‘कारगिल देश का नहीं, भाजपा का युद्ध था’ आखिर क्यों कांग्रेस ने कभी कारगिल विजय दिवस नहीं मनाया?

सोनिया गांधी कारगिल

आज 26 जुलाई है। पूरा देश आज कारगिल में जीत की खुशी में विजय दिवस मना रहा है। आज ही के दिन वर्ष 1999 में भारतवर्ष के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान के घुसपैठियों को खदेड़ कर जीत हासिल की था। वैसे तो इस युद्ध की शुरुआत 3 मई को पाकिस्तान ने की थी लेकिन भारत की तरफ से ये ऑपरेशन विजय के नाम से 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था। करीब 18 हजार फीट की ऊँचाई पर कारगिल में लड़ी गई इस जंग में देश ने लगभग 527 से ज्यादा वीर योद्धाओं को खोया था वहीं, 1300 से ज्यादा घायल हुए थे। एक तरफ जहां थल सेना पहाड़ों पर मुहतोड़ जवाब दे रही थी तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का भी इस्तेमाल किया था। इसके बाद जिस भी क्षेत्र में पाकिस्तान ने कब्जा किया था वहां बम गिराए गए। इसके अलावा मिग-29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया गया था।

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 जुलाई को विजय दिवस घोषित करते हुए इसे हर साल धूम धाम से मनाए जाने की घोषणा की थी। लेकिन क्या आपको पता है कि यूपीए के पहले कार्यकाल में इस विजय दिवस समारोह को मनाना बंद करा दिया गया था?

वर्ष 1971 के युद्ध में जीत का सेहरा बांध कर घूमने वाली कांग्रेस पार्टी ने कभी भी कारगिल में सेना के विजय को देश की जीत नहीं मानी। और यह एक बार नहीं बार बार स्पष्ट भी होता आया है। कांग्रेस की परंपरा रही है कि जिस भी चीज में गांधी-नेहरू परिवार का नाम जुड़ा नहीं होता है उसे वह न तो अपनाती है और न ही अपना मानती है, फिर चाहे वह देश के मान की बात हो या फिर सेना के सम्मान की बात। तभी कारगिल युद्ध में भारत की जीत के बाद 26 जुलाई को हर साल मनाया जाने वाला कारगिल विजय दिवस से कांग्रेस अपना मुंह चुराती रही है।

कारगिल युद्ध पर वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि कैसे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस युद्ध के समय अड़चन डालने की कोशिश की थी। जब युद्ध अपने चरम पर था तभी विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी ने तत्कालीन केंद्र सरकार से राज्य सभा के विशेष सत्र की मांग करने लगी। यह कहाँ तक जायज था कि सरकार का ध्यान युद्ध से हटाकर राजनीति की तरफ करने की कोशिश की जाए? कंचन गुप्ता के अनुसार सोनिया गांधी ने उस समय पत्रकारों से कहा था कि अगर पंडित नेहरू जब वर्ष 1962 में विशेष सत्र बुला सकते हैं तो अभी क्यों नहीं? अगर सोनिया गांधी को वर्ष 1962 के युद्ध के बारे में जरा भी ज्ञान होता या उनके सहयोगियों ने उन्हें जानकारी दी होती कि युद्ध के समय किसी भी सदन का विशेष सत्र बुलाने का मतलब हार होता है तो वह कभी भी यह मांग नहीं करतीं।

हालांकि, यह भी सच है कि जब ऑल पार्टी मीटिंग के लिए सरकार ने सभी राजनीतिक पार्टियों को बुलाया तब वह अनुपस्थित रही थीं। अगर उन्हें देश की इतनी ही चिंता होती तो वह जरूर इस मीटिंग का हिस्सा बनती।

इस रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस से संबंध रखने वाले एक रक्षा विशेषज्ञ ने विदेशी समाचार पत्र में यह झूठ फैलाया था कि सेना के पास गोला बारूद की कमी हो गयी है। जबकि इस खबर को सेना व वायु सेना द्वारा नकार दिया गया था।

कांग्रेस पार्टी आज तक भाजपा के शासन में पाकिस्तान पर भारत की इस बड़ी जीत को पचा ही नहीं पायी है। यही वजह है कि क्रांतिकारियों का इतिहास मिटाने के बाद सेना के एक भाग मिलिट्री हिस्ट्री डिवीजन को ही खत्म कर दिया गया था।

इसके बाद जब कांग्रेस सोनिया गांधी के नेतृत्व में सत्ता में आई तो कारगिल विजय का भी इतिहास लोगों के जहन से मिटाने के लिए 26 जुलाई को मनाए जाने वाले उत्सव को ही बंद करा दिया था। यूपीए-1 के सत्ता में आते ही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने राज्यसभा में बाकायदा बयान दिया था कि यूपीए सरकार ने वर्ष 2004 से लेकर 2009 तक आधिकारिक रूप से कारगिल विजय दिवस नहीं मनाने का फैसला किया है। राज्यसभा में ही नहीं बाहर भी कांग्रेस के नेता शर्मनाक तरीके से कारगिल युद्ध में देश की जीत को एनडीए सरकार की जीत बताते रहे हैं। कांग्रेस के ही सांसद राशिद अल्वी ने 2009 में कहा था कि कांग्रेस पार्टी को कारगिल विजय दिवस मनाने की कोई वजह नहीं दिखाई देती। उन्होंने कहा था ‘कारगिल की जीत को युद्ध में मिली विजय के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह अलग बात है कि एनडीए इसका उत्सव मना सकता है क्योंकि यह युद्ध उस समय हुआ था जब उसकी सरकार थी।’ इसके बाद भाजपा के तत्कालीन राज्यसभा सांसद राजीव चन्द्रशेखर ने राज्य सभा के अध्यक्ष को पत्र लिख कर इसे दोबारा मनाने के लिए रक्षा मंत्रालय से आग्रह किया और बाद में यूपीए सरकार को शर्मसार होकर कारगिल विजय दिवस मनाने को मजबूर होना पड़ा।

वैसे भी जब से कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में गई तब से कांग्रेस पार्टी देश के मान और सेना के सम्मान के साथ समझौता कर रही है। कारगिल युद्ध को देश का युद्ध नहीं मानना, सर्जिकल स्ट्राइक को सेना का फर्जी स्ट्राइक बताना, और सेना से सबूत मांगना दिखाता है कि कैसे सेना का अपमान किया गया है। यही नहीं लोकसभा चुनाव के दौरान इस पार्टी ने मोदी सरकार को घेरने के लिए वही  किया जिसके लिए वो जानी जाती है। इस पार्टी ने निम्न स्तर की राजनीति करते हुए मोदी सरकार पर सेना का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। मोदी सरकार पर इन आरोपों का जवाब कांग्रेस पार्टी को आम जनता ने खुद दिया था। अटल जी के ऊपर भी इस पार्टी ने सेना का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप मढ़ा थ। तब अटल बिहार वाजपेयी ने कहा था, ‘कोई आचार संहिता हमें अपने सैनिकों को कारगिल में उनकी विजय पर खुशी प्रकट करने और उन्हें बधाई देने से रोक नहीं सकती।’ कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने आगे कहा था, ‘जब दूसरे कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की आलोचना करने से बाज नहीं आते तो हम अपनी विजय की बात क्यों न करें?’  अपने इस जवाब से अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस की गंदी राजनीति की धज्जियां उड़ा दी थी। कारगिल युद्ध में विजय देश की सेना की शौर्य गाथा है, देश के उन जवानों के बलिदान का प्रतिक है जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपनी प्राणों तक कि परवाह नहीं की। केवल अपने राजनीतिक हित के लिए कारगिल विजय दिवस का इस तरह से अपमान करना अशोभनीय है। देश की कोई भी पार्टी या व्यक्ति  देश से बड़ा नहीं हो सकता और न ही कभी होगा।

जय हिंद

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