लोकसभा चुनाव से पहले अचानक से प्रियंका गांधी वाड्रा सक्रिय राजनीति से जुड़ती हैं और फिर चुनाव के नतीजों के बाद राहुल गांधी अपने अध्यक्ष पद से हार की जिम्मेदारी लेते हुए और पार्टी के नेताओं को उनकी बात न मानने हेतु जिम्मेदार ठहराते हुए इस्तीफा दे देते हैं। राहुल गांधी जैसे-जैसे खबरों से मीडिया से दूर होने लगे वैसे ही वैसे प्रियंका गांधी वाड्रा हर दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में बनी रहती हैं। उदाहरण के लिए आज की खबर को ही देख लीजिये, सोनभद्र में धारा 144 लागू होने का बावजूद वो पीड़ितों से मिलने की जिद्द करते हुए धरने पर बैठ गयीं। धारा 144 लागू होने पर नियमों का उल्लंघन करने वाले या इस धारा का पालन नहीं करने वाले व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। ऐसे में प्रियंका गांधी का वहां जाने की अभी कोई आवश्यकता नहीं थी।
चूंकि पार्टी में उन्हें अध्यक्ष बनाने की मांग तक उठने लगी है पार्टी के कई बड़े नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी अध्यक्ष बनाने के लिए मन बना चुके हैं। खबरों की मानें तो प्रियंका गांधी अपने भाई के उस बयान का खुलेतौर पर विरोध नहीं कर सकती हैं जिसमें राहुल ने गांधी परिवार के सदस्य को पार्टी का अध्यक्ष न बनाने की बात कही थी। इसलिए प्रियंका ने अपने वफादार नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला का सहारा लिया है ताकि वो कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बन सकें। पर अगर पिछले कुछ समय में हुए घटनाक्रमों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है जैसे पहले से ही पार्टी में प्रियंका गांधी को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी थीं।
गौरतलब है कि राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं। अगर लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद राहुल गांधी इस्तीफा न देते तो आने वाले समय में उनके असफल नेतृत्व को लेकर पार्टी में उन्हें पद से हटाने की मांग उठती और वो स्थिति गांधी परिवार के लिए शर्मनाक होती। इस स्थिति से बचने के लिए समय को भांपते हुए राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। जिससे पार्टी में उनके कुछ समर्थक काफी नाराज भी हुए और इस्तीफा देने का नाटक शुरू हुआ जो फ़िलहाल तो थम गया है। इस तरह से राहुल गांधी सम्मान के साथ बड़ा त्याग करते हुए पार्टी के अध्यक्ष पद से हट गये। परन्तु राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा कि गैर-गांधी पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए, इससे पार्टी के कई बड़े नेताओं के मन में पार्टी का अध्यक्ष बनने की महत्वाकांक्षा को बल मिल गया। सिंधिया हो या पायलट या मोतीलाल वोरा जैसे कई बड़े नाम सामने आये परन्तु किसी नाम पर बात नहीं बनी क्योंकि किसी एक नाम से पार्टी में फूट पड़ना तय है। साथ ही ये भी तय है कि पार्टी कई गुटों में बंट सकती है।
कांग्रेस के नेता अनिल शास्त्री के बयान से ये साफ़ भी होता है जिसमें उन्होंने कहा है, ‘यदि कांग्रेस की कमान किसी गैर कांग्रेसी नेता को मिली तो पार्टी क्षेत्रीय दलों में टूट सकती है। महाराष्ट्र बंगाल और आंध्र में जिस तरह कांग्रेस से टूटकर दल उसके सामने आ गए हैं, ऐसी हालत बाकी जगहों पर भी हो सकती है।’ अनिल शास्त्री की बातों पर गौर करें तो राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद से नेतृत्व की कमी से जूझ रही कांग्रेस पार्टी चाहे मध्य प्रदेश हो या राजस्थान या कर्नाटक या पंजाब जैसे राज्य पार्टी गहरे आंतरिक मतभेद से जूझ रही है। इस बीच प्रियंका गांधी वाड्रा के वफादार माने जाने वाले राजीव शुक्ला ने कांग्रेस के भीतर इस खबर को तूल देने का काम किया है कि कांग्रेस पार्टी की अगली अध्यक्ष प्रियंका गांधी वाड्रा हों। राजीव शुक्ला के साथ भक्त चरण दास जैसे पार्टी के कई वरिष्ठ नेता समर्थन में भी आये हैं जो प्रियंका गांधी वाड्रा को ही पार्टी का नेतृत्व सौंपना चाहते हैं।
राहुल गांधी अमेरिका के लिए रवाना हो चुके हैं और सोनिया गांधी को नेतृत्व सौंपने की पार्टी के नेताओं की कोशिश पहले ही असफल रही है। ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा के नाम तेजी से उभरा है। अध्यक्ष पद के लिए इस पार्टी के पुराने नेताओं की पहली पसंद हमेशा से ही प्रियंका गांधी रहीं हैं परन्तु राहुल गांधी इस जिद पर अड़े हैं कि नया अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा।
एक तरफ सोनिया गांधी ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वो पार्टी की अध्यक्ष नहीं बनेंगी लेकिन प्रियंका गांधी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। ऐसा लगता है कि वो पार्टी का नेतृत्व करना चाहती हैं लेकिन भाई के विरोध में कुछ भी खुलकर नहीं बोलना चाहती। चूंकि पार्टी से बढ़कर कोई नहीं ऐसे में ये संभावना प्रबल है कि पार्टी की एकजुटता के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा के नाम पर आखिरी मुहर लगा दी जाए।
अगर ऐसा होता है तो इसके लिए कोई भी गांधी परिवार को दोषी नहीं ठहराएगा बल्कि सभी के मन में गांधी परिवार के प्रति सम्मान को और मजबूत करने की योजना बड़े ही सुखद अंदाज में सफल हो जाएगी। कुल मिलाकर जिस मकसद से प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति में लेकर आया गया था वो सफल होने की दिशा में अग्रसर है जिसका मतलब साफ़ है फिर से एक और गांधी पार्टी की कमान संभालेगा।