उन्नाव की मामूली घटना को सांप्रदायिक रंग देने वाली ‘निष्पक्ष’ मीडिया को पुलिस ने किया एक्स्पोज़

(PC: Firstpost)

मामूली झगड़ों को सांप्रदायिक रंग देकर टीआरपी बटोरना आज देश की मुख्यधारा मीडिया का एकमात्र मकसद रह गया है। मीडिया हर खबर में धर्म का एंगल ढूंढकर उसे बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करती है ताकि भारत में कथित बढ़ती असहिष्णुता को जायज ठहराया जा सके। कुछ दिनों पहले मीडिया ने उन्नाव की एक घटना को लेकर भी कुछ ऐसा ही किया। दरअसल मीडिया ने यह खबर प्रचारित की, कि उन्नाव के सदर क्षेत्र से जीआईसी ग्राउंड में क्रिकेट खेलने आए मदरसा के कुछ विद्यार्थियों को कुछ लड़कों ने न सिर्फ पीटा, बल्कि कथित रूप से धार्मिक नारे बुलवाने के लिए बाध्य भी किया

हालांकि यदि उन्नाव पुलिस की माने, तो यह सारा मामला फर्जी था। उन्नाव पुलिस के अनुसार कुछ असामाजिक तत्वों ने जानबूझकर क्रिकेट मैदान पर हुई एक मामूली झड़प को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया। यही नहीं, पुलिस के सूत्रों की माने तो जिन लड़कों से कथित रूप से ज़बरदस्ती ‘जय श्री राम’ बुलवाया, वो लड़के उस समय क्रिकेट मैदान पर उपस्थित ही नहीं थे।

उन्नाव के सदर क्षेत्र में स्थित दारूल उलूम फैज ए आइम मदरसा के संचालक, मौलाना नईम खान के अनुसार मदरसा के लड़के गुरुवार को क्रिकेट खेलने के लिए जीआईसी ग्राउंड गए थे । उनके मुताबिक वहां पर किसी संगठन से संबंध रखने वाले तीन से चार लड़कों ने आकर न सिर्फ उन्हे क्रिकेट के बल्ले से पीटने लगे, बल्कि उनसे ज़बरदस्ती ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगवाए। जब मदरसा के लड़के वहां से भागने का प्रयास करने लगे, तो उनपर पत्थर भी बरसाए गए, जिससे न सिर्फ उन लड़कों के कपड़े फट गए, अपितु उनकी साइकिलों को भी काफी क्षति पहुंची।

इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने में मीडिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मदरसा और मस्जिद के प्रशासन ने कारवाई न होने की स्थिति में धरना प्रदर्शन की चेतावनी भी दे दी, जिसके कारण पुलिस को अविलंब एक्शन में जुटना पड़ा। एक लड़के को इस मामले के संबंध में हिरासत में भी लिया गया, लेकिन पूरी जांच पड़ताल के बाद कहानी तो कुछ और ही निकली।

मामले की जांच कर रहे सर्कल ऑफिसर के अनुसार ये झड़प जीआईसी ग्राउंड पर क्रिकेट खेलने के दौरान हुई थी। सर्कल ऑफिसर के अनुसार, “गुरुवार को जीआईसी के क्रिकेट ग्राउंड पर हुई दो गुटों के झड़प में जामा मस्जिद के तीन लड़के घायल हो गए। अभियुक्तों के विरुद्ध केस रजिस्टर हुआ है, और आगे की कार्रवाई भी जारी है।“

सूत्रों के अनुसार ये भी पता चला है की जिन लड़कों से ज़बरदस्ती धार्मिक नारे लगवाए थे, वे कथित रूप से मैदान पर उपस्थित ही नहीं थे। इस बात का संज्ञान लेते हुये उन्नाव के आईजी [लॉं एंड ऑर्डर]  प्रवीण कुमार ने बताया की पूरा मामला केवल क्रिकेट खेलने के पीछे दो गुटों की आपसी झड़प का था। आईजी के अनुसार, “स्थानीय पुलिस ने इस मुद्दे पर प्रभावी कार्रवाई की है। कोई धार्मिक नारे नहीं लगवाए गए थे। कुछ लोग एक साजिश के अंतर्गत इसे सांप्रदायिक रंग देने में जुटे हुये हैं। पुलिस इन लोगों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करेगी”।

यह पहला अवसर नहीं है जब टीआरपी के लिए लेफ्ट लिबरल मीडिया ने किसी आपसी झड़प को जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया हो। वर्ष 2017 में ट्रेन की सीट को लेकर उपजे विवाद को लेकर जब एक युवक की हत्या की गयी, तो इसी लेफ्ट लिबरल मीडिया ने इसे सांप्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह अलग बात की कोर्ट की प्रारम्भिक जांच में इनके प्रपंच की धज्जियां उड़ने में ज़्यादा समय नहीं लगा।

यही नहीं, अभी हाल ही में जब कानपुर में एक युवक से ज़बरदस्ती धार्मिक नारे लगवाए जाने की बात सामने आई, तो उसे भी हमारी लेफ्ट लिबरल मीडिया ने अविलंब सांप्रदायिक रंग दे दिया, जबकि मामला बाद में झूठा सिद्ध हुआ। लेकिन हमें धन्यवाद देना होगा उन्नाव पुलिस का, जिन्होंने ऐसे गंभीर माहौल में अपना संयम कायम रखते हुये न केवल निष्पक्ष कारवाई की, अपितु इस घटना से संबन्धित झूठे तथ्यों का पर्दाफ़ाश भी किया और वैमनस्य की भावना बढ़ाने वालों के विरुद्ध सख्त कारवाई करने का आश्वासन भी दिया

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