देश में पत्रकारिता का स्तर इतना गिर चुका है कि देश के तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों को भी खबरों की सच्चाई दिखाने में असहजता महसूस होती है। दिल्ली के चांदनी चौक में मंदिर तोड़े जाने वाली घटना पर भी हमें इन पत्रकारों का ऐसा ही रुख देखने को मिला।अक्सर मोब लिंचिंग पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले ये पत्रकार चांदनी चौक की इस गंभीर घटना पर नदारद दिखे। हालांकि, आज भी देश में कुछ ऐसे पत्रकार बचे हैं जो घटनाओं और खबरों को सत्यता के साथ प्रकाशित करने में विश्वास रखते हैं। ज़ी न्यूज़ के वरिष्ठ संपादक सुधीर चौधरी और एबीपी न्यूज़ की वरिष्ठ पत्रकार रूबिका लियाक़त भी ऐसे ही पत्रकारों में से एक हैं। जब सेक्युलर गैंग के पत्रकार स्कूटर विवाद की आड़ में मंदिर तोड़े जाने वाली घटना का बचाव करने की कोशिश करने में जुटे थे, तब इन पत्रकारों ने अपनी पत्रकारिता से इस गैंग के एजेंडे की बखिया उधेड़ कर रख दी।
सुधीर चौधरी ने अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम डीएनए में जहां एक तरफ इस सेक्युलर गैंग के दोहरे मापदण्डों का खुलासा किया, तो वहीं उन्होंने इस घटना के हर पहलू को बड़ी बारीकी से सबके सामने रखा। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा “पुरानी दिल्ली में पार्किंग के विवाद में मुस्लिम समुदाय के कुछ युवकों ने मंदिर पर पत्थरबाजी की और मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया। पुलिस ने तीन लोगों को पकड़ा है और पकड़े गए सभी लोग मुस्लिम समुदाय से हैं।“ गौर किया जाए, तो मंदिर में तोड़-फोड़ की जाने वाली घटना के इसी पहलू को छिपाने के लिए देश का यह सेक्युलर गैंग पूरी शिद्दत से मेहनत कर रहा था लेकिन सुधीर चौधरी ने अपनी एक रिपोर्ट से इन पत्रकारों के एजेंडे पर पानी फेर दिया।
सुधीर चौधरी की तरह ही पत्रकार रूबिका लियाक़त ने भी इन पाखंडी पत्रकारों पर अपने ट्वीट के माध्यम से निशाना साधा। उन्होंने ऐसे पत्रकारों को आड़े हाथों लिया जो हिंदुओं के मंदिर तोड़े जाने पर तो चुप्पी साध लेते हैं लेकिन मुस्लिमों के खिलाफ हुई छोटी सी घटना पर उनके द्वारा ‘डरा हुआ मुसलमान’ के नाम पर बड़े-बड़े लेख लिखे जाते हैं और कैंडल मार्च निकालकर देश में बढ़ती असहिष्णुता का ढिंढोरा पीटा जाता है। उन्होंने ट्वीट किया “मैं पहले दिन से कह रही हूं कि हिंदुस्तान का कोई मुसलमान डरा हुआ नहीं है। हर बात पर विक्टिम कार्ड खेलकर अपनी राजनीतिक दुकान चलाने वालों को अब हिंदुस्तान ख़तरे में नहीं दिखेगा। अगर देश की राजधानी दिल्ली में ऐसा कुछ दूसरी तरफ़ से हो जाता तो अब तक तो मार्च निकल जाते, मोमबत्तियाँ जलती।“
मैं पहले दिन से कह रही हूँ कि हिंदुस्तान का कोई मुसलमान डरा हुआ नहीं है। हर बात पर विक्टिम कार्ड खेलकर अपनी राजनीतिक दुकान चलाने वालों को अब हिंदुस्तान ख़तरे में नहीं दिखेगा। अगर देश की राजधानी दिल्ली में एसा कुछ दूसरी तरफ़ से हो जाता तो अब तक तो मार्च निकल जाते,मोमबत्तियाँ जलती।
— Rubika Liyaquat (@RubikaLiyaquat) July 2, 2019
सुधीर चौधरी और रूबिका लियाक़त समय-समय पर अपनी सच्ची, निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता का उदाहरण देते रहते हैं। वे सुधीर चौधरी ही थे जिन्होंने जेएनयू में विषैला एजेंडा फैला रहे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को एक्स्पोज़ किया था। तब उन्होंने आतंकी अफ़जल गुरु का महिमामंडन कर रहे रहे जेएनयू गैंग के सदस्यों की सच्चाई को सबके सामने रखा था। सुधीर चौधरी ने कठुआ रेप केस में भी अपनी खोजी पत्रकारिता के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की चार्जशीट में मुख्य आरोपी बनाए गए विशाल जंगोत्रा को निर्दोष साबित किया था। बाद में जब कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया था तो कोर्ट ने भी विशाल जंगोत्रा को निर्दोष सिद्ध किया था, इतना ही नहीं, कोर्ट ने तब ज़ी न्यूज़ की खोजी पत्रकारिता की सराहना भी की थी।
इसके अलावा सुधीर चौधरी कैराना और मालदा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी अपनी सच्ची और तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग का उदाहरण दे चुके हैं। आज के समय में ऐसी स्पष्ट और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए सुधीर चौधरी और रुबिका लियाकत की सराहना की जानी चाहिए। इसके साथ ही स्वघोषित निष्पक्ष पत्रकारों को सुधीर चौधरी और रूबिका लियाक़त से कुछ सीखना जरुर चाहिए। यही नहीं अब सेक्युलर गैंग को हर मामले में धार्मिक एंगल खोजकर अपना एजेंडा आगे बढ़ाने की आदत को छोड़ देना चाहिए। और वो सच निष्पक्षता के साथ दिखाना चाहिए जो सभी के साथ न्याय करता हो।