गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को राज्यसभा में जम्मू एवं कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में करने का विधेयक सदन में पेश किया, इस विधेयक के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य के दो हिस्से होंगे- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। जम्मू कश्मीर और लद्दाख दोनों केंद्र शासित प्रदेश होंगे लेकिन जम्मू कश्मीर की अपनी विधानसभा होगी जबकि लद्दाख पूर्णतः एक केन्द्र्शासित प्रदेश होगा।
केंद्र सरकार अगर इस विधेयक को पारित करवा लेती है तो केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या बढ़ कर 7 से अब 9 हो जाएगी। इन 9 केंद्रशासित प्रदेशों में अभी तक सिर्फ दिल्ली, पुदुच्चेरी और जम्मू-कश्मीर में ही विधानसभा का प्रावधान है। केंद्र शासित प्रदेश में केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए कानून के तहत काम होता है। हालांकि, भले ही यहां मुख्यमंत्री को जनता चुनकर भेजती है लेकिन संविधान के अनुसार यहां के सभी कार्य राष्ट्रपति के प्रतिनिधि द्वारा किए जाते हैं। अंडमान-निकोबार, दिल्ली और पुडुचेरी का मुखिया उपराज्यपाल होता है। इन राज्यों में राज्यपाल को मु्ख्यमंत्री से ज्यादा अधिकार होते हैं। जम्मू-कश्मीर अब दिल्ली की तरह ही होगा जहां विधानसभा के चुनाव होंगे और मुख्यमंत्री भी चुने जाएंगे।
मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 (1) को छोड़कर धारा 370 के सभी खंड हटा दी है। अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद घाटी में राज्य पुनर्गठन विधेयक लाया जाएगा। जिसके बाद कश्मीर में अब शांति आने की उम्मीद है। दिल्ली की तरह ही विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बनने से घाटी की राजनीति में काफी बदलाव देखने को मिल सकता है।
हालांकि केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार लेफ्टिनेंट गवर्नर के माध्यम से शासन करती है। इस नए बदलाव के बाद राज्य में विधानसभा का विकल्प होगा लेकिन यहां दिल्ली के तर्ज पर ही केंद्र सरकार शासन करेगी। इस तरह के केंद्र शासित प्रदेशों की शक्तियां सामान्य राज्य सरकारों से कम होती हैं। बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है न उपराज्यपाल का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति भी द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है। दिल्ली के सभी मंत्री राष्ट्रपति के सुझाव पर ही कार्य करते हैं लेकिन मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। हालांकि दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश के पूरे मंत्रिमंडल को शपथ दिल्ली का उप-राज्यपाल ही दिलाता है।
इसी कारण से लोगों द्वारा चुनी गयी सरकार भी अपनी मर्जी के हिसाब से फैसले नहीं ले सकती है। उसे ज्यादातर कार्यों के लिए उप राज्यपाल की अनुमति लेनी पड़ती है जो कि राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है। दिल्ली विधान सभा को राज्य सूची और समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार है लेकिन “जन, जमीन और पुलिस” पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती। यह पूरी तरह से केंद्र के अधिकार क्षेत्र में होता है।
ठीक इसी तरह से अब जम्मू और कश्मीर पर केंद्र सरकार का शासन होगा। आज़ादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकारें अलगाववाद को बढ़ावा देकर अपना उल्लू सीधा करती थी लेकिन अब जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील हो जाने के बाद केंद्र सरकार अपने अनुसार शासन करेगी। इससे वहां के नागरिक भी देश की मुख्यधारा से जुड़ेंगे। केंद्र के हाथों में शासन रहने से आतंकी गतिविधियों को भी काबू किया जा सकेगा। जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री को अलगाववादियों के दबाव से भी छुटकारा मिल सकेगा और सुरक्षा के नजरिए से यह क्षेत्र और भी ज्यादा सुरक्षित होगा।