना चाहती है और नौकरशाही से अयोग्य लोगों को मुक्त करना चाहती है।
जिस तरह वर्ष 2014 के बाद से देश की सुस्त पड़ी नौकरशाही को सवारने के प्रयास किए गए, वो सराहनीय है, लेकिन यहां सवाल उठता है कि वर्ष 2014 से पहले की सरकारों ने इस दिशा में कोई कदम क्यों नहीं उठाया। पुरानी सरकारों ने सिर्फ नारे लगाने पर फोकस किया और जमीनी स्तर पर कोई सुधार करने का प्रयास नहीं किया गया। अब सोचिए अगर ऐसी ही कोशिश आज से 10 से 15 साल पहले की गई होती, तो आज भारत कहां से कहां पहुंच गया होता। पुरानी सरकारों के दौरान बनी योजनाओं को सही से लागू किया जा सकता था और करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता था। हालांकि, अच्छी बात यह है कि मौजूदा सरकार इसी दिशा में सफलतापूर्वक काम कर रही है और भविष्य में भी हमें सरकार द्वारा ऐसे ही कदम उठाए जाने की उम्मीद है।