कल भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में संकल्प पेश करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद अनुच्छेद 370 के खंड 1 को छोड़कर बाकी सभी खंड जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होंगे। इसी के साथ अमित शाह ने राज्यसभा में कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पेश किया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का प्रस्ताव रखा गया। हैरानी की बात तो यह रही कि भाजपा की धुर विरोधी माने जाने वाली बसपा और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों ने राज्यसभा में इस बिल का समर्थन किया। हर कोई इस बात से हैरान था कि अरविंद केजरीवाल और मायावती जैसे नेताओं का अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो हिस्से में बांटने के प्रस्ताव पर अपना समर्थन कैसे जता सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल के समर्थन में केजरीवाल ने ट्वीट किया और सरकार को अपना समर्थन देने की बात कही। इसके अलावा वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल, तेलुगू देशम पार्टी, एआईएडीएमके और शिवसेना ने भी सरकार का साथ दिया। इस बिल का विरोध सिर्फ कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, जेडीयू, डीएमके और तृणमूल कांग्रेस ने किया। हालांकि, विरोध करने वाली पार्टियां इस बिल को राज्यसभा में पास होने से रोक नहीं पाई। इस बिल के समर्थन में 125 वोट्स पड़े जबकि बिल के विरोध में सिर्फ 61 वोट्स ही पड़े। अब आज इस बिल को लोकसभा में पेश किया जाएगा और यहां भी इस बिल के पास होने की पूरी उम्मीदें हैं।
We support the govt on its decisions on J & K. We hope this will bring peace and development in the state.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 5, 2019
अब सवाल यहां यह है कि आखिर बीएसपी और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां इस बिल का समर्थन करने के लिए राज़ी कैसे हुई? दरअसल, पिछले कुछ सालों में भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ी है, और देश के वोटर्स अब राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही राजनीतिक पार्टियों का समर्थन और विरोध करते हैं। भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बड़े ही शानदार तरीके से अनुच्छेद 370 और कश्मीर मुद्दे को राष्ट्रवाद से जोड़कर प्रदर्शित किया और लोगों को यह विश्वास दिलाया कि अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध करने वाली पार्टियां ही देश विरोधी है और उन्हें देशहित से ज़्यादा पार्टी-हित की चिंता है। इस वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यह साफ तौर पर कहा था कि अगर भाजपा दोबारा सत्ता में आती है, तो वह कश्मीर से इस विवादित अनुच्छेद को हटाने का काम करेगी।
लोकसभा चुनावों में वोटर्स ने भाजपा का साथ दिया और विपक्षी पार्टियों को मुंह की खानी पड़ी। अरविंद केजरीवाल की पार्टी को तो इन चुनावों में एक भी सीट नहीं मिल पाई। आज अरविंद केजरीवाल और मायावती जैसे नेता यह भली-भांति समझ चुके हैं कि अगर उन्हें अपने राजनीतिक वर्चस्व को बचाना है तो उन्हें देश के मुख्यधारा वोटर्स के विचारों को समझना होगा। ये राजनीतिक पार्टियां वोटर्स पर अपने पारंपरिक विचारों को थोप नहीं सकती, और यही कारण है कि इनको संसद में भाजपा का समर्थन करने पर मजबूर होना पड़ा है। जब केजरीवाल ने इस बिल का समर्थन किया तो इसपर कुमार विश्वास ने चुटकी लेते हुए ट्वीट किया कि ‘दिल पर चट्टान रख कर ट्वीट कर रहे हो ना बौने? हमने जब सेना के समर्थन में वीडियो बनाया तब तो अपने घर पर पालित अमानती कुत्तों से हमको घेर कर मारने को कह रहे थे,अब क्या हुआ?चादर फटी तो प्रसाद लूटने आ गए सबूत माँगने वाले?इतिहास का कूड़ेदान हर दग़ाबाज़ देशद्रोही की प्रतीक्षा में है’।
साफ है कि इन पार्टियों द्वारा भाजपा के इस बिल का समर्थन करना इनकी मजबूरी को दिखाता है। दिल्ली में अगले साल चुनाव होने वाले हैं, और केजरीवाल ये भली भांति जानते हैं कि अगर इस बार भी उन्होंने वोटर्स की इच्छा के खिलाफ जाकर कोई फैसला लिया तो विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का सूपड़ा पूरी तरह साफ हो जाएगा, और ठीक यही हाल बीएसपी जैसी पार्टियों का है। कुल मिलाकर, ये राजनीतिक पार्टियां लोकसभा चुनावों में मिली बुरी हार से सीखकर ही अब आगे की रणनीति बनाते दिख रही हैं ताकि ये सभी वोटर्स के विश्वास को दोबारा जीत सके।