‘दीदी के बोलो’ अभियान से प्रशांत किशोर बदलना चाहते हैं ममता की छवि

ममता बनर्जी प्रशांत किशोर

PC: MyNation Hindi

2019 के लोकसभा चुनावों में जब से ममता बनर्जी को अपने राज्य में अप्रत्याशित हार मिली है, उन्हें आभास हो चुका है कि राज्य में उनकी पार्टी की स्थिति ठीक नहीं है। इसीलिए उन्होंने इस स्थिति से उबरने के लिए जाने-माने चुनावी विश्लेषक प्रशांत किशोर को 2021 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अपना चुनावी सलाहकार नियुक्त किया।

इसी उपलक्ष्य में ममता की छवि को सुधारने के लिए टीएमसी पार्टी ने हाल ही में  ‘दीदी के बोलो’ अभियान शुरू किया है। इस अभियान के अंतर्गत राज्य में किसी भी प्रकार की समस्या के निवारण के लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर एवं वैबसाइट की सुविधा दी गयी है, जिसमें जनता की समस्त समस्याएँ सीधे ममता दीदी को रिपोर्ट की जाएंगी।

हाल के कुछ तथ्यों के अनुसार ये अभियान कथित रूप से पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय हो चुका है, और टीएमसी के अधिकारिक प्रेस स्टेटमेंट के अनुसार अब तक एक मिनट में 170 से ज़्यादा कॉल और एक दिन में 1 लाख से ज़्यादा कॉल आ चुके हैं। इससे साफ पता चलता है कि प्रशांत किशोर बंगाल में अपना काम प्रारम्भ कर चुके हैं। हालांकि, ये पहली ऐसी घटना नहीं है, क्योंकि कई लोगों के अनुसार बंगाल के बसीरहाट से टीएमसी सांसद नुसरत जहां जैन का भारतीय परिधान पहनकर संसद में आना भी प्रशांत किशोर की रणनीति का हिस्सा था।

पिछले कुछ महीनों से प्रशांत किशोर ने टीएमसी के नेताओं को कुछ स्पष्ट दिशानिर्देश दिये हैं, जिससे  ममता बनर्जी की हिन्दू विरोधी छवि को सुधारकर जनता से समर्थन प्राप्त किया जा सके। न्यूज़ 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया है कि जमीनी स्तर पर नेतृत्व मजबूत करने के अलावा टीएमसी के नेताओं, विशेषकर ममता बनर्जी को ऐसे कोई भी बयान नहीं देने है, जिससे विपक्ष, और प्रमुख रूप से भाजपा को फ़ायदा पहुंचे। इसी रिपोर्ट के अनुसार ममता बनर्जी को यह भी सलाह दी गयी है कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पर प्रत्यक्ष रूप से कोई हमला नहीं करना है, जिसके कारण ममता बनर्जी पिछले कुछ दिनों से काफी शांत नजर आ रही हैं।  

वहीं पिछले कुछ दिनों से ममता की हिन्दू विरोधी छवि को सुधारने के लिए कुछ अहम निर्णय भी लिए गए हैं। बंगाल के तारकेश्वर मंदिर की कमेटी की अध्यक्षता करने वाले मुस्लिम अध्यक्ष को इसी उद्देश्य से मंदिर प्रबंधक के पद से हटाया गया था। ये सभी निर्णय ममता की एक ममतामयी छवि को प्रदर्शित करने के लिए गये, ताकि 2021 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो सके। 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भाजपा के अप्रत्याशित प्रदर्शन के पीछे ममता की हिंदुओं के बीच नकारात्मक छवि भी एक बड़ा कारण था।

हालांकि सच कहें, तो प्रशांत किशोर के ये दांव केवल छलावा मात्र हैं। ममता की छवि पर हिन्दू विरोध के कारण जितने दाग लगे हैं, उसे प्रशांत किशोर तो क्या, टीएमसी का कोई नेता किसी भी स्थिति में नहीं धो पाएगा। चाहे दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन पर रोक लगानी हो, या फिर बसीरहाट, धूलागढ़ में हुये सांप्रदायिक घटनाओं पर चुप्पी साधना, या फिर राम नवमी के अवसर पर पंडालों में तोड़-फोड़ हो या ‘जय श्री राम’ के नारों पर रोक लगाना ही क्यों न हो, ममता बनर्जी ने हिंदुओं को नुकसान पहुंचाने के लिए हरसंभव प्रयास किए हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर के ये दांव पेंच लोगों को भ्रमित अवश्य कर सकते हैं, परंतु वास्तविकता को नहीं बदल सकते। 

गौर करें तो प्रशांत किशोर की रणनीतियां हर बार सफल रही हो ऐसा जरुरी नहीं। बिहार में नितीश कुमार और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह [सेवानिर्वृत्त] भले ही इनकी रणनीतियों की वजह से जीते हों, लेकिन इनके दाँवपेंच 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बुरी तरह असफल साबित हुये थे। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर ने ही पहले काँग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया था और फिर बाद में उन्हीं की सलाह पर राहुल गांधी ने सत्ताधारी सपा के साथ गठबंधन करने का निर्णय लिया था। परिणाम क्या निकला यह सभी को पता है।   

ऐसे में ममता बनर्जी की छवि को सुधारने में प्रशांत किशोर कितने सफल रहते हैं, यह तो समय ही बताएगा, परंतु भाजपा ने जो पश्चिम बंगाल में वर्चस्व कायम किया है, उसे किसी भी स्थिति में व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। भाजपा को अपने प्रयासों में और तेजी लाने की जरूरत है। अब ये बंगाल की जनता के हाथों में है कि वे ममता बनर्जी के इन प्रपंचों को ठुकरा कर उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखायें।  

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