प्रिय प्रधानमंत्री मोदी,
कल एक ऐतिहासिक दिन था, अपने एक मास्टरस्ट्रोक से गृह मंत्री अमित शाह ने उस मिथक को ध्वस्त कर दिया है जिसके तहत कहा जाता था कि ‘जम्मू-कश्मीर का मुद्दा कभी सुलझ नहीं सकता’। जहां तक मुझे याद है, मेरे जैसे कश्मीरियों को यही बताया जाता था कि इस समस्या का कोई हल नहीं है। हम ऐसे परिवेश में पले-बढ़े, जहां किसी भी बात पर विरोध करना और आंदोलन करना एक आम बात हो चुकी थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, तत्कालीन केंद्र सरकारों द्वारा उचित कार्रवाई न होने के कारण समस्या और जटिल होती गयी, और राज्य के अराजक तत्व यह समझने लगे कि वे देश के कानून से ऊपर हैं।
पिछले कुछ दिनों में आपकी सरकार सुनियोजित तरीके से जो एक्शन लिए हैं उससे यह साबित हो गया कि कुछ भी असंभव नहीं है बस सत्ता में बैठी सरकार में इच्छाशक्ति होनी चाहिए। आज यह साबित हो गया है कि जब प्रधानमंत्री और उनकी सरकार स्थिति को सुधारने के लिए कुछ व्यापक बदलाव करने की ठान ले तो उसे कोई नहीं रोक सकता।
आज भी ये सोचते हुये मुझे काफी पीड़ा होती है कि यदि काँग्रेस की पूर्व सरकारों ने अपने शासन में आज की तुलना में आधी भी प्रतिबद्धता दिखाई होती, तो हम कश्मीरी पंडितों को अपने घरों से तीन दशकों तक वंचित नहीं रहना पड़ता।
कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो आपके इस निर्णय को हिंदुओं का तुष्टीकरण समझकर दरकिनार कर देंगे। उन्हें मैं याद दिलाना चाहती हूँ कि एक राष्ट्र के नाते भारत का हमारे समुदाय के प्रति भी कुछ उत्तरदायित्व है, जिसे पहले कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। जो अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, उन्हे जवाब देना चाहिए कि आखिर क्यों उन्होंने इस तथ्य को नकारने का प्रयास किया कि हमारे धर्म के कारण ही हमें घाटी से पलायन को विवश होना पड़ा।
जम्मू-कश्मीर राज्य केवल कश्मीरी मुस्लिमों के लिए ही नहीं है, जैसा कि कुछ ‘बुद्धिजीवी’ और एक्टिविस्ट आपको विश्वास दिलाना चाहते हैं। जम्मू और लद्दाख के लोगों को काफी समय से इनके सौतेले व्यवहार का सामना करना पड़ा है। आपकी सरकार ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देकर उन शांतिप्रिय लोगों की उस अधूरी मांग को पूरा किया है जिसकी मांग वो काफी लम्बे समय से कर रहे थे। राज्य के नाम में लद्दाख का नामोनिशान तक नहीं था, परंतु आपने उसे वो पहचान दी, जो पूर्ववर्ती सरकारों कि कश्मीर आधारित नीतियों में कहीं खो सी गयी थी। ये कदम जम्मू-कश्मीर को संतुलन प्रदान करेगा और इस क्षेत्र में एकता की भावना को भी मजबूत करेगा।
अनुच्छेद 370 जैसे विवादित मुद्दे को हटाकर आपने घाटी में उन्नति एवं विकास का मार्ग प्रशस्त किया है, जो इससे पहले कहीं अटक सी गयी थी। जिस रोजगार और विकास की कश्मीर को बेहद आवश्यकता है, वो अब उद्यमियों के प्रवेश से पूरी हो पाएगी। समय के साथ, जब कश्मीर में भारत के अन्य लोगोंको भी रहने का अवसर प्राप्त होगा, तो कश्मीर एक बार फिर से बहुसंस्कृतिक एवं प्रगतिशील बन जायेगा। कश्मीर के निवासियों को अपने संकुचित विचारधारा से मुक्ति भी मिलेगी और वे नवीन विचारों और नई जीवनशैली को खुलकर स्वीकार कर पाएंगे।
कश्मीर के युवाओं को बेहतर आदर्श चाहिए, वो जिस चारदीवारों से बाहर आयेंगे जिसे वहां के स्वार्थी राजनेताओं ने सीमित कर दिया था। आशा करती हूं कि इस निर्णय से उन्हें धर्म से ऊपर उठकर भारत की मुख्यधारा में जुड़ने की प्रेरणा मिलेगी। जिनका मत यह है कि कश्मीर को अब भी अलग रखा जाये, वो कश्मीरियों को भारत की मुख्यधारा से जुड़ने से रोक रहे हैं।
एक ऐसा राष्ट्र जिसने हमेशा प्रत्येक राज्य / क्षेत्र की विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का सम्मान और प्रचार किया है। ऐसा क्यों है कि कुछ कश्मीरी विशेष दर्जे की मांग करते हैं, जबकि मेरे जैसे अन्य कश्मीरियों को ऐसी सुविधाएं कभी नहीं दी गयी थी? ऐसा क्या है जो घाटी में रहने वाले कश्मीरियों को उन लोगों से अलग करता है जिन्हें ऐसी किसी भी सुविधा से वंचित रखा गया है? यदि ये मजहब है, तो ये और भी आवश्यक है कि घाटी को राष्ट्र से जोड़ा जाये। क्या धर्मनिरपेक्ष भारत को मजहब के आधार पर अलग इकाइयों को बढ़ावा देना चाहिए? मेरे अनुसार तो बिलकुल नहीं, और इस बात से हमारे ‘गणमान्य लिबरल्स’ भी नहीं इनकार करेंगे!
हम जैसे कश्मीरी पंडितों के लिए ये दिन किसी चमत्कार से कम नहीं है। हम काफी खुश है क्योंकि 29 वर्षों के बाद हमें अपने घरों की ओर एक रास्ता बनता हुआ दिख रहा है। जब हम इस जन्म में अपने घर जाने की उम्मीद छोड़ चुके थे, आपने मानो जादू की छड़ी घुमाकर एक शान्तिप्रिय, प्रगतिशील और हमारे स्वागत को तत्पर कश्मीर की एक तस्वीर उकेर दी है। अब मुझे आशा है कि हमें अपनी जड़ों से जुड़ने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा, बिलकुल जैसे विश्व भर में लोग अपने जन्मस्थली में बसने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
हम में से कई लोगों को घर वापस जाने के लिए आपकी सहायता की आवश्यकता पड़ेगी, ताकि हम उस जगह पर वापस अपना अधिकार प्राप्त कर सकें, जहां हम पहले रहा करते थे। यहां पर और लोग भी हैं, जो विदेश में बसे हुए हैं, और आपकी इस नीति का पुरजोर समर्थन करते हैं। घाटी को आतंक के चंगुल से मुक्त कराने के इस अभियान में आपको हमारा पूरा समर्थन मिलेगा।
एक कश्मीरी होने के नाते, मैं एक बार फिर इस निर्णायक और साहसिक फैसले के लिए हमारे गृह मंत्री को आभार प्रकट करती हूँ। हर कश्मीरी पंडितों को पता है कि यदि प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुधार नहीं किया होता, तो कोई और जम्मू- कश्मीर के उपेक्षित समुदाय को उनका न्याय नहीं दे पाता।
आपका बहुत बहुत आभार,
रेणुका धार [एक कश्मीरी जिसकी घरवापसी आपके कारण संभव हुई]