अक्सर ऐसा होता है कि हमारा मोबाइल फोन चोरी हो जाता है और हमारे शिकायत दर्ज करने के बावजूद उसका कुछ आता-पता नहीं चलता है। लेकिन अब मोदी सरकार ऐसी तकनीक लॉन्च करने जा रही है जिससे चोरी हो चुके मोबाइल को ढूंढने में मदद मिलेगी। इस तकनीक से देश में उपयोग हो रहे मोबाइल फोन के खो जाने या चोरी हो जाने की स्थिति में उसे ट्रैक किया जा सकेगा। इस ट्रैकिंग सिस्टम की खास बात यह होगी कि IMEI नंबर बदल देने के बाद भी फोन को ट्रैक किया जा सकेगा। इस तकनीक को Centre for Development of Telematics (C-DoT) ने तैयार किया है और इसे अगले महीने अगस्त में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है।
सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (सी-डॉट) ने टेक्नोलॉजी तैयार कर ली है और अगस्त में इसके लॉन्च कर दिए जाने की उम्मीद है। दूरसंचार विभाग (डीओटी) के अधिकारी ने कहा कि ‘संसद का सत्र खत्म होने के बाद दूरसंचार विभाग इस टेक्नोलॉजी को लॉन्च करने के लिए मंत्री से संपर्क करेगा और इसे अगले महीने लॉंच किया जा सकेगा।
टेलीकॉम विभाग ने जुलाई, 2017 में C-DoT को मोबाइल ट्रैकिंग प्रोजेक्ट ‘सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर (CEIR)’ सौंपा था। सरकार ने देश में CEIR सेट-अप करने के लिए 15 करोड़ रुपए आवंटित करने का प्रस्ताव दिया था।
ऐसे काम करेगी यह तकनीक:
खोये हुए या चोरी हुए मोबाइल फोन से सिम कार्ड निकाले जाने या उसका आइएमईआइ नंबर बदल दिए जाने के बावजूद सीईआइआर इस हैंडसेट की सारी सुविधा ब्लॉक कर देगा, भले ही वह डिवाइस किसी भी नेटवर्क पर चलाया जा रहा हो।
CEIR सभी नेटवर्क ऑपरेटर्स के लिए एक सेंट्रल सिस्टम की तरह काम करेगा, और सभी मोबाइल सेवा प्रदाताओं के आइएमईआइ डाटाबेस को एक-दूसरे से जोड़ देगी। नेटवर्क ऑपरेटर्स को इस CEIR में चोरी हुए तथा ब्लैक लिस्ट किए गए मोबाइल की जानकारी साझा करनी होगी जिससे किसी भी नेटवर्क में ब्लैकलिस्ट किये गये मोबाइल दूसरे नेटवर्क में काम नहीं कर सकेंगे। इस तकनीक से मोबाइल का सिम कार्ड बदल दिए जाने के बाद भी वह नहीं चलेगा।
आने वाले दिनों में यह उम्मीद की जा रही है कि इस प्रणाली से उपभोक्ताओं के हितों की भी सुरक्षा होगी। यह पुलिस तथा अन्य कानून लागू करने वाली एजेंसियों को मोबाइल का पता लगाने में मदद करेगी। इससे देश में जाली मोबाइल फोन हैंडसेट्स की संख्या घटाने और चोरी के मामलों को कम करने में मदद मिलेगी।
डीओटी ने CEIR प्रोजेक्ट की शुरुआत 2017 में की थी। महाराष्ट्र में इसका ट्रायल किया जा चुका है। ट्रायल में यह प्रोजेक्ट सफल रहा। अब इसको राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की तैयारी चल रही है।