जब से भारत ने भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर से विशेष दर्जे को वापस लिया है और राज्य को दो हिस्सों में बांटने का फैसला लिया है, तभी से पाकिस्तान के मानो बुरे दिनों का दौर शुरू हो गया है। वह पाकिस्तान ही था, जिसने सबसे पहले भारत के इस आंतरिक फैसले पर अपनी कड़ी आपत्ति जताई थी। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि भारत को इसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए, उसके बाद पाकिस्तान ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉरपोरेशन यानी ओआईसी से मदद मांगी थी, हालांकि, ओआईसी के सबसे प्रमुख सदस्यों में से एक यूएई ने अगले ही दिन भारत के पक्ष में एक बयान दे डाला था और कहा था कि कश्मीर पर फैसला पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है।
इसके बाद कश्मीर मुद्दे पर चीन की मदद से UNSC में बुलाई गई एक अनौपचारिक बैठक में भी UNSC के 5 स्थायी सदस्य देशों में से 4 ने भारत का साथ दिया और पाकिस्तान को वहां भी मुंह की ही खानी पड़ी। अभी फ्रांस में जी7 शिखर सम्मेलन जारी है, और यहां भी विश्व की तमाम महाशक्तियां भारत के पक्ष में ही खड़ी नज़र आ रही हैं। जी7 शिखर सम्मेलन में अमेरिका ने भी यह साफ कर दिया कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है और दोनों देश साथ मिलकर ही इस मुद्दे को सुलझाएंगे।
फ्रांस, रूस और यूके पहले ही भारत के समर्थन में थे और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से आखिरी उम्मीद थी। डोनाल्ड ट्रम्प ने भी आखिर तक इमरान खान को बेवकूफ बनाया। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो पहले ही कह चुके थे कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है, लेकिन ट्रम्प के बयान किसी और बात की तरफ ही इशारा कर रहे थे। ट्रम्प ने कई बार इस बात को कहा कि कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने के लिए वे तैयार हैं जिसकी वजह से इमरान खान के मन में यह आशा जगी कि ट्रम्प वाकई भारत को अपने दबाव में लेकर आ सकते हैं।
इमरान खान की गलतफहमी की सबसे बड़ी वजह यह थी कि कश्मीर पर भारत के फैसले से केवल कुछ दिनों पहले ही इमरान खान अमेरिका के दौरे पर गए थे और वहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके बीच कश्मीर मुद्दे पर बात हुई थी। तब ट्रम्प ने एक खोखला दावा करते हुए कहा था कि पीएम मोदी ने उन्हें कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने का अनुरोध किया है। ट्रम्प के इस बयान के बाद पाकिस्तान में जश्न मनाया गया था।
हालांकि, कल जी7 सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी से मुलाक़ात के दौरान ट्रम्प और पीएम मोदी की कैमिस्ट्रि देखने लायक थी। दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर हंस रहे थे और पीएम मोदी राष्ट्रपति ट्रम्प के सामने आत्मविश्वास से भरे नज़र आ रहे थे। पीएम मोदी ने भी ट्रम्प के सामने साफ शब्दों में यह कह दिया कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है, और उसके बाद ट्रम्प को भी यही दोहराना पड़ा।
जी7 शिखर सम्मेलन ने कश्मीर को लेकर इमरान खान की सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। फ्रांस ने इमरान खान को झटका देने की शुरुआत की, और कहा कि कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे देश को मध्यस्थता करने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद यूके ने भी भारत की हां में हां मिलाया और आखिर में डोनाल्ड ट्रम्प ने रही सही कसर पूरी कर दी। अब इमरान खान की हताशा को समझा जा सकता है। इसी हताशा में आकर कल उन्होंने भारत को फिर वही कहा जो उन्होंने इस महीने की शुरुआत में कहा था, उन्होंने दोहराया कि ‘भारत को इसके बुरे अंजाम भुगतने होंगे’। ये बात और है कि जब से भारत ने कश्मीर को लेकर अपना ऐतिहासिक फैसला लिया है, वह पाकिस्तान और इमरान खान ही है जो इस फैसले के अंजाम भुगतने पर मजबूर हो चुके हैं, और भविष्य में भी इमरान खान को ऐसे ही झटकों को सहने के लिए तैयार रहना चाहिए।