देश के विश्वविद्यालयों में छात्रों पर थोपी जा रही मार्क्सवादी और वामपंथी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए नागपुर स्थित एक विश्वविद्यालय ने अब बीए के द्वितीय वर्ष के सिलेबस में आरएसएस से संबन्धित इतिहास शामिल करने का फैसला लिया है। नागपुर स्थित राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी ने राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को प्रकाशित करने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करने का निर्णय लिया है। खास बात यह है कि आरएसएस संबन्धित पाठ्यक्रम को पहले से मौजूद ‘संप्रदायवाद’ की जगह पर बदला जाएगा। बता दें कि एमए के पाठ्यक्रम में वर्ष 2002 से ही आरएसएस के बारे में पढ़ाया जा रहा है। साफ है कि यूनिवर्सिटी के इस कदम से छात्रों को भारत के इतिहास को और ज़्यादा बारीकी से समझने में मदद मिलेगी। यूनिवर्सिटी का ये फैसला लेफ्ट-लिबरल्स को बिलकुल रास नहीं आने वाला है जो संघ पर हमला करने का एक अवसर नहीं छोड़ते हैं।
यूनिवर्सिटी के ‘बोर्ड ऑफ स्टडि’ के सदस्य सतीश चफले ने मंगलवार को इस बारे में अधिक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ‘बीए (इतिहास) द्वितीय वर्ष के चौथे सेमेस्टर में वर्ष 1885 से लेकर वर्ष 1947 तक भारत के इतिहास इकाई में राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका पर आधारित पाठ जोड़ा गया है । ये कदम छात्रों को इतिहास में नए रुझानों के बारे में जागरूक करने के प्रयासों का हिस्सा है।’ चफले ने यह भी बताया कि यूनिवर्सिटी के इस कदम से छात्रों के समक्ष इतिहास से जुड़े नए तथ्य सामने आएंगे और उनके अंदर राष्ट्रवाद की भावना बढ़ेगी।
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी द्वारा उठाया गया यह कदम सराहनीय है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कांग्रेस राज के समय से चले आ रहे वामपंथी और मार्कस्वादी विचारधारा से प्रेरित पाठ्यक्रम के प्रभाव में छात्रों को इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं से वंचित रखा जाता रहा है। हालांकि, यूनिवर्सिटी के इस कदम ने लेफ्ट लिबरल गैंग के लोगों को बड़ी पीड़ा पहुंचाई है। खबर के सामने आते ही कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने यूनिवर्सिटी के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और यूनिवर्सिटी पर आरएसएस को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। हालांकि, यह भी तथ्य है कि बीए के पाठ्यक्रम में कांग्रेस से संबन्धित इतिहास पहले से ही मौजूद है। कांग्रेस के अलावा भारतीय राष्ट्रीय विद्यार्थी परिषद ने भी यूनिवर्सिटी के इस फैसले पर अपनी आपत्ति जताई और प्रशासन से तुरंत अपने फैसले को वापस लेने की मांग की।
आज देश की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटियों में बुद्धिजीवी का मुखौटा पहनकर भारत विरोधी नारे लगाना आजकल फैशन बन चुका है। विकृत इतिहास और एजेंडा से प्रेरित पाठ्यक्रम से प्रभावित होकर छात्र अक्सर मार्कस्वाद का अनुसरण करना शुरू कर देते हैं। देशभर के बुद्धिजीवियों का गढ़ माना जाने वाला जेएनयू और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यही वजह है कि यूनिवर्सिटी का यह फैसला छात्रहित में लिया गया फैसला है और इसका सबको स्वागत करना चाहिए।