यह कथा है नाग पंचमी की और कैसे आस्तिक मुनि ने सर्पो के वंश को बचाया? हिन्दू धर्म प्रकृति-पूजक धर्म है, हमारे समस्त वैदिक देवी देवता जैसे इंद्र, वरुण, अग्नि, सूर्य, पवन सभी प्रकृति का हिस्सा हैं। फ्लोरा अर्थात वनस्पतियों और फ़ौना अर्थात जीव-जंतुओं का भी हिन्दू धर्म के साथ एक पुरातन संबंध है। जहां हम बेल, तुलसी, बरगद, पीपल, आंवले, शमी इत्यादि वनस्पतियों को पवित्र मानते हैं। वहीं, गौ को माता और कई अनेक पशुओं को भी पूजनीय मानते हैं। ऐसे ही एक जन्तु का नाम है नाग। नाग सर्पजाति का द्योतक है और नाग पंचमी पर सर्पों की पूजा करना हिंदू धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है। लेकिन इंटरनेट के इस दौर मे एक प्रवृत्ति आज कल आम है और वो है नाग पंचमी के दिन हर साल नाग पंचमी जोकस बनाना, सर्पों के साथ दुष्ट राजनेताओं की तुलना करना, और इस दिन को पापी और नीच लोगों को समर्पित करना। यह निश्चित रूप से इस पवित्र त्योहार के बारे में लोगों के ज्ञान की कमी को दर्शाता है। नाग पंचमी कथा और नाग पंचमी हिन्दू धर्म की सहिष्णुता और अन्य जीव जंतुओं के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को रेखांकित करता है।
नाग पंचमी कथा
नाग पंचमी की कथा शुरू होती है तक्षक नामक सर्प से जिसके डसने से पांडवों के वंशज परीक्षित की मृत्यु हो गई। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए जनमेजय ने दुनिया के सभी सर्पों का वध करने के लिए एक सर्प यज्ञ किया। सर्पों के राजा वासुकी अत्यंत चिंतित थे। उन्होंने अपने भतीजे आस्तिक से संपर्क किया जो वेदों का एक महान विद्वान था। आस्तिक राजा जनमेजय के पास जाने और यज्ञ को रोकने के लिए अनुरोध करने के लिए सहमत हो गया।
जब आस्तिक कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा, तो उसे संतरी ने रोक लिया। आस्तिक ने फिर यज्ञ की प्रशंसा मे उच्चे स्वर में गायन आरंभ कर दिया। उनकी आवाज जनमेजय तक पहुंची और उन्होंने उन्हें अपने पास बैठने और यज्ञ में भाग लेने की अनुमति दी। कुछ ही समय में, आस्तिक ने सभा में हर एक विद्वान को प्रभावित किया। प्रसन्न होकर जनमेजय ने बालक से उसकी इच्छा पूछी।
इस बीच, भयाक्रांत तक्षक नाग इंद्र के पास गया और इंद्र ने तक्षक को पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया। परंतु सर्प यज्ञ में बैठे ऋत्विजो ने ऐसे शक्तिशाली मंत्रों का जाप किया कि तक्षक के साथ इंद्र भी महान अग्नि की ओर गिरने लगे। इंद्र ने प्राण रक्षा के लिए तक्षक को अपने हाथ से झटक दिया और तक्षक तीव्रता से अग्नि की ओर गिरने लगा।
यज्ञ स्थल पर पुनः जनमेजय ने आस्तिक से अनुरोध किया कि वह उनके लिए कुछ मांगे। आस्तिक ने जनमेजय को सर्प यज्ञ को रोकने के लिए कहा ताकि जो सांप बचे थे वे बच सकें। जनमेजय ने आस्तिक को इसके अलावा और कुछ मांगने के लिए मनाने की पूरी कोशिश की। परंतु आस्तिक आसानी से हार मानने वाले नहीं थे, उसने जनमेजय से यज्ञ को रोकने के लिए कहा।
उन्होंने यह भी बताया कि सांप प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इनके बिना मनुष्यों का जीवित रहना मुश्किल होगा। जनमेजय को बात माननी पड़ी और उसने यज्ञ को रोक दिया। आस्तिक ने महान मंत्रों का जाप करके तक्षक को अग्नि मे भस्म होने से बचाया और नागवंश की रक्षा की। यह घटना महाभारत के आदि पर्व में आस्तिक उप पर्व में उल्लेखित है और यह घटना नाग पंचमी के दिन ही घटित हुई थी।
सर्प सनातन धर्म का एक अभिन्न अंग हैं
दिव्य त्रिमूर्ति के तीनों देवताओं का सर्पों के साथ सीधा संबंध है। देवाधिदेव महादेव के पास नागों के राजा वासुकी है, जो उनके गले मे हार के समान सुशोभित होते हैं। वैकुंठ लोक में क्षीरसागर के सर्पाकर जलमहल मे भगवान विष्णु जिस सर्प पर आसीन हैं वो अनंत शेष कहलाते हैं। वराह पुराण के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के पुत्र कश्यप की चार पत्नियां थीं। कश्यप की तीसरी पत्नी कद्रू ने नागवंश को जन्म दिया। शिव -पुत्र गणेश सर्प को जनेऊ के समान धारण करते हैं।
आतः नाग पंचमी की कथा हमे यही बतलाती है की हिंदू धर्म में सर्पों का चित्रण अत्यधिक जटिल है, वे अच्छे और बुरे दोनों ही हैं। जहां कालिया नाग असहाय ग्रामीणों को परेशान करता है और भगवान कृष्ण द्वारा उसका दमन होता है। वहीं, नागराज वासुकी ब्रह्मांडीय महासागर के मंथन के महान उद्देश्य के लिए स्वयं को मथानी की रस्सी बना लेते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि पाताल लोक मे भोगवातीपुरी में रहते हैं और ऐसा माना जाता है कि वे पृथ्वी में छिपे खजाने के संरक्षक हैं।
सर्प स्वभाव से शांत होते हैं, लेकिन उकसाने पर वे बेहद विनाशकारी हो सकते हैं। शायद उनके पूजन का कारण भी उन्हें प्रसन्न रखना ही है जिससे हम उनके कोप का भाजन ना बन सके। आज निःसंदेह हमारे पास सबसे घातक सर्पों के काटने का भी उपचार हो, लेकिन नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने की परंपरा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आज के परिवेश मे हम नाग पंचमी त्योहार का उपयोग लोगों को सर्पों के बारे मे जागृत करने के लिए भी कर सकते हैं।