दूसरे देशों को आँख दिखाकर उसपर दबाव बनाना हमारे पड़ोसी देश चीन की पुरानी आदत रही है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि चीन का ऐसा कोई भी पड़ोसी देश नहीं है जिसके साथ इस देश का सीमा विवाद ना हो। पिछले 2 दशकों में चीन ने आर्थिक मोर्चे पर बड़ी तरक्की की है, और अब यही वजह है कि अब वह आर्थिक ताकत के दम पर दूसरे देशों को डराने धमकाने का काम कर रहा है। छोटे देशों के साथ उसकी यह रणनीति कामयाब हो भी जाती है लेकिन चीन ने अब की बार हुवावे मामले पर भारत से भी पंगा लेने का फैसला लिया, और उसे भारत की ओर से उसे ईंट का जवाब पत्थर से दिया गया है।
दरअसल, इसी महीने की शुरुआत में चीन ने भारत को हुवावे के परिचालन के संबंध में कड़े शब्दों में चेतावनी दी थी। चीन ने कहा था, ‘अगर हुवावे पर भारत में व्यापार करने पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो चीन अपने यहां कारोबार करने वाली भारतीय फर्म पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वतंत्र होगा’। हुवावे 5जी तकनीक का पूरी दुनिया में प्रसार करने पर काम कर रहा है लेकिन अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इस कंपनी पर इन देशों की सुरक्षा से समझौता करने और चीनी सेना के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है। इन देशों का मानना है कि हुवावे कंपनी चीनी सरकार के प्रभाव में काम करती है और सुरक्षा के लिहाज से यह इन देशों के लिए खतरा साबित हो सकती है।
इन सब देशों द्वारा हुवावे पर कार्रवाई के बाद भारत में भी हुवावे पर प्रतिबंध की मांग उठना शुरू हुई थी जिसके बाद चीन ने भारत को चेतावनी जारी की थी। हालांकि, अब भारत के अधिकारियों ने चीन को उसी की भाषा में जोरदार जवाब दिया है। भारत के अधिकारियों ने कहा है कि अगर चीन अपनी चिंताओं को कूटनीतिक माध्यम से भारत सरकार तक पहुंचाता, तो अच्छा रहता। अधिकारियों ने यह भी कहा है कि चीन द्वारा खुले तौर पर भारत को धमकी देने की वजह से अब भारत सरकार के रुख में भी बदलाव आएगा और हुवावे को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि चीन की कंपनी हुवावे को लेकर भारत की चिंताओं को व्यापार नीति नहीं बल्कि सुरक्षा नीति से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
हुवावे पर कई देश गंभीर आरोप लगा रहे हैं। बता दें कि जो पश्चिमी देश हुवावे को अपने यहां 5जी ट्रायल करने की इजाजत नहीं दे रहे हैं, उनका मानना है कि चीन की यह कंपनी उनकी सुरक्षा में सेंध लगा सकती है। इसके अलावा इन देशों को यह भी शक है कि हुवावे इन देशों से संवेदनशील जानकारी चुराकर चीनी सेना के साथ साझा कर सकती है, जो कि इन देशो की सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है। हुवावे कंपनी पर अन्य देशों की कंपनियों के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का उल्लंघन करने का आरोप भी लगता रहा है। अभी सबसे ताज़ा मामले में हुवावे कंपनी पर चेक रिपब्लिक में भी चीनी सरकार के साथ मिलीभगत के आरोप लगे थे। चेक रिपब्लिक के कुछ ब्रॉडकास्टर्स ने हुवावे पर आरोप लगाया था कि यह कंपनी अपनी सेवाओं के बदले अपने क्लाइंट्स के कुछ गोपनीय जानकारी जुटाने की कोशिश कर रही थी। हुवावे के फाउंडर की बेटी और चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर मेंग वांझाऊ पर पहले ही फ्रॉड के चार्ज लगे हुए हैं। अमेरिका ने हुवावे पर आरोप लगाया था कि उनका एक ऐसी कंपनी के साथ संबंध है, जो ईरान को उपकरण बेच रही है, जबकि अमेरिका ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए हुए हैं।
चीन इससे पहले सैन्य मोर्चे पर भी भारत को आँख दिखाने का काम कर चुका है। वर्ष 2017 में भारत और चीन की सेनाएं डोकलाम विवाद पर एक दूसरे के आमने–सामने आ गई थी और चीन आए दिन भारत को नई धमकियाँ दिये जा रहा था। तब भी मोदी सरकार के नेतृत्व में भारतीय सेना चीनी सेना को खदेड़ने में सफल रही थी। अब चीन आर्थिक मोर्चे पर भी भारत को आंखे दिखाने का काम कर रहा है, तो यहाँ भी भारत को चीन को सबक सिखाने के मूड में है। चीन को ऐसी धमकी देने से पहले यह समझ लेना चाहिए था कि वह इस वक्त भारत के साथ कोई तनाव बढ़ाने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है। चीन पहले ही अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध के कारण घुटनों पर है, और ऐसी स्थिति में भारत के साथ पंगा लेना चीन के लिए अच्छा नहीं होगा।
जहां भारत में तकनीक का विस्तार जरूरी है, तो वहीं दूसरी तरफ देश की सुरक्षा से भी समझौता नहीं किया जा सकता। जिस तरह पश्चिमी देशों ने अपने यहां हुवावे द्वारा खड़ी की गई सुरक्षा चुनौती को पहचानकर कंपनी पर प्रतिबंध लगाने का काम किया है, ठीक उसी तरह भारत को भी सतर्क होकर कंपनी के परिचालन से जुड़े विवादों के मद्देनजर जांच करने की ज़रूरत है। सरकार के लिए 5जी तकनीक नहीं, बल्कि लोगों की निजता और देश की सुरक्षा प्राथमिकता है और यही कारण है कि अब सरकार के अधिकारियों ने चीन को उसी की भाषा में कडा जवाब दिया है।