वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार 2.0 के पहले बजट को पेश करने के दौरान देश में सोशल स्टॉक एक्सचेंज स्थापित करने की घोषणा की। सीतारमण ने कहा कि सरकार सोशल स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा के उद्देश्य के लिए काम कर रहे सामाजिक उपक्रमों और स्वैच्छिक संगठनों को सूचीबद्ध करने की योजना बना रही है। अगर सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाती है तो ना सिर्फ सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे उपक्रमों को फंड जुटाने में आसानी होगी, बल्कि इससे ऐसी कंपनियों और गैर सरकारी संगठनों की फंडिंग भी पारदर्शी हो सकेगी जिसे लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं।
बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि सोशल स्टॉक एक्सचेंज से सामाजिक कार्यो के लिए इक्विटी, डेब्ट या म्यूचुअल फंड यूनिट के रूप में पूंजी जुटाने वाले संगठनों को फायदा होगा। उन्होंने कहा ‘सामाजिक कल्याण के उद्देश्य के लिए कार्य करने वाले सामाजिक उद्यमों और स्वैच्छिक संगठनों को सूचीबद्ध करने के लिए सेबी के विनियामक दायरे में इलेक्ट्रॉनिक फंड रेज़िंग प्लेटफॉर्म एवं सोशल स्टॉक एक्सचेंज बनाने के लिए मैं कदम उठाने का प्रस्ताव करती हूं’।
सरकार का मानना है कि सामाजिक उपक्रमों के लिए विशेष निवेशकों की आवश्यकता होती है। चूंकि इन उपक्रमों में बहुत कम मात्रा में धन का लेनदेन होता है, इसलिए इस पूरी प्रक्रिया का सस्ता होना अति आवश्यक है। अपने इस कदम से सरकार ऐसे सामाजिक संगठनों के लिए निवेश जुटाने की प्रक्रिया को आसान करना चाहती है। भारत में सामाजिक संगठनों और खासकर गैर-सरकारी संगठनों के फंडिंग स्रोतों को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। सरकार के इस कदम के बाद जो एनजीओ भी अपने आप को सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कराएंगे, उन सभी की फंडिंग प्रक्रिया पारदर्शी हो सकेगी।
बता दें कि विदेशी एनजीओ पर समय-समय पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाने और सरकार के खिलाफ काम करने के आरोप लगते रहते हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि गैर सरकारी संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं, जो राष्ट्रीय हितों के लिये नुकसानदेह हैं, सार्वजनिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं या देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, सामरिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसी रिपोर्ट में कुछ गैर-अधिकारी संगठनों पर देश में अलगाववाद और माओवाद का बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास को अस्थिर करने के लिए करती हैं।
हालांकि, मोदी सरकार ने ऐसे एनजीओ पर फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट यानि FCRA के माध्यम से शिकंजा कसने की भरपूर कोशिश की है। भारत सरकार ने यह कानून इसलिए बनाया था ताकि एनजीओ के वित्तीय संसाधनों की प्रणाली में पारदर्शिता आ सके।
वित्त मंत्री की घोषणा के अनुसार अगर एक अलग सोशल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना होती है तो इससे देश की आम जनता को भी सामाजिक कार्यों में भागीदार बनने का अवसर मिल सकेगा। ऐसे कार्यों में लंबे समय के लिए निवेश करने की आवश्यकता होती है जिसके कारण लोग सामाजिक उपक्रमों में निवेश करने में असहज महसूस करते हैं। भारत में अभी 33 लाख पंजीकृत गैर सरकारी संगठन हैं, जो कि कुल 11 लाख 89 हज़ार पंजीकृत कंपनियों से कहीं ज़्यादा हैं। ऐसे में इनमें से कई ऐसे एनजीओ होंगे जो सार्वजनिक फंडिंग के लिए अपने आप को स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध करवाना चाहते होंगे। सरकार के इस नए कदम से ऐसे स्वैच्छिक एनजीओ के लिए फंडिंग के नए रास्ते खुल सकेंगे। सरकार का यह कदम भारत में लगातार बदलते आर्थिक वातावरण के अनुरूप लिया गया कदम है और इसकी जितनी सराहना की जाए उतनी कम है।