कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले वेणु करे कंकणम।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि
जय श्री कृष्ण। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर मैं अतुल मिश्रा आप सभी को TFI परिवार की ओर से इस महापर्व की शुभकामनाएँ देता हूँ। भगवान कृष्ण एक युगपुरुष हैं। अगर सूक्ष्मता से नीरीक्षण करें तो श्री कृष्ण का जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। उनका जन्म कारागार मे हुआ, उनके नीरीह भाइयों को जन्म के उपरांत ही निर्ममता से मार डाला गया।
उनका शैशव माता पिता से दूर गुजरा, बाल्यकाल से किशोरावस्था तक उन्हे मारने के षड्यंत्र होते रहे, जब राज्य मिला तो उसे छोड़ कर दूर बसना पड़ा, उनके ही लोगों ने उनपर मणि चुराने का आरोप लगाया, जब वे अपने संबंधियों से मिलने गए तब उनके राज्य को उनके शत्रु ने तहस नहस कर दिया, जब वे शांति दूत बन कर गए तब उन्हें बंदी बनाने का प्रयत्न किया गया, और फिर उनपर उस युद्ध के संचालन का दायित्व आ गया जहां न उनका कोई व्यक्तिगत लाभ था ना हानि। फिर उन्हें उसी युद्ध के लिए शाप का दंश झेलना पड़ा और उनके ही सामने उनके सहचर आपस मे लड़ मरे। पर क्या श्री कृष्ण कभी क्रोधित या निरुत्साह दिखे? श्री कृष्ण हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं जो निराश है, या कष्ट के सामने घुटने टेकने वाला है।
आज मैं आपके समक्ष एक आपबीती सुनाऊँगा। मुझे भगवान श्रीकृष्ण के चक्रधर रूप का एक विग्रह प्राप्त करने का विचार आया। मैं दिल्ली के कम से कम 20 दुकानों मे गया और बाद मे मूर्तिकारों के पास। भगवान श्रीकृष्ण के चक्रधर स्वरूप का एक भी विग्रह उपलब्ध नहीं था। भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप और मुरलीधर रूप के विग्रहों की कोई कमी नहीं थी। जब मैंने पूछा ऐसा क्यों तो दुकानदारों ने बताया कि हमारे पास ऐसे विग्रह आते ही नहीं। जब मूर्तिकारों से पूछा तो उन्होने कहा कि कोई बनवाता ही नहीं। गीता उपदेश स्वरूप के श्री विग्रह उपलब्ध अवश्य थे परंतु वे भी संख्या के हिसाब से काफी कम थे।
श्री कृष्ण का चक्रधर रूप, योगेश्वर रूप और गुरु रूप उनके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण रूप थे। योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के चरित्र के जिन स्वरूपों को सबसे अधिक समझने और अनुसरण करने की आवश्यकता है है वो आज लुप्तप्राय से होते जा रहे है। यदि हम महाभारत और उसी के परिशिष्ट हरिवंशम का अध्ययन करें तो पाएंगे कि भगवान श्रीकृष्ण एक राजा हैं, एक महान योद्धा हैं, एक सखा हैं, एक युद्ध रणनीतिकार हैं, एक शांतिदूत हैं, एक कूटनीतिज्ञ हैं और सबसे ऊपर एक गुरु हैं।
अब सोचिए, जिस भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यकाल मे ही पूतना, तृणावर्त, बकासुर, अघासुर इत्यादि महान असुरों का वध किया, किशोरावस्था मे केशी और कंस का वध किया, तदनंतर शौभ विमान ध्वस्त किया, उसके राजा शाल्व का वध किया, शिशुपाल को उसके धृष्टता का दंड दिया, नरकासुर का संहार किया, मल्लयुद्ध मे ब्रह्मापुत्र जामवान को हराया, देवराज इंद्र के कोप से अपने ग्राम को बचाया, कालिया नाग का दमन किया, क्या उनसे बड़ा योद्धा कोई और हो सकता है। अब यह सोंचिए जिस देव ने महाभारत के युद्ध का संचालन किया और पांडवों को विजय दिलाई उनसे महान रणनीतिकार कोई और हो सकता है।
या जिन देव ने युद्ध के अपरिहार्य होते हुए भी दुर्योधन को शांति संदेश भेजा उनसे बड़ा शांतिदूत और कूटनीतिज्ञ कोई हो सकता है या जिस देव ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया उनसे बड़ा गुरु योग योगेश्वर कौन हो सकता है?
जब हम नटखट कनहईय्या का स्मरण करे तो हमे द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण को भी स्मरण करना चाहिए जिनहोने शत्रुओं को रोकने के लिए एक अयोध्य नगरी बनाई थी। जब हम मुरलीधर श्रीक़ृष्ण के रूप से मोहित हो तो हमे योगेश्वर भगवान कृष्ण के गीता के कर्मोपदेश को भी आत्मसात करना चाहिए। जब हम गोपियों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले भगवान कृष्ण का स्मरण करें तो महाभारत की रणनीति बनाने वाले कुशल नीतिकार को भी स्मरण करना चाहिए।
आज के भारत को भगवान श्रीकृष्ण की सबसे अधिक आवश्यकता है। उनके कर्म ज्ञान की, उनके धर्म ज्ञान की, उनके तर्कपटुता की, उनके चातुर्य की, उनके वीरता की, उनके प्रेरणा की। हम सबके अंदर भगवान कृष्ण का कोई ना कोई अंश अवश्य ही निहित है, आज के भारत को आवश्यकता है उस सुसुप्त अंश को जगाने की।