वर्तमान रिपोर्टों के अनुसार गृह मंत्रालय ने कश्मीर घाटी के सभी मस्जिदों की जानकारी मांगी है। इन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार श्रीनगर पुलिस के जिला अधीक्षक ने क्षेत्र के सभी अन्य अधीक्षकों को उनके क्षेत्र में पड़ने वाले विभिन्न मस्जिदों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का निर्देश जारी किया है।
ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार इस पत्र में कहा गया है कि, ‘इस कार्यालय को अपने क्षेत्रों में आने वाले विभिन्न मस्जिदों से संबन्धित सभी प्रकार की जानकारी निर्देशानुसार यहां जमा कराये, जिससे उच्च पदाधिकारियों को यह जानकारी प्रदान की जा सके।‘ ये निर्देश केंद्र सरकार द्वारा घाटी में 100 अतिरिक्त अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियों [कंपनी] की तैनाती के बाद दिए गये हैं। इन 100 कंपनियों में सीआरपीएफ़ के 50, सशस्त्र सीमा बल के 30, और बीएसएफ़ एवं आईटीबीपी की 10-10 कंपनियाँ शामिल है।
इस पत्र को महत्वपूर्ण बताया गया है और उक्त सभी क्षेत्रों को ये जानकारी 29 जुलाई तक प्रदान करानी थी। आवश्यक जानकारी में जिले का नाम, जिले के अधिकार क्षेत्र की जानकारी, मस्जिद का नाम और उसका पता, मुख्य मौलवी का नाम, उसका पता और मस्जिदों के अध्यक्ष का नाम शामिल है। इसके साथ ही संबन्धित अफसरों को मस्जिद के कमेटी की विचारधाराओं से संबन्धित जानकारी भी मांगी गयी है।
इंडिया टुडे के अनुसार ये जानकारी अति गोपनीय करार होने वाली थी लेकिन तभी ये खबर किसी तरह सोशल मीडिया पर प्रकाशित हुई। हालांकि, इन खबरों का अभी आधिकारिक तौर पर किसी ने खंडन नहीं किया है। ये पत्र श्रीनगर पुलिस के दक्षिण क्षेत्र, हजरतबल क्षेत्र, उत्तरी क्षेत्र, पूर्वी क्षेत्र एवं पश्चिमी क्षेत्र के अधीक्षकों को भेजा गया है।
रिपब्लिक वर्ल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार घाटी में कुछ मस्जिदों को विशेष रूप से लोगों को हिंसक गतिविधियों के लिए भड़काने हेतु चिन्हित किया गया है, और ये उग्रवादियों की नियुक्ति केंद्र के तौर पर उभर कर भी सामने आ रहे हैं। इसीलिए इस उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए गृह मंत्रालय ने कश्मीर घाटी में विशेष रूप से मस्जिदों का सर्वेक्षण कराने को कहा है।
ज्ञात हो कि घाटी में मस्जिदों की उग्रवाद बढ़ाने में सक्रियता पहले भी दिखी है। इस साल डीएनए पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जब 1990 में कश्मीरी पंडितों को उग्रवाद के घाटी से पलायन करना पड़ा था, तो उसके पीछे प्रमुख कारण था मस्जिदों में असामाजिक तत्वों की वृद्धि, और भारत और कश्मीरी पंडितों के विरोध में नारे लगाना। इसी के पश्चात भारत को सबसे बड़ी मानव त्रासदी देखनी पड़ी जिसमें लाखों कश्मीरी पंडितों के साथ हर प्रकार की यातना की गयी, कई लोगों को अपनी जाना गवानी पड़ी, और कई महिलाएं दुष्कर्म का भी शिकार हुईं।
2010 के हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार घाटी में उग्रवाद से निपटने के लिए आवश्यक कदमों का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘घाटी के मस्जिदों में हर शुक्रवार को प्रार्थनाओं के पश्चात मस्जिदों का उपयोग युवा वर्ग को भारत के विरुद्ध भड़काने और उग्रवाद को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। हमारे पड़ोसी देश द्वारा समर्थित आतंकवादी राज्य के युवा वर्ग में ये डर बिठाने में सफल रहे हैं कि भारत में उनके भला नहीं होगा।‘ इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि, ‘आधुनिक शिक्षा संबंधित इनफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत सुरक्षा प्रणाली के साथ घाटी में लागू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही मस्जिदों में धार्मिक गुरुओं को किसी प्रकार के भड़काऊ भाषण देने पर रोक लगानी चाहिए।‘
लगता है मोदी सरकार ने इस रिपोर्ट को हल्के में न लेने का जोखिम नहीं उठाया है। इसीलिए गृह मंत्रालय के इस कदम की जितनी सराहना की जाये, वो कम है। पिछले कई दशकों से घाटी के लोग आतंकवाद का सामना करते आए हैं पर इस समस्या को नियंत्रित के लिए पूर्ववर्ती सरकारों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। लेकिन अब ऐसा लगता है कि वर्तमान सरकार सही दिशा में काम कर रही है।