कांग्रेस के वफादार मोतीलाल वोरा बन सकते हैं पार्टी के अन्तरिम अध्यक्ष

मोतीलाल वोरा कांग्रेस पार्टी

PC:khabarindiatv

जब से लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार प्राप्त हुई है, तब से राहुल गांधी अपने त्यागपत्र सौंपने की मांग पर अडिग है। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना त्यागपत्र सार्वजनिक कर दिया, और अपने ट्विट्टर प्रोफ़ाइल में बदलाव करते हुए उन्होंने अपनी पहचान में केवल ‘कांग्रेस सदस्य और सांसद’ बरकरार रखा। ट्विट्टर पर प्रकाशित अपने चार पृष्ठ लंबे त्यागपत्र में राहुल गांधी ने बताया है कि आखिर क्यों उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर बने में कोई रुचि नहीं है, और क्यों पार्टी को एक नए अध्यक्ष की आवश्यकता है।

जहां एक तरफ पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति ने राहुल गांधी के त्यागपत्र को अस्वीकार करते हुए उन्हें अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह किया है, तो वहीं अन्तरिम अध्यक्ष कौन होगा, इसके भी कयास लगने शुरू हो चुके हैं। कई नाम सामने आए हैं, परंतु जो नाम सबसे प्रमुख है, वो है वयोवृद्ध नेता मोतीलाल वोरा

आखिर मोतीलाल वोरा कौन है? और क्यों उन्हें कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के प्रबल दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है? आइये एक दृष्टि डालते हैं मोतीलाल वोरा के राजनीतिक करियर पर। 20 दिसंबर 1928 को निंबी जोधा नामक स्थान में जन्म लेने वाले मोतीलाल वोरा पेशे से व्यवसायी थे, इसके बाद विभिन्न पत्रकारों के लिए वो लेख लिखने लगे. इसके बाद वो कई राजनीतिक पार्टियों से जुड़े और वर्ष 1970 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।  

1972 में पहली बार मध्य प्रदेश के तत्कालीन जिले दुर्ग [अब छत्तीसगढ़ में] से विधायक के तौर पर चुने जाने के बाद से मोतीलाल वोरा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब अचानक से उनका नाम राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से खबरों में बना हुआ है। मोतीलाल वोरा कांग्रेस पार्टी के सबसे वफादार नेता माने जाते हैं और गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं। शायद उन्हें कांग्रेस का अन्तरिम अध्यक्ष के प्रबल दावेदार होने का मुख्य कारण है उनकी नेहरू गांधी वंश के प्रति अटूट निष्ठा, हमारा मतलब है गांधी परिवार के प्रति चाटुकारिता। इसके लिए उन्हें समय समय पर पुरस्कार भी मिला है, चाहे 1985-1988 के लिए अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद हो, या फिर 1988-1989 तक और इसके बाद फिर 1991-1993 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में इन्हें जगह मिलना हो, मोतीलाल वोरा को अपनी चाटुकारिता के लिए समय समय पर पुरस्कार मिला है।

इतना ही नहीं, उन्हें 1993-1996 के लिए उत्तर प्रदेश का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था, और उन्हीं के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश ने कुख्यात गेस्ट हाउस कांड, अपराध दर में अप्रत्याशित बढ़त, सांप्रदायिकता और गुंडाराज देखा है। हालांकि, मोतीलाल वोरा से जुड़ा एक पहलु भी है जिसपर शायद ही किसी ने ध्यान दिया होगा।

मोतीलाल वोरा काफी समय तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे हैं, और साथ ही साथ उसी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड और यंग इंडियन का भाग भी रहे हैं, जिसका नेशनल हेराल्ड घोटाले से लिंक भी सामने आया था. नेशनल हेराल्ड वही मामला है जिसके तहत सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर मुकदमा दायर है।

स्पष्ट है मोतीलाल वोरा को कांग्रेस की काली करतूतों के बारे में अच्छी ख़ासी जानकारी है. ऐसे में उन्हें बलि का बकरा बनाकर कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के लिए एक रक्षा कवच की तरह इस्तेमाल करना चाहती है। ठीक वैसे ही जैसे 1998-99 के कार्यकाल में सीताराम केसरी के साथ इस पार्टी ने किया था। सीताराम केसरी तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष थे, जिन्हें ज़बरदस्ती उनके पद से हटाया गया था और उन्हें अपमानित कर सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि, पीवी नरसिम्हा राव के साथ कांग्रेस का दांव उल्टा पड़ गया था क्योंकि नरसिम्हा के लिए राष्ट्र सबसे पहले था। लेकिन उनकी मौत के बाद कांग्रेस का उनके शव के साथ व्यवहार शर्मनाक था।  

अब अगर मोतीलाल वोरा को यदि कांग्रेस का अन्तरिम अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, तो यह कांग्रेस के लिए किसी सेफ़्टी वाल्व से कम नहीं होगा, क्योंकि मोतीलाल वोरा काफी वृद्ध है, और उनकी सेहत भी इन दिनों काफी नाज़ुक है । ऐसे में यदि वह कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालते भी हैं तो सबको पता ही है कि असल में पार्टी की डोर किनके हाथों में होगी। ठीक वैसे ही जैसा यूपीए शासनकाल में हमें देखने को भी मिला था. कांग्रेस ऐसा करके भले ही वंशवाद का टैग हटाकर आम जनता की सहानुभूति बटोरना चाहती हो पर सच तो ये है कि राजनीति को निम्न से निम्नतम स्तर तक ले जाना हो, तो कांग्रेस इसमें अव्वल है।     

 

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