पहाड़ों पर ट्रैफिक ना बढ़े, कचरा ना फैले इसलिए भारत को नेपाल से सबक लेकर तुरंत एक्शन लेना चाहिए

गृह मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम के 137 पर्वतीय  चोटियों को पर्वतारोहण और ट्रेकिंग के उद्देश्य से खुलवाया है।

माउंट एवरेस्ट कहाँ है

PC: Peakkit

हाल ही में भारतीय सरकार ने देश में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु एक बड़ा ही अहम निर्णय लिया है। पिछले बुधवार को गृह मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम के 137 पर्वतीय  चोटियों को पर्वतारोहण और ट्रेकिंग के उद्देश्य से खुलवाया है। इससे पहले इन पर्वतीय चोटियों पर जाने के लिए सेना या उससे संबन्धित एजेंसियों से अनुमति लेनी पड़ती थी।

इन 137 पर्वत में से हिमाचल प्रदेश में 47 पर्वत, जम्मू-कश्मीर में 15 पर्वत, उत्तराखंड में 51 पर्वत और सिक्किम में 24 पर्वत हैं। एएनआई से बात करते वक्त पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बताया, “इस निर्णय से इच्छुक पर्वतारोहियों के 137 पर्वतीय चोटियों पर जाने का रास्ता खुला है। हमारी यह मांग काफी समय से लंबित पड़ी थी, जिसे आखिरकार पूरा किया गया है। मैं आभारी हूं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का, जिन्होंने इस कार्य को सुगम बनाया। यह भारत के लिए अपितु विदेशी सैलानियों के लिए बहुत अच्छा होगा। संसार भर में लोग इस निर्णय को अवश्य सराहेंगे”।

निसंदेह यह निर्णय पर्यटन के लिहाज से एक स्वागत योग्य निर्णय है, परंतु इसपर आगे बढ़ने से पहले केंद्र सरकार को कुछ बातें ध्यान में अवश्य रखनी चाहिए। यदि पर्वत की चोटियां पर्वतारोहियों के लिए खोली जाएंगी, तो पर्वतारोहियों के साथ-साथ उनका सामान, विशेषकर उनके द्वारा फैलाये जाने वाला कचरा भी आता है, और भला पर्वतारोहियों की बढ़ती संख्या के दुष्प्रभावों को हमारे पड़ोसी देश नेपाल से बेहतर कौन जान सकता है।

नेपाल अपने सुंदर पहाड़ियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें ‘सागर माथा’ यानी माउंट एवरेस्ट भी शामिल है। वहां पर पर्वतारोहियों की आवाजाही पर कोई विशेष रोक टोक नहीं है। इसके कारण हर वर्ष हजारों की संख्या में पर्वतारोही वहां आते हैं और कई पर्वतों, विशेषकर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई भी करते हैं।

लेकिन जाते जाते वे काफी कचरा पहाड़ों पर ही छोड़ जाते हैं। इससे न सिर्फ पहाड़ों का वातावरण दूषित होता है, अपितु कचरे के कारण कभी कभी चोटी की ओर जाने वाला मार्ग भी प्रभावित होता है, जिसका विकल्प ढूँढने के चक्कर में कई लोगों की जाने चली जाती है। यही नहीं, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुछ समय तक एक नियम था जिसके अनुसार  जिसने पैसा दिया, वो पर्वत पर चढ़ने योग्य होगा। इस कारण माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होने लगी, जिससे पहाड़ों पर भीड़ बढ़ने लगी।

अभी हाल ही में नेपाल में मई में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान 14 से ज़्यादा पर्वतारोहियों की असामयिक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी है। बाद में पाया गया कि इनमें से कई तो आधिकारिक रूप से प्रशिक्षित भी नहीं थे। मामले को संज्ञान में लेते हुए नेपाल सरकार ने यह घोषणा की कि जो भी पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना चाहता है, उसे पहले से ऊंची चोटियों पर चढ़ने का पर्याप्त अनुभव होना चाहिए और उचित तरीके से प्रशिक्षित भी होना चाहिए।

इसी निर्णय के अंतर्गत एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन हुआ है जो इन मामलों पर विशेष निगरानी रखेगी। इस कमेटी के अनुसार माउंट एवरेस्ट चढ़ने को इच्छुक पर्वतारोही को कम से कम 6500 मीटर से भी ज़्यादा ऊंचे कोई भी एक नेपाली चोटी को चढ़ने का अनुभव होना चाहिए, और उसे अपने स्वास्थ्य के लिए एक सर्टिफिकेट भी जमा करना चाहिए।

ऐसे में यदि भारत 137 पर्वतीय चोटियों को पर्यटकों के लिए खोल रहा है, तो ये पर्यटन के लिहाज से निसंदेह एक सरहनीय कदम है, परंतु नेपाल के कड़वे अनुभव से सीख लेते हुए उसे उचित सतर्कता भी बरतनी होगी, जिससे भविष्य में पर्वतारोहियों को भारत में नेपाल जैसी दुर्घटनाएँ न झेलनी पड़े।

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