जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की उपस्थिति और मज़बूत करने की मंशा से केंद्र सरकार ने 30,000 से भी ज़्यादा अर्धसैनिक बलों की तैनाती के निर्देश दिये हैं। हालांकि, जहां एक ओर प्रशासन और सुरक्षा बल मिलकर राज्य में व्याप्त देश विरोधी ताकतों से डटकर मोर्चा लेने को तैयार हैं, तो वहीं हमारे देश के लेफ्ट लिबरल पत्रकार अपनी आदतों के अनुरूप मौजूदा स्थिति के प्रति लोगों को भड़काने में जुट गए हैं।
सुरक्षाबलों की तैनाती पर सबसे पहले ट्वीट करने वालों में राजदीप सरदेसाई हैं जिन्होंने अपने ट्वीट में कहा – ‘सरकार पर्यटकों और अमरनाथ यात्रियों को आतंकी हमले के खतरे के कारण कश्मीर घाटी छोड़ने का फरमान जारी करती है। क्या पैनिक बटन प्रेस किए जा रहे हैं? शायद अर्थव्यवस्था पर मंडराते मंदी के बादल अब इन तैनाती की खबरों में कहीं छुप जाएंगे!’
Leave Kashmir valley at once, Govt tells tourists, Amarnath pilgrims amidst terror threat warning. Panic buttons being pressed? Guess the ‘real’ warning on the economy will now once again be lost amidst the screaming headlines!
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) August 2, 2019
ऐसे में विवादित पत्रकार श्रीनिवासन जैन भला कहां पीछे रहते। उन्होंने भी अपना मत रखते हुए ट्विटर पर पोस्ट किया, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सरकार की इस नीति [कश्मीर में सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती] को क्या नाम दूँ। मेरे जहन में केवल क्रूर और लापरवाह शब्द ही आ रहे हैं।‘
Trying to find words to describe what this government is doing in – and to – Kashmir. Reckless and cruel come to mind.
— Sreenivasan Jain (@SreenivasanJain) August 2, 2019
परंतु इस कदम से यदि किसी को सबसे ज़्यादा आघात पहुंचा है, तो वो है बरखा दत्त। अपने अकाउंट से ट्वीटों की झड़ी लगाते हुए उन्होंने कश्मीर में वर्तमान स्थिति पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
अपने पहले ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘मुझे पता नहीं कि जम्मू-कश्मीर में आखिर हो क्या रहा है, पर मैं कश्मीर के तीन भागों में विभाजन की बातों में ज़रा भी विश्वास नहीं करती हूं। भारत की कोई भी सरकार ऐसा नहीं कर सकती।‘
I don't know what the hell is happening in Kashmir but I don't believe one bit of these crazy trifurcation rumours. No government of India would EVER do that.
— barkha dutt (@BDUTT) August 2, 2019
इसके पश्चात उन्होंने आगे के अपनी ट्वीट्स में केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, “आतंकी धमकियों के बाद अमरनाथ यात्रा बंद किया जा रही है। सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती की जा रही है, पर्यटकों को घाटी छोड़ने के निर्देश दिए जा रहे हैं, यह सभी स्पष्ट संपर्क की अनुपस्थिति में तनाव बढ़ाने का सूचक है। सरकार को लोगों से बात करनी चाहिए। ये सामान्य नहीं है।‘
Amarnath Yatra suspended after terror threats, massive troop deployment, rumours of article 35a gone, tourists being asked to leave the valley, all a recipe for panic in the absence of clear communication. The government needs to talk to the people. This is no longer 'normal'.
— barkha dutt (@BDUTT) August 2, 2019
बरखा ने कहा कि “एडवाइजरी के मुताबिक अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमलों के खतरे को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर में उपस्थित अमरनाथ यात्रियों एवं पर्यटकों को घाटी छोड़ने का निर्देश दिया गया है। यात्रा के आधिकारिक निलंबन से लोगों में डर और बढ़ेगा। ‘
Advisory asks Amarnath Yatris and tourists in Jammu and Kashmir to curtail their visit and return as soon as possible in light of inputs of terror threats to the yatra. This effective suspension of the yatra may stoke further panic #AmarnathYatra #Kashmir pic.twitter.com/gg0ANf6heg
— barkha dutt (@BDUTT) August 2, 2019
बरखा दत्त ने आगे अपने एक ट्वीट में ये भी कहा, “माफ कीजिएगा, पर स्थिति चाहे जो हो – फ्लाइट को स्टैंडबाई पर रखना, इतने सारे सर्कुलर्स निकालना, यह तैयारी के नहीं अपितु राज्य में किसी भारी संकट के संकेत है। निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर में जो भी हो रहा है उससे बेहतर तरीके से संचालित किया जा सकता था।‘
Sorry but no matter what the decision,-this, a flood of circulars, flights on standby, mass evacuation plans-this is signalling crisis not readiness. Surely there is a better communication mechanism for whatever is coming in Jammu and Kashmir https://t.co/YGOAmp2pIE
— barkha dutt (@BDUTT) August 2, 2019
I cannot remember a time (please correct me if I am wrong) in 25 years of reporting from Jammu and Kashmir that the Amarnath Yatra was called off. Even after the horrific terror attack on it two years ago in 2017 it continued unabated. There's more here than we know so far
— barkha dutt (@BDUTT) August 3, 2019
इन रिपोर्टरों ने लिबरल होने के नाम पर हमेशा कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधियों के पक्ष में अपनी बात रखी है। अधिकांश अवसरों पर इन सभी ने उग्रवादियों और उनकी नापाक हरकतों का महिमामंडन किया, और भारतीय सेना की प्रतिक्रियाओं को कश्मीरियों पर अत्याचार की तरह दिखाने का प्रयास किया है। वर्तमान स्थिति में भी उन्होंने अलगाववादियों का समर्थन किया है, और सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती को देखते हुए इनका डर लाज़िमी भी है।
यहां पर भी बरखा दत्त और उनके स्वभाव पर प्रकाश डालना अत्यंत आवश्यक है। ये वही बरखा दत्त हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में स्थित आतंकी दल हिज़्बुल मुजाहिदीन के तत्कालीन सरगना बुरहान वानी जो एनकाउंटर में मारा गया था उसे ‘एक स्कूल हेडमास्टर का लड़का’ बताया था।
Breaking: Burhan Wani hizbul commander, son of school headmaster who used social media as weapon of war, killed in Anantag. BIG STORY
— barkha dutt (@BDUTT) July 8, 2016
यदि बरखा दत्त इन ट्वीट्स के दम पर अपने आप को ‘तटस्थ पत्रकार’ कहलाने का दम भरती हैं, तो शायद उनकी शब्दावली बहुत ही खराब है। उनका पक्ष ठीक हमारे उस पड़ोसी देश के पक्ष के समान है, जिसने 2016 में अपने स्वतंत्रता दिवस पर बुरहान वानी को एक ‘राष्ट्रीय नायक’ की संज्ञा दी थी।
शायद बरखा दत्त को जम्मू-कश्मीर में हिंसा ज्यादा रास आती हैं, और इसलिए वे चाहती हैं कि किसी भी स्थिति में घाटी में शांति बहाल न हो। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनके एक पुराने वीडियो में देखने को मिलता है। इस वीडियो में बरखा दत्त ने कश्मीरी पण्डितों के साथ हुए अत्याचारों को उचित ठहराने का घटिया प्रयास किया था, बरखा दत्त के अनुसार, ‘आज ये भले पीड़ित हों, पर कल कश्मीरी पंडित घाटी में विशेषाधिकार प्राप्त अभिजात्य वर्ग से संबंध रखते थे। वे भले अल्पसंख्यक रहे हों, पर उनका सरकारी नौकरियों, अहम पोस्टिंग्स और अन्य सामाजिक सुविधाओं पर कब्जा था। सच कहें तो पंडितों और गरीब मुस्लिम बहुसंख्यकों के बीच आर्थिक समानता की यह गहरी खाई ही राज्य में हिंसा के सर्वप्रथम कारणों में से एक थी।‘
https://twitter.com/Satyanewshi/status/1061119145817731073
बरखा दत्त का ये बयान शर्मनाक था। जिस तरह अलगाववादियों और उग्रवादियों ने घाटी के पंडितों के साथ बर्ताव किया, उनकी जान के दुश्मन बने, वो अपने आप में बेहद क्रूर था, और इसे उचित ठहराने के प्रयास में बरखा दत्त अपनी विश्वसनीयता को बहुत पहले ही खो चुकी हैं।
हाल के ट्वीट्स से इन लेफ्ट लिबरल पत्रकारों का एजेंडा एक बार फिर उजागर हुआ है। यह जानते हुए भी कि सेना का काम केवल राज्य के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना है, फिर भी इन पत्रकारों का मकसद केवल कश्मीरियों में डर के माहौल को बढ़ावा देना है, उनमें भारतीय सेना के प्रति विरोध की भावना भड़काना है। ऐसे में सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती के पीछे भ्रामक खबरें फैलाकर ये लेफ्ट लिबरल पत्रकार घाटी में एक बार फिर तनाव की स्थिति को बढ़ावा दे रहे हैं।
वास्तव में इन लेफ्ट लिबरल पत्रकारों को कश्मीरियों की वास्तविक भावनाओं की कोई परवाह नहीं है, और न ही उन्हें इससे मतलब है कि घाटी के नागरिकों को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ये कश्मीरियों के वास्तविक दर्द को समझे बिना ही उनका दर्द समझने का दावा करते हैं। सच कहूं तो यह ट्वीटस कश्मीरियों से ज़्यादा तो अलगाववादियों का समर्थन करने जैसे हैं, जिन्हें इस घाटी में सुरक्षाबलों की तैनाती से सबसे ज़्यादा तकलीफ हो रही है।