‘भ्रष्ट बाबुओं अब घर बैठो’ मोदी सरकार अब तक आयकर विभाग के 312 अफसरों को घर भेज चुकी है

मोदी

PC: Jansatta

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान फुल फॉर्म में चल रहा है। हाल ही में भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी कार्रवाई को जारी रखते हुए केंद्र सरकार ने 22 आयकर विभाग के अफसरों को जबरन सेवानिवृत्त किया है। इनमें से कुछ तो भ्रष्टाचार के आरोप में संलिप्त है, तो कुछ भ्रष्ट गतिविधियों में जिन्हें सीबीआई ने रंगे हाथ पकड़ा है।

सरकार ने इससे एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार और अक्षमता के विरुद्ध सरकार की कार्रवाई जारी रहेगी। इस परिप्रेक्ष्य में जारी किए गए आदेश के अनुसार, ‘कर प्रशासन में कुछ ख़राब लोगों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया होगा और उन्होंने मामूली या प्रक्रियात्मक उल्लंघनों के लिए अत्यधिक कार्रवाई करके करदाताओं को परेशान किया होगा.”

सूत्रों की मानें, तो केन्द्रीय इनडाइरेक्ट टैक्सेज एंड कस्टम्स बोर्ड [CBIC] ने अपने मौलिक नियम 56 (जे)  का इस्तेमाल करते हुए अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त किया है। इनमें सीजीएसटी जोन नागपुर, भोपाल, चेन्नई, बेंगलुरु, दिल्ली, जयपुर, कोलकाता, मेरठ और मुंबई तथा कस्टम के जोन बेंगलुरु, मुंबई और चंडीगढ़ के अधिकारी शामिल हैं। सेंट्रल बोर्ड ऑफ इन्डायरेक्ट टैक्सेज एंड कस्टम्स (सीबीआइसी) ने यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन के बाद उठाया है, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध स्तरीय कार्रवाई का आवाहन किया था ।

पीएम ने तब लाल किले में अपने अभिभाषण में कहा था, ‘टैक्स प्रशासन को कलंकित करने वाले कई ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने हो सकता है कि अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर ईमानदार करदाताओं को तंग किया हो। सरकार ऐसे व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करेगी, इसलिए हाल में कई ऐसे अधिकारियों को नौकरी से निकाला गया है’। पीएम मोदी का इशारा शायद जून के उसी निर्णय की ओर था, जब सीबीआइसी ने मौलिक नियम 56 जे का इस्तेमाल करते हुए 27 आइआरएस अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त किया था जिसमें 12 अधिकारी सीबीडीटी के थे।

यहां पर ये बात भी गौर करने योग्य है कि 1972 केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के मौलिक नियम 56 (जे) के तहत सरकार कर्मचारियों की सेवा की समीक्षा कर सकती है और यह देख सकती है कि उनको जनहित में सरकारी नौकरी में बनाए रखा जाए या नहीं। सरकारी नियमों के अनुसार कर्मचारियों के 50-55 की उम्र पर पहुंचने और 30 साल की सेवा पूरी होने के छह महीने पहले अधिकारियों के प्रदर्शन की समीक्षा की जा सकती है। जिन क़ानूनों की पूर्ववर्ती सरकारों, विशेषकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अनदेखी कर भ्रष्टाचार को पनपने का अवसर दिया, उन्हीं कानूनों के पालन में केंद्र सरकार कोई कोताही नहीं बरत रही है।

जून में कई भ्रष्ट अफसरों को जबरन सेवानिवृत्त किया था के बाद यह संभवत: तीसरा चरण है। इससे पहले भी मोदी सरकार ने भ्रष्ट अफसरों के विरुद्ध कार्रवाई की है। सूत्रों की माने तो पिछले पांच वर्षों में 312 से ज़्यादा भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त किया जा चुका है। केंद्र सरकार की नीतियों पर चलते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची तैयार की है, जिन्हें जबरन सेवानिवृत्त किया गया है। भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने के विरुद्ध लिया गया यह निर्णय न सिर्फ सरहनीय, अपितु अपने आप में एक मिसाल है।

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रारम्भ में ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए अफसरों की छुट्टी देने का काम शुरू कर दिया था। इस कदम से मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार करने वालों के विरुद्ध किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जाएगी। इस कदम से भविष्य में कोई भी अधिकारी अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करने से पहले दस बार सोचेगा।

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