NGOs पर मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक: धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाले एनजीओ संगठनों के बुरे दिन शुरू होने वाले हैं

भारत विरोधी और हिंदू विरोधी लॉबी के इशारे पर काम करने वाले एनजीओ कासी जाएगी नकेल!

एनजीओ

(PC: India Today)

भारत में एनजीओ एक बड़ा सेक्टर है। यहां 11 लाख कॉर्पोरेट के मुक़ाबले 33 लाख रजिस्टर्ड एनजीओ मौजूद है। इन सभी एनजीओ की फंडिंग पारदर्शी नहीं है और कुछ विदेशी एनजीओ की शाखाएं तो अपनी फंडिंग को अपना एजेंडा फैलाने के लिए प्रयोग करती हैं जो अक्सर राष्ट्रीय हित और विकास के लिए हानिकारक होते हैं। ऐसे संगठन जो देश और समाज के लिए वास्तव में काम कर रहे होते हैं उन्हें फंड की कमी रहती है।

अब मोदी सरकार  इन विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठनों जो ‘अवैध’ और ‘भारत विरोधी’ गतिविधियों में शामिल हैं उन सभी पर नकेल कसने के लिए एक और बड़ी कार्रवाई करने जा रही है। पीएम मोदी के निर्देश पर अब भारत विरोधी और हिंदू विरोधी लॉबी के इशारे पर काम करने वाले एनजीओ पर अंकुश लगाने के लिए इस कदम को उठाया जा रहा है।

अब सरकार द्वारा संदिग्ध गैर-सरकारी संगठनों को मिलने वाले फंड को दान की बजाय ‘निवेश’ के रूप में गिना जाएगा और इसलिए इन फंड्स की संबंधित एजेंसियों द्वारा जांच की जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था ‘संदिग्ध विदेशी संस्थाएं कमजोर एनजीओ में पैसा लगा रही हैं, तो इसे दान नहीं माना जाना चाहिए, इसलिए इसे ‘निवेश’ मानना चाहिए, जिसकी जांच संस्थानों और अधिकारियों द्वारा ठीक से की जानी चाहिए।’

इंटेलिजेंस ब्यूरो ने बताया है कि कई विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन “विश्व के पश्चिमी देशों के विदेश नीति के लिए उनकी सेवा कर रहे हैं।” आईबी की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठनों ने विकास परियोजनाओं में लगातार बाधाएं पैदा की हैं जिसने भारत की जीडीपी विकास दर को भी प्रभावित किया है।

वर्ष 2014 से पहले ये एनजीओ भारतीय क़ानूनों को ताक पर रखते हुए अपनी भारत विरोधी गतिविधियों को जारी रखते थे, लेकिन वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने आते ही ऐसे प्रोपेगैंडावादी गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई करना शुरू किया। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) कानून के तहत लगभग 20 हज़ार गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी चंदा प्राप्त करने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।

अब इस बार के अभियान में, मोदी सरकार का लक्ष्य ‘धर्म परिवर्तन’ में शामिल गैर-सरकारी संगठनों को सबक सिखाना है। मंत्रालय के एक अफसर के अनुसार ‘अगर पैसा सामाजिक कारण और राष्ट्र निर्माण के लिए लगाया जा रहा है, तो कुछ गलत नहीं है। लेकिन अगर इसका उपयोग देश की लोकतांत्रिक संस्थानों को विकृत करने के लिए किया जा रहा है, तो यह एक गंभीर खतरा है। यह एक नई तरह की चुनौती है और हमें इसका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।’

धर्मांतरण गिरोह अक्सर एनजीओ का सहारा लेकर गरीबों का धर्मांतरण करवाते हैं और कभी उन्हें देश की विकास में बाधा डालने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र व ओडिशा में पोस्को परियोजना का विरोध इसके प्रमुख उदाहरण हैं। भारत के ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में काम करने वाली ईसाई मिशनरी व इस्लामिक प्रोपेगेंडा मिशनरी जैसे जाकिर नाइक की इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन उन कार्यों से जुड़ी है जो भारत के राष्ट्रीय हितों और उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है।

पहले कार्यकाल में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को संबोधित करते हुए बताया था कि बीते चार सालों में लगभग 14,000 एनजीओ के लाइसेंस को रद्द किया गया है। इन एनजीओ ने विदेशी धन प्राप्त तो किया लेकिन सरकार द्वारा अनुरोध करने के बावजूद बीते वर्षों में प्राप्त धन के स्रोतों का खुलासा नहीं कर सकीं।

एफसीआरए अधिनियम का इस्तेमाल सरकार ने उन संगठनों के खिलाफ किया जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारतीय विरोधी गतिविधियों में करती थीं। प्रसिद्ध एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस रद्द किए जाने के कुछ उदाहरणों में 2015 में’ ग्रीनपीस इंडिया’ शामिल है, जो कि “जनता के हित और राज्य के आर्थिक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।” ऐसी ही एक और एनजीओ ‘कम्पैशन इंटरनेशनल’ है जिसे एफसीआरए अधिनियम के तहत दंडित किया गया। इन एनजीओ पर उन गतिविधियों में शामिल होने का संदेह था जो देश के विकास के हित में नहीं थी। एनजीओ से जुड़े ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनका कनेक्शन विदेश में स्थित चर्चों के साथ पाया गया है, जो जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के लिए जानी जाती हैं, झारखंड जैसे राज्य इसके उदाहरण हैं। सीआईडी की एक ​​रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 88 ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एनजीओ में शीर्ष 11 को 7.5-39 करोड़ रुपये का विदेशी फंड मिला था।

भारत की इस कार्रवाई से अमेरिका स्थित कई एनजीओ संगठन परेशान हो गये थे, इसके बाद अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेन्ट ने भारत के खिलाफ एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें भारत के फ़ॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट यानि FCRA पर निशाना साधा गया था। भारत सरकार ने यह कानून इसलिए बनाया था ताकि एनजीओ के वित्तीय संसाधनों की प्रणाली में पारदर्शिता आ सके। रिपोर्ट में इस एक्ट को लेकर लिखा था कि ‘एनजीओ को राजनीतिक कारणों की वजह से निशाने पर लिया गया। हालांकि, गैर-हिन्दू धार्मिक संगठन भी निशाने पर लिए गए’। इस रिपोर्ट में ये भी अंकित है कि FCRA को ईसाई समूहों के खिलाफ भी इस्तेमाल किया गया।

हालांकि, इस रिपोर्ट में बड़ी ही चालाकी से इन एनजीओ की विवादास्पद कार्यप्रणाली को प्रकाशित ही नहीं किया गया। ये एनजीओ एक तरफ तो अमेरिका और बाकी दुनिया से गरीबों की मदद और ईसाई धर्म के संदेश को फैलाने के नाम पर करोड़ों का चंदा लेते हैं, लेकिन दूसरी तरफ यही एनजीओ अपने निजी फ़ायदों के लिए इस पैसे का दुरुपयोग भी करते हैं।

एक रिपोर्ट में कुछ गैर-अधिकारी संगठनों पर देश में अलगाववाद और माओवाद का बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास को अस्थिर करने के लिए करती हैं। अब मोदी सरकार के इस नए रेगुलेटरी प्रावधानों से पारदर्शिता बढ़ेगी, फंडिंग पर भी रोक लगेगी तथा हिन्दू विरोधी एनजीओ पर लगाम लगाने में कामयाबी मिलेगी।

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