यदि प्रधानमंत्री मोदी की केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने से किसी को सबसे ज़्यादा दुख पहुंचा है, तो उनमें देश के वामपंथी बुद्धिजीवियों के अलावा हमारा पड़ोसी देश भी शामिल है। जबसे अनुच्छेद 370 के उन सभी प्रावधानों को निष्क्रिय कर दिया गया है तबसे हमारा पड़ोसी देश पाक बिलबिला रहा है। इस देश की प्रतिक्रिया से ये भी स्पष्ट हो रहा है कि अनुच्छेद 370 पर जिस तरह से भारत सरकार ने फैसला लिया उसे वो पचा नहीं पा रहा है। लेकिन इनसे एक कदम आगे निकलते हुए पाकिस्तान की शान कही जाने वाली नोबेल पुरस्कार विजेता एवं शिक्षाविद मलाला युसुफ़ज़ई ने अपना दर्द ट्विटर पर बयां करते हुए इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की। ट्विटर पर मलाला युसुफ़ज़ई ने अपने विचार प्रकट करते हुए एक पोस्ट शेयर की जो एक ओपन लेटर जैसा ही है–
The people of Kashmir have lived in conflict since I was a child, since my mother and father were children, since my grandparents were young. pic.twitter.com/Qdq0j2hyN9
— Malala Yousafzai (@Malala) August 8, 2019
मलाला द्वारा शेयर किये गये इस पोस्ट के अनुसार,” हमें पीड़ित रहने और एक दूसरे को दुख पहुंचाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आज मैं कश्मीरी बच्चों और महिलाओं के मामले को लेकर बेहद चिंतित हूं, जो मौजूदा हालात से संघर्ष कर रहे हैं, जिन्हें वर्तमान की स्थिति से सबसे ज़्यादा नुकसान होने वाला है”। मैं आशा करती हूं कि सभी दक्षिण एशियाई, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एवं संबन्धित प्रशासन [अनुच्छेद 370 के हटाये जाने] वहां के लोगों के संघर्ष पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे। हमारे बीच भले ही काफी मनमुटाव हो, पर हमें मानव अधिकारों की सदैव रक्षा करने के लिए तत्पर होना चाहिए, बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा को अहमियत देनी चाहिए और कश्मीर में सात दशकों से व्याप्त कश्मीर समस्या को शांतिपूर्वक सुलझाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए”।
इस पोस्ट को पढ़कर हम यह जरुर कह सकते हैं कि एक बार फिर से मलाला युसुफ़ज़ई के दोहरे मापदण्डों का कोई जवाब नहीं है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाये जाने पर अपने ट्वीट के जरिये मलाला ये दर्शाने का प्रयास कर रही हैं कि कश्मीरी भारत में खुश नहीं है और वो भारत के शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता इससे कहीं परे है।
सच्चाई तो ये है कि मलाला स्वयं आज तक अपने वतन नहीं लौट पायी हैं, क्योंकि उन्हें अब भी आतंकी हमले में मारे जाने का डर सताता है। यही नहीं बलूचिस्तान प्रांत के निवासियों पर हो रहे अत्याचार पर भी वो मौन धारण करना उचित समझती हैं। ऐसे में अपने मुल्क में बलूचिस्तान प्रांत के निवासियों पर हो रहे अत्याचारों पर मौन रहकर कश्मीर पर ज्ञान बांचना मलाला जैसी नोबल पुरस्कार विजेता को कतई शोभा नहीं देता।
हालांकि, यदि कोई मलाला की प्रोफ़ाइल पर शेयर किये गये पोस्ट पर नजर डाले, तो उसे पता चलेगा कि यह पहला ऐसा अवसर नहीं है, जब मलाला ने अपनी हिपोक्रिसी का परिचय दिया हो। इससे पहले भी मलाला ने कई बार कश्मीर के मामले पर आतंकियों के विरुद्ध भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई को कश्मीरियों पर हो रहे अत्याचार के तौर पर दिखाने का घटिया प्रयास किया है। इसके अलावा जब पाक में हिन्दू लड़कियों को अगवा कर उन्हें जबरन इस्लाम कबूल कराया जा रहा था, तब एक युवक ने मलाला की इस विषय पर राय मांगी थी। हालांकि, मलाला ने अपने स्वभाव के अनुसार प्रतिक्रिया देने की बजाए उस युवक को ही अपने ट्विटर अकाउंट पर ब्लॉक कर दिया था।
यही नहीं, अभी हाल ही में सम्पन्न हुए आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के उदघाटन समारोह में जब कई देशों के बीच फ्रेंडली गली क्रिकेट चैंपियनशिप खेली गयी, तो उसमें भारत के अंतिम स्थान पर आने पर मलाला युसुफ़ज़ई खुशी से फूली न समा पायी। अब इसे हिपोक्रिसी न कहें तो क्या कहें? ऐसे में अब ये समझना मुश्किल है कि मलाला आखिर अपने ट्वीट में किस संघर्ष की बात कर रही हैं। ये उनका मुल्क है जो हमारे कश्मीर पर हमले करवाता है और घाटी में अशांति को बढ़ावा देता है। कश्मीरियों के ऊपर हो रहे सो-कॉल्ड ह्यूमन राइट्स वायलेशन की मुखर विरोधी रही मलाला फिर से वही राग अलाप रही हैं, लेकिन जब बलूचिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचार के बारे में बोलने को कहा जाता है, तो इन्हें साँप सूंघ जाता है। मलाला युसुफ़ज़ई के ये दोहरे मापदंड निंदनीय हैं।