भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों का आकलन तथा मान्यता देने वाली संस्था राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद यानि NAAC ने अपने क़ानूनों में भारी बदलाव करते हुए एक आचार संहिता बनाया है जिसके तहत NAAC के अधिकारियों और उनके परिवार को डॉक्ट्रेट की मानद डिग्री स्वीकार करने से रोकेगी। यही आचार संहिता यूजीसी यानि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के अधिकारियों के लिए भी लागू होगा।
इससे पहले तक इन दोनों ही संस्थाओं के अधिकारियों कों प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं द्वारा मानद डॉक्ट्रेट की डिग्री दिया जाता था जिससे वह अधिकारी उन शिक्षण संथाओं के प्रति वफादारी दिखाते थे और उन्हें अच्छी मूल्यांकन देते थे।
इंडियन एक्स्प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार इस आचार संहिता या कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार “संस्थानों के मूल्यांकन और मान्यता देने वाली टीम के चेयरपर्सन / मेंबर को-ऑर्डिनेटर सदस्यों एक घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होगा जिसमें उन्हें यह घोषित करना होगा कि, वह किसी भी शिक्षण संस्था का मूल्यांकन करने के एक वर्ष के बाद तक से “किसी भी मानद उपाधि / पुरस्कार अवधि के लिए स्वीकार नहीं करेंगे।” इसमें यह भी जोड़ा गया है कि यही नियम उनके परिवार पर भी लागू होंगे।
यह आचार संहिता NAAC की ही कार्यकारिणी समिति ने अनुमोदित किया तथा अधिकारियों और स्टाफ से इसे लागू कर एक उदाहरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
इंडियन एक्स्प्रेस से बात करते हुए NAAC के डाइरेक्टर एससी शर्मा ने बताया, “यूजीसी के वाइस चेयरमैन भूषण पटवर्धन की अध्यक्षता वाली एक समिति ने इस कोड का मसौदा तैयार किया गया है। चुनाव आयोग ने भी इसे मंजूरी दे दी है, और इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जा रहा है। यह NAAC के प्रत्येक कर्मचारी को ऊपर से लागू होता है।”
वही भूषण पटवर्धन का कहना है, “NAAC के लिए तैयार इस कोड को हम इस UGC में भी लागू करने जा रहे हैं। मैं विभिन्न क्षेत्रों में उच्च शिक्षा से संबंधित अन्य अधिकारियों से अपेक्षा करता हूं कि वे संभावित हितों के टकराव से बचने के लिए इस आचार संहिता को लागू करें। हमने द इंडियन एक्सप्रेस की जांच में उठाए गए मुद्दों पर ध्यान दिया है।”
इससे पहले जो भी अधिकारी NAAC और यूजीसी में नियुक्त किए जाते थे, प्राइवेट शिक्षण संस्था उन्हें खुश करने के लिए उन्हें या उन अधिकारियों के परिवार वालों को मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि दे देते थे ताकि वह उस विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्था NAAC के मूल्यांकन में अच्छी ग्रेड दे। इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार ऐसे कई नेता तथा नौकरशाहों जिन्हें पिछले 20 वर्षों में भारत के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था जब वे इन संस्थानों के उच्च पद पर आसीन थे।
इंडियन एक्स्प्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि उसके आरटीआई के बाद यह सामने आया कि पिछले 20 साल में यानि 1997 से 2007 तक 160 पब्लिक यूनिवर्सिटीयों ने लगभग 1400 लोगों को 2000 मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि प्रदान किया। किसी भी प्रकार की मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि से किसी प्रकार का वित्तीय फायदा तो नहीं होता लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्व है। अब इस नए कोड ऑफ कंडक्ट से इस तरह के प्रथाओं पर रोक लगेगी तथा और शिक्षण संस्थाओं के मूल्यांकन में पारदर्शिता आएगी।