जम्मू-कश्मीर राज्य से विशेष अधिकार छीनने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने के फैसले ने पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ा दी है। पाक अब अमेरिका, यूएन और चीन समेत अंतराष्ट्रीय समुदाय से इस मामले पर हस्तक्षेप करने की गुहार लगा रहा है, लेकिन कोई भी उसके साथ खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है। अमेरिका, श्रीलंका, यूएई और मालदीव जैसे देश पहले ही यह साफ कर चुके हैं कि कश्मीर मुद्दा भारत का आंतरिक मामला है और भारत के पास उसके संबंध में सभी अधिकार सुरक्षित हैं। पाकिस्तान का कोई साथ नहीं दे रहा है, और अब यह बात पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी समझ चुके हैं। कल उन्होंने हताशा भरे शब्दों में कहा कि ‘हम इस गलतफहमी में न रहें कि संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में कोई हमारे समर्थन में हार लेकर खड़ा है।‘ इसके अलावा उन्होंने कहा कि वहां कोई हमारे हक में कुछ नहीं कहने वाला।
दरअसल, मुजफ्फराबाद में रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुरैशी ने कहा कि भावनाओं को हवा देना और आपत्तियां जताना बहुत आसान है। उन्होंने कहा ‘हालांकि, इस मुद्दे को समझना और आगे बढ़ना मुश्किल है। वे आपके लिए बाहें फैलाए और हार लिए नहीं खड़े हैं। पी-5 में कोई भी सदस्य अवरोध खड़ा कर सकता है। हमें बेवकुफ नहीं बनना चाहिए’। हैरानी की बात तो यह है कि कुरैशी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मात्र दो दिन पहले ही पाकिस्तान ने यह दावा किया था कि कश्मीर मुद्दे पर चीन पाक के साथ खड़ा है। बता दें कि चीन भी पी5 का एक सदस्य देश है। ऐसे में कुरैशी का यह बयान कई सवाल खड़े कर रहा है। सवाल यह है कि क्या चीन ने भी अब पाक को किसी तरह का समर्थन देने से अपने हाथ खींच लिए हैं। और दूसरा सवाल यह कि क्या चीन ने वाकई पाक को उनका समर्थन करने की बात कही थी, या पाक सरकार ने अपनी आक्रोशित जनता को शांत करने के लिए हवा में ऐसा बयान दिया था।
पाक ने अब पूरी तरह स्वीकार कर लिया है कि दुनिया में उसका कोई साथ नहीं दे रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण भारत की कूटनीतिक शक्ति ही है कि कोई भी देश आज पाक के साथ खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है। कश्मीर मुद्दे पर यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि हमारा पड़ोसी देश पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है। उसे कश्मीर मुद्दे पर अब तक अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियां फटकार चुकी हैं। हालांकि, ये सब पीएम मोदी के शानदार कूटनीतिक कौशल की वजह से ही मुमकिन हो पाया है।
वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तो नई सरकार का सबसे पहला लक्ष्य दुनिया में भारत की छवि को बेहतर बनाना था। इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2018 के अंत तक 52 देशों की यात्रा कर चुके थे, और इस दौरान कुल 165 दिनों तक वह विदेशों में रहे। पीएम मोदी जब भी इन देशों की यात्रा पर जाते हैं तो इन नेताओं से निजी स्तर पर रिश्ते सुधारने की कोशिश करते हैं। इसके बाद निजी स्तर की दोस्ती के जरिये ही वे भारत के हित में अपनी नीतियों को आगे बढ़ाते हैं।
यही कारण था कि जब पाकिस्तान द्वारा फैलाये जा रहे आतंकवाद की वजह से भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए इसे पूरी दुनिया में अलग-थलग करने का बीड़ा उठाया था, तो उसके बाद से अब तक कई मौकों पर पाकिस्तान को इसके खामियाजे भुगतने पड़े हैं। इस वर्ष फरवरी में पुलवामा हमले के बाद जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी, तो भी पूरी दुनिया ने भारत के पक्ष को ही सही ठहराया था। यहां तक कि पाकिस्तान के ऑल वैदर फ्रेंड चीन ने भी पाकिस्तान का साथ देने से मना कर दिया था और यूएन सुरक्षा परिषद द्वारा जारी प्रस्ताव में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम शामिल किया गया।
इसी तरह अब पाक कश्मीर मुद्दे पर दुनियाभर से अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पीएम मोदी के नेतृत्व वाले भारत की शानदार कूटनीति का ही असर है कि कोई भी देश खुलकर ना तो पाक के समर्थन में बोल रहा है, और ना ही भारत का विरोध कर पा रहा है। अब पाक विदेश मंत्री की स्वीकारोक्ति भी इस बात को प्रमाणित करती है। पाक के लिए अब यही अच्छा है कि वह भारत के खिलाफ जहर उगलने की बजाय अपने अवैध कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में लोगों के मानवाधिकारों को सुनिश्चित करे और दुनियाभर में बेवजह अपना कश्मीर-राग अलापना बंद करे।